स्वर्णिम_हिमाचल_क्या_खोया_क्या_पाया। हिमांशु मिश्रा additional advocate general Himachal Pradesh
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बी के सूद मुख्य संपादक
#स्वर्णिम_हिमाचल_क्या_खोया_क्या_पाया
1971 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिलते ही हिमाचल प्रदेश में उच्च न्यायालय ने भी काम शुरू कर दिया ,न्यायमूर्ति एम एच बेग पहले मुख्य न्यायाधीश बने । 1971 से ही हिमाचल में प्रशासनिक और भूमि सुधार पर काम शुरू हो जहाँ एक ओर भूमि सुधार कानून लागू हो गए , वहीं पहली नवंबर, 1972 को कांगड़ा जिला को तोड़ कर तीन जिले कांगड़ा, ऊना तथा हमीरपुर बनाए गए। महासू जिला के क्षेत्रों में से सोलन नया जिला बनाया गया। इन्ही प्रशासनिक एवम भू सुधारों को लेकर ही डॉ यशवंत सिंह परमार को हिमाचल निर्माता के नाम से जाना जाता है।
भू सुधार कानून में धारा 118 के तहत प्रवधान किया गया कि कोई भी बाहरी व्यक्ति कृषि की जमीन निजी उपयोग के लिए नहीं खरीद पायेगा वहीं लैंड सीलिंग एक्ट में कोई भी व्यक्ति 150 बीघा जमीन से अधिक नहीं रख सकने को भी जोड़ा गया था । किसी भी कानून के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव होते है और इन दो कानून के लागू होने हिमाचल में तय किया गया की हर परिवार को कुछ न कुछ भूमि की मलकियत मिले , साथ मे ही किराए पर भूमि लेकर खेती करने वाले किसानों या यूं कहें मुजारों को भी अनुपातिक हक दे कर भू स्वामी बना दिया गया । लेकिन लघु जिम्मेदारों जिनकी भूमि की मलकियत मुजारों को चली गयी उनमें रोष उत्पन्न हो गया । जिनकी जमीन गयी और जिन्हें जमीन मिली उन में मतभेद पैदा हो गए । तत्कालीन कांन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पालमपुर से कुंज बिहारी लाल बुटेल थे जिनकी पैरवी के चलते चाय बागान मालिकों को सीलिंग एक्ट के प्रवधान से विशेष छूट दी गयी ।
डा. यशवंत सिंह परमार वर्ष 1976 तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।उनके बाद ठाकुर राम लाल मुख्यमंत्री बने और प्रदेश बागडोर संभाली। उस समय पूरे देश मे आपातकाल के खिलाफ जनांदोलन चरम पर था , जनसंघ और वाम दलों के कार्यकर्ताओं पर सरकार का दमन चक्र चल रहा था । शांता कुमार , कंवर दुर्गा चंद रणजीत सिंह सहित अनेकों नेता जेल में डाल दिये गए थे । वर्ष 1977 में प्रदेश में जनता पार्टी चुनाव जीती और शांता कुमार प्रदेश के पहले गैर कांन्ग्रेस मुख्यमंत्री बने। आज 12 सितम्बर को जन्मे शांता कुमार ने प्रदेश के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए बहुत बड़ा काम किया । बहनों के सिर से घड़ा उतरवाने के उनके प्रयास के कारण उन्हें पानी वाले मुख्यमंत्री के रूप में जाने जाना लगा । वर्ष 1980 में ठाकुर राम लाल फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान हुए । लेकिन उनपर प्रदेश की वन संपदा को लेकर गम्भीर आरोप चर्चा में आये और 15 अगस्त 1983 को उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया ।