शांता जी की सोच को सलाम, बड़े-बड़े मंदिरों की बजाए देश को अच्छे हॉस्पिटल्स की ज्यादा आवश्यकता है

In Govt. Hospitals, buildings are like Five Star hotels but facilities for the name sake.

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शांता जी की सोच को सलाम!

INDIA REPORTER NEWS

PALAMPUR : B.K. SOOD, Senior Executive Editor (SEE) & Veteran Writer

 Fortis Hospital Mohali से डिस्चार्ज होते हुए शांता जी ने कहा कि बड़े-बड़े मंदिरों की बजाए देश को अच्छे हॉस्पिटल्स की ज्यादा आवश्यकता है ।
FORTIS HOSPITAL MOHALI, CHANDIGARH
इससे एक कदम और आगे बढ़ें तो  हमें यह भी सोचना होगा कि क्या बड़े बड़े  संसद भवनों, विधानसभा भवनों और बड़े-बड़े rest houses की जगह हॉस्पिटल्स और स्कूल्स की ज्यादा जरूरत है या उन भवनों की  जो साल में केवल मात्र तीन बार इस्तेमाल होते हैं, साल में केवल मात्र 2 या 3 महीने इनका उपयोग होता है जबकि हॉस्पिटल्स चौबीसों घंटे, सातों दिन इस्तेमाल होते हैं । काश सभी नेता लोग यह बात समझ लेते कि हमें सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और महिला सुरक्षा के मुद्दों से निपटने में प्राथमिकता देनी चाहिए न कि फिजूलखर्चिओं  या दिखावे पर।
लोग कहते हैं कि पीजीआई में बहुत बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध है परंतु वे स्वास्थ्य सुविधाएं केवल मात्र समाज के चंद लोगों के इर्द-गिर्द घूमती हैं।
आप सोचिए अगर शांता कुमार जैसे व्यक्तित्व को भी पीजीआई, टांडा या आईजीएमसी जैसे बड़े अस्पतालों को छोड़कर प्राइवेट हॉस्पिटल फोर्टिस मोहाली में इलाज करवाना पड़े तो ये अस्पताल गरीब लोगों के लिए क्या सेवा प्रदान करते होंगे ? कहीं न कहीं, कोई न कोई कमी तो रही होगी वरन वीआईपी लोगों के लिए तो पीजीआई भी किसी 5 स्टार से भी कम नहीं, बेहतर सुविधाएं मिलती हैं इसमें। पीजीआई का दोष नहीं परंतु दोष है हमारे सिस्टम का ।
 पीजीआई में इतनी अधिक भीड़ रहती है कि वहां के डॉक्टर या वहां का सिस्टम इस भीड़ के आगे थक-हांफ जाता है। एक पीजीआई नहीं , चंडीगढ़ में केवल अगर पांच पीजीआई भी हो जाएं तो भी वे कम पड़ेंगे और हिमाचल की तो बात ही मत पूछिए ।
पालमपुर से पीजीआई पहुंचने की बात तो छोड़िए मरीज केवल देहरा तक भी नहीं पहुंच पाता और लंबी दूरी और सड़कों की खस्ता हालत के कारण बीच में ही दम तोड़ जाते हैं । इसलिए पालमपुर तथा इसके आसपास के क्षेत्रों को बेहतर मेडिकल सुविधाएं देने के लिए यहां पर कोई विशेष सुविधा होनी चाहिए। आप सोचिए शांता कुमार जैसे व्यक्तित्व को अगर पीजीआई  बेहतर सुविधा नहीं दे पाए तो आम लोगों की सोचें कि उन्हें तो पर्ची बनाने में ही दिन बीत जाता है। डॉक्टर की अपॉइंटमेंट लेने में ही कई हफ्ते निकल जाते हैं। मरीज के तीमारदार बाहर सर्दी- गर्मी में सड़कों पर पड़े रहते हैं। लोगों के पास खाने और दवाई के लिए पैसे नहीं होते, डॉक्टर से सीधे जाकर मिलने इतनी सिफारिश नहीं होती । किसी भी बीमारी के टेस्ट करवाने के लिए महीनों का समय लग जाता है तथा अगर भूले से एडमिशन हो भी जाए तो फिर इलाज का क्या परिणाम होगा यह किसी को मालूम नहीं , क्योंकि गरीब लोगों के पास रहने  लिए, खाने के लिए और दवाइयों के लिए कोई पैसा नहीं होता।  वे भिखारियों की तरह सड़कों पर, फुटपाथ पर या लॉन में पड़े रहते हैं ।
Dr. RPGMC College & Hospital, Kangra
काश किसी बड़े नेता ने अचानक जाकर वहां की हालत देखी होती । यही हाल ऐम्स दिल्ली का है। सरकार से  जनता की यह अपेक्षा है कि वह जनता की मजबूरियों को समझें, उनके दुख दर्द को महसूस करें। यह जरूरी नहीं कि कल  को कोई और बड़ा नेता बीमार पड़े  तो स्वास्थ्य क्षेत्र का पता चलेगा या किसी बड़े नेता का बच्चा बेरोजगार हो,तभी बेरोजगारी का मतलब समझ आएगा कि बेरोजगारी का दंश क्या होता है। क्या हमारे सिस्टम को यह तभी समझ आएगा कि स्कूलों की इतनी खस्ता हालत क्यों है, जब किसी सिस्टम में बैठे हुए व्यक्ति की संतान सरकारी स्कूल में पढ़ कर शाम को घर आएगी और घर पर आकर अपनी व्यथा सुनाएगी ? क्या हमारे सिस्टम को यह तभी समझ आएगा कि सड़कों की दुर्दशा और सड़क के रास्ते से चलकर बस में बैठकर चंडीगढ़ या दिल्ली जाना कितना मुश्किल है, जब किसी नेता के परिवार का घनिष्ठ संबंधी या स्वयं नेता सड़क मार्ग से, बस में या कार में चलकर चंडीगढ़ पहुंचे या दिल्ली पहुंचे। सड़कों में कितने गड्ढे हैं कितनी बुरी हालत है यह शायद तभी पता चलेगा जब कोई बड़ा नेता किसी बस में बैठकर सफर करेगा।
हमारे यहां एक प्रथा है कि जब भी किसी वीआईपी की मूवमेंट होती है तो हमारी सड़कें चकाचौंध हो जाती हैं, सड़कों के गड्ढे भर दिए जाते हैं, बिजली-पानी की व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त कर दी जाती है लेकिन जैसे ही वीआईपी उस जगह से जाते हैं उस जगह की हालत फिर पहले वाली बदहाली की स्थिति में आ जाती है। फिर वहां के लोगों की दुर्दशा को समझने की तो बात छोड़िए सुनने वाला तक कोई नहीं होता ।हमें खुशी होती अगर शांता कुमार जी के यही विचार हमारे सरकारी हॉस्पिटल की सुविधाओं के बारे में भी होते ! इसमें कोई दो राय नहीं कि  सरकारी हॉस्पिटल्स में क्वालिफाइड स्टाफ की कोई कमी नहीं है, कमी है तो केवल  इस मानसिकता की कि इस  मरीज की कितनी अप्रोच है।सुयोग्य डॉक्टर मेहनती स्टाफ  की कमी नहीं , कमी है तो संसाधनों की।  सरकारी सिस्टम में मरीजों को तरजीह उसकी बीमारी के हिसाब से नहीं बल्कि आपकी जान-पहचान के हिसाब से दी जाती है, आप कितनी जान- पहचान वाले हो मरीज की देखभाल और इलाज इस बात पर निर्भर करता है।
आपको मामूली बीमारी है और आपके पास जान-पहचान है या कोई सिफारशी पत्र है तो आपको एच ओ डी भी देखने आ जाएगा , परंतु अगर आपके पास जान- पहचान नहीं है न ही कोई पत्र है, न कोई प्रपत्र है तो आपको एचओडी तो छोड़िए इंटरनीज भी  किस ढंग से देखेंगे या नहीं, यह आपकी किस्मत पर निर्भर करता है।
आप सभी भलीभांति परिचित हैं कि इसके आगे का क्या सिस्टम क्या है , उसे किसी को बताने की आवश्यकता नहीं । जैसे अदालतों में तारीख पर तारीख, वैसे ही सरकारी अस्पतालों में टेस्ट पर टेस्ट।
इन सभी समस्याओं के लिए ऐसा नहीं कि हमारा सिस्टम या तंत्र ही जिम्मेवार है इसके लिए हम” वोटर लोग” खुद भी जिम्मेवार हैं क्योंकि हम वोट केवल मात्र पार्टी का चुनाव चिन्ह देकर देते हैं न कि व्यक्ति की योग्यता को देख कर ।कहते हैं डॉक्टर भगवान का दूसरा रूप होते हैं जिसे शांता जी के बयान ने ताकत दी है और साथ ही यह प्रश्न भी खड़ा किया है कि डॉक्टर वही होते हैं, नर्सें वही होती हैं, स्टाफ भी वही होता है , फर्क रहता है केवल मात्र सिस्टम का और तंत्र का।
 सिस्टम और तंत्र के बदलते ही व्यवहार में स्वाभाविक रूप से परिवर्तन आता है। ऐसा ही परिवर्तन हम सरकारी सिस्टम में क्यों नहीं ला पा रहे हैं यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है??जिसका सीधा सा जवाब है कि हम सभी पार्टी के कार्यकर्ता हैं वोटर नहीं, हम पार्टी के प्रति वफादार हैं, देश के प्रति नहीं।
जाने कब आएगा परिवर्तन इन बीमार पड़ी मानसिकताओं में। कब सरकारें इन समस्याओं के प्रति संवेदनशील होंगी। केजरीवाल की सुधारात्मक प्रणाली का अनुसरण करना पूरे देश के लिए अनिवार्य बन गया है। कब तक लोग आज़ाद भारत में भी गुलामी का दंश झेलते रहेंगे। अतिशीघ्र परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। वरन भावी पीढ़ी देश के कर्णधारों को कभी माफ नहीं करेगी।

 

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