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सत्य पथ भी है,
गंतव्यों का आखिरी पड़ाव भी,
यह गहरी ढलानों से घूमते-घामते,
चम चमाते शिखरों का सुनहला भाव भी।
यह देखने, सुनने की कला भी है,
कभी बेबसी सा,
टूटते तारों की चीख पुकार सुनकर,
अपने ही कान बंद कर, खड़ा है कौन!
यह कौन है,
जो देखता भी नही
और सुनता भी नहीं,
बस कहते-कहते,
कहा इतना…..
कभी हो, जो भाव विचिलित तो रहो मौन।।
शहर की गलियों मे, कोई भी नही,
फिर भीतर, ये कौतूहल है कैसा?
यह शोरो गुल,
खुद को रोक कर,
दबाकर,
हताशा मे शामिल,
बोझिल इतना,
बस सिर फटे जाने दो,
तटस्थ रहकर भी देख,
भीड़ को मुसकराने दो,
या फिर यूं ही देखे जा रहे हो खुद,
खुद का तमाशा कोई..
जो कहते कहते चुपी साधे
रूंधे गले….. के शब्द,
नही सत्य से आशा कोई।।।
यह गीत,
यह शब्दों के घेरे
यह मीरा के बोल,
वचन जो कबीर ने साधे,
सब मिथ्या हुए,
जब शोर मे दबे युधिष्ठिर के शब्द आधे।।।।
*EDITOR-in-CHIEF*
– HIMACHAL REPORTER NEWS,
– NEWSTIME REPORTER TV,
– INDIA REPORTER TODAY- NEWS WEB PORTAL,
*CHAIRMAN*
MISSION AGAINST CORRUPTION, N.G.O.
*PALAMPUR*
Mob ;: 9418130904, 8988539600
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