सबसे ताक़तवर मुल्क अमेरिका को दशकों तक केवल एक ही देश चुनौती देने की ताक़त रखता था लेकिन उसका वजूद भी दुनिया के नक़्शे से 25 दिसंबर, 1991 को ख़त्म हो गया था.
उस दिन सोवियत संघ के तत्कालीन राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोफ़ ने क्रेमलिन से देश को संबोधित करते हुए कहा, “सोवियत संघ के राष्ट्रपति के तौर पर मैं अपना काम बंद कर रहा हूं.”
उनका ये भाषण पूरी दुनिया ने सुना. बहुत से लोगों के लिए उन्हीं लम्हों में शीत युद्ध और एक कम्युनिस्ट ताक़त ख़त्म हो गए थे. लेकिन दूसरी तरफ़ ऐसे भी लोग थे, जिनका ये मानना था कि सोवियत संघ का वजूद बेलावेझा ट्रीटी के हफ़्तों पहले ख़त्म हो चुका था.
हालांकि एक बड़ा तबका उसी साल अगस्त में हुई तख़्तापलट की कोशिश के बाद ये समझ गया था कि सोवियत संघ के अब गिने-चुने दिन रह गए हैं.
उस बरस बसंत के मौसम से ही गोर्बाचोफ़ और संघीय सरकार में उनके सहयोगी एक नए समझौते के लिए बातचीत कर रहे थे. सोवियत संघ के घटक देशों के सामने अधिक लचीले संघ का प्रस्ताव रखा गया था. उनका मानना था कि सोवियत संघ को बचाने का यही आख़िरी तरीका रह गया है.