बी के सूद चीफ एडिटर
* स्वदेशी समान लाएंगे , समाज खुशहाल बनाएंगे *
प्राचीन काल में भारत एक समय में सोने की चिड़िया कहलाता था, भारत में व्यापार काफी फला – फूला था , अंग्रेज भी भारत में व्यापार करने के लिए आए थे , इतिहासकारों के अनुसार भी भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी लेकिन अंग्रेजी सरकार के द्वारा अपनाई गई नीतियों के कारण भारत की विश्व प्रसिद्ध हस्तकला ,उद्योगों का पतन होता रहा , उन्होंने आधुनिक औद्योगिक आधार पर कोई भी ध्यान नहीं दिया सिर्फ अपनी जरुरतों ,सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए ही कार्य करते रहे जिनमें उनका अपना ही निहित स्वार्थ छुपा था ।
हमारे देश में विदेशी सामान के
बहिष्कार की आवाज आजादी से पहले ही गूंजने शुरू हो चुकी थी लेकिन आजादी के बाद देखा जाए तो हम अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी लगातार अन्य देशों पर निर्भर होते जा रहे थे , जिससे दूसरे देशों की कंपनियां यहां व्यापार कर लगातार कर मालामाल हो रही थी और हम सभी अन्य देशों की अर्थव्यवस्था को ही मजबूत करने में लगे थे।
हमारा देश त्योहारों और महोत्सवों का देश माना जाता है । अन्य देश जो हमारे त्यौहारों को तो नहीं मानते लेकिन हमारे सभी त्योहारों के लिए हमारी छोटी-छोटी जरूरतों के समान हमें उपलब्ध करवा रहे थे , जैसे कि दिवाली में मिट्टी के दीपक , सजावट के लिए बिजली का समान, पटाखे , गिफ्ट , होली त्योहार में खेलने के लिए रंग , रक्षाबंधन के लिए राखी , बच्चों के खिलौने, बिस्किट ,चॉकलेट ,पानी, चिप्स ,यहां तक की हमारे देवी देवताओं के पूजन के लिए भी सभी जरूरी सामग्रियों पर भी बाहरी कंपनियां अपना दबदबा पूरी तरह से बना चुकी थी , जो हमारे लिए एक बहुत ही बड़ा चिंतनीय विषय हो चुका था।
पिछले साल हमारी केन्द्र सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए और आत्मनिर्भर बनाने के लिए *लोकल फार वोकल* के नारे के जरिए देश की जनता को अपने ही देश में बने उत्पादों को खरीदने के लिए और अपने देश में ही उत्पादों का निर्माण करने का संदेश दे कर एक सराहनीय शुरुआत की थी । इस पर देश वासियों ने इसपर जनजागृति अभियान को इतना जागरूक किया ओर सभी ने अपना भरपूर समर्थन दिया जिससे
देश की पूरी जनता स्वदेशी प्रोडक्ट को गंभीरता से खरीदने लगी और चीन निर्मित सामग्रियों को खरीदने से बचने लगी। इसी कदम से हमारे देश में समान बनाने वाले निर्माता, कारीगर ,कामगारों, बुनकर, शिल्पकारों ओर कुटीर उद्योगों को एक नई ताकत मिली ,
खासकर हमारे देश में कुम्हारों का दीपावली में मिट्टी के दीपक बनाने का और देश में रक्षाबंधन पर राखी बनाने के धंधे जो तकरीबन बंद ही हो चुके थे उन्हें फिर से नई ऊर्जा मिली ,
जिससे उन सभी में खुशी की एक चमक देखने को मिली। अपने देश की मिट्टी से बने हुए दीपक और स्वदेशी धागो की राखियां का उपयोग करके हमने अपने त्योहारों को पूर्ण रूप से भारतीय होने ओर त्योहारों की पवित्रता को बनाए रखने की अपनी संस्कृति को अपनाने की बहुत ही बड़ी शुरुआत की।
करोना काल विपदा के समय अपने ही देश की बड़ी- छोटी कंपनियां और स्थानीय छोटे – छोटे दुकानदार अपनी- अपनी हैसियत के अनुसार गरीब और असहाय लोगों मदद के लिए आगे थे जबकि बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियां चुपचाप तमाशा ही देख रही थी।
सरकार को देश के पुनर्निर्माण * मेक इन इंडिया* बनाने के लिए दिशा मे लघु एवं मझोले उद्योगों को प्रोत्साहन करने के लिए ओर ज़रूरी छूट देना , कच्चा माल , आधुनिक तकनीकों को उपलब्ध करवाने में मदद करने की जरूरत है जब स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर होगी तभी देश की अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा ओर युवाओं को रोजगार के साधन भी खुलेंगे। हमारा देश फिर विकास की राह में चल कर स्वर्ण काल में प्रवेश कर फिर विश्वगुरु बन पाएगा।
मनवीर चन्द कटोच
गांव भवारना
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