अलविदा, स्व. प्रीतम चंद कटोच ‘The Great Transporter’
धौलाधार बस के संचालक को सैंकड़ों लोगों ने दी भावभीनी श्रद्धांजलि
मारंडा (Palampur) मूलतः गांव भौरा निवासी श्री प्रीतम चंद कटोच का आज बैंड-बाजों के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया।
उन्हें श्रद्धांजलि देने करने हेतु भारी संख्या में उनके शुभचिंतकों की भीड़ अन्त्येष्टि स्थल पर पहुंची तथा स्व. प्रीतम चंद कटोच जी को अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए।
उपस्थित जनों का कहना था कि इतनी सम्मानजनक व शाही मृत्यु विरले महानुभावों को ही नसीब होती है।
वह रोते-रोते इस नश्वर संसार में आये लेकिन सहर्ष अपनी जिम्मेदारियो को निभाते हुए, अपना एक विशेष मुकाम हासिल कर सबको रोता-बिलखता छोड़ कर, हंसते-हंसते संसार को अलविदा कह गए।
वह 94 वर्ष के थे। वह धौलाधार बस (प्रीतम बस) के मालिक थे। सोमवार 8 नवंबर को सायं साढ़े छः बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
वह अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़ कर गए हैं। उनकी धर्मपत्नी का 11 वर्ष पूर्व देहांत हुआ था। अंत समय तक वह पूरी तरह से स्वस्थ रहे। ब्लड प्रेशर, डायबिटीज अथवा कोई अन्य बीमारी उन्हें छू तक नहीं पाई थीं।
वह आजीवन स्वस्थ रहे। वह अधिकांश पैदल चला करते थे। उनका मानना था कि स्वस्थ जीवन का राज़ है अधिकतर पैदल चलना और सीमित मात्रा में भोजन करना।
अंग्रेजी भाषा लिखने व बोलने में उन्हें महारत हासिल थी।
कटोच जी कहा करते थे कि आहार जीवन भी है और मृत्यु भी। भोजन के बिना कोई नहीं मरता, कम भोजन खाकर मनुष्य अधिक जीता है, लेकिन अधिक भोजन खाकर कई रोग मोल लेता है और जल्दी शरीर त्याग देता है।
1927 में जन्मे श्री प्रीतम चंद कटोच एक महान व्यक्तित्व के स्वामी थे। मिलनसार व समाजसेवी थे। उनका समाज पर विशेष प्रभाव था। दीन – दुखियों की मदद करना उनके जीवन का विशेष गुण था।
1948 में उन्होंने ग्रेजुएशन की डिग्री धर्मशाला डिग्री कॉलेज से प्राप्त की थी। उस समय विरले लोग ही ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल कर पाते थे। वह एक कर्मयोगी थे जिस कारण उन्होंने सरकारी नौकरी के बजाय व्यवसाय को चुना।
उन्होंने पहले ट्रक ख़रीदे फिर निजी बस प्रीतम बस , धौलाधार नाम से बसें चलाकर खूब नाम कमाया व जनसेवा की। जब उन्होनें यह कार्य आरंभ किया तब इतना बड़ा कार्य करना आसान काम नहीं था। अपने बलबूते पर उन्होंने बिज़नेस को सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
शाही अंदाज में जीवन जीने वाले स्व. प्रीतम चंद कटोच सामाजिक कार्यों में बढ़चढ़ कर भाग लेते थे। वह कर्म को प्रधान मानते थे। लगभग 10 वर्ष तक वह मारंडा पंचायत के निर्विवादित प्रधान रहे। इस वीच उन्होंने कई ऐसे विकास कार्य करवाये जो वर्तमान पीढ़ी के लिए आदर्श व अनुकरणीय बन गए हैं।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें तथा शोकाकुल परिवार को इस दुख को सहने की शक्ति प्रदान करें।