कई पत्रकारों को इस बात का डर है कि वे घर से काम करने लगेंगे तो उनकी नौकरियां चली जाएंगी, PAID पत्रकारों का दर्द
PAID पत्रकारों का दर्द
कई पत्रकारों को इस बात का डर है कि वे घर से काम करने लगेंगे तो उनकी नौकरियां चली जाएंगी
INDIA REPORTER NEWS
NEW DELHI : AKSHAT SHAROTRI
एक महिला पत्रकार ने बीबीसी मराठी से गोपनीयता की शर्त के साथ बताया, ‘‘हमें बीमारी का डर नहीं है. लेकिन कई पत्रकारों को इस बात का डर है कि वे घर से काम करने लगेंगे तो उनकी नौकरियां चली जाएंगी. आने वाले दिनों में मीडिया में छंटनी होगी. इसलिए कईयों को लगता है कि वे घर बैठ गए तो यह उनके हित में नहीं होगा.‘‘ वहीं एक अन्य फोटोग्राफर ने गोपनीयता के साथ बीबीसी मराठी से अपना अनुभव बताते हुए कहा, ‘‘मैंने लॉकडाउन के बाद भी काम जारी रखा है. फील्ड में काम करने के दौरान कई जगहों पर जाना होता है. खघ्तरे में भी हमें काम करना होता है. ये बता पाना मुश्किल है कि किसके संपर्क में आने से मैं संक्रमित हुआ. हम रोजाना कई लोगों से मिलते हैं. लेकिन जब मैंने अपने दफ्तर को कोरोना संक्रमण के बारे में बताया तो उनकी प्रतिक्रिया बेहद ठंडी थी.‘‘ मुंबई में जिन पत्रकारों को कोरोना संक्रमित पाया गया है उनमें कई पत्रकार प्रमुख चैनलों से संबंद्ध हैं। इनमें से एक पत्रकार ने बताया, ‘‘इसका कोई लक्षण नहीं था. कोरोना संबंधित खघ्बरों को कवर करने के लिए मैं मुंबई में कई जगहों पर गया हूं. मैं धारावी भी गया और मैं कुछ एलीट इलाकघे में भी गया. मैंने लोगों की समस्याएं कवर की और सरकार के लागू प्रावधानों को भी कवर किया. लेकिन मुझे इस पर यकघ्ीन नहीं हुआ कि मैं कोरोना संक्रमित हो गया हूं. मैं अपनी पूरी तरह देखभाल कर रहा था लेकिन फिर भी कोरोना संक्रमित हो गया.‘‘ कोरोना के मुंबई में फैलने के बाद कुछ चैनलों ने अपने रिपोर्टर, कैमरामैन और फोटोग्राफरों के दफ्तर आने से मना कर दिया। एक कैमरामैन ने बताया, ‘‘लॉकडाउन की शुरुआत होने पर हमारे जैसे फील्ड में काम करने वाले रिपोर्टर और कैमरामैन को दफ्तर में आने की अनुमति नहीं दी गई. हमें कैमरा और दूसरे उपकरण घर ले जाने को कहा गया. ऐसा रोस्टर बनाया गया जिसमें हमें एक सप्ताह काम करने की इजाजत मिली और दूसरे सप्ताह हमें लीव दिया गया.‘‘ एक रिपोर्टर ने बताया, ‘‘फील्ड में काम करते हुए हम कोरोना संक्रमित हुए. लेकिन हमें अपने परिवार के सदस्यों की चिंता नहीं हुई कि उनका क्या होगा, उनकी मदद कौन करेगा. काम पर नहीं जाना विकल्प नहीं हो सकता. लेकिन ऑफिस को इन चीजों को समझना चाहिए.‘‘ वहीं बीजेपी नेता किरीट सौमया ने कहा, ‘‘52 पत्रकारों का कोरोना पॉजिटिव होना चैंकाने वाली बात है. मैं सरकार और उनके चैनलों से अनुरोध करता हूं कि इनके इलाज में मदद की जाए. इन सबको इंश्यूरेंस कवर मिलना चाहिए। लेकिन क्या इन पत्रकारों को बीमा देना तो दूर उन्हें कोरोना वॉरियर का सम्मान तक नहीं दिया गया। कुछ पत्रकार चुने गए थे इस सम्मान के लिए लेकिन वो भी तो क्योंकि उनके सरकारों से अच्छे संबंध थे। तो क्या इन हालातों में यह मान लिया जाए कि सरकार अपने साथ काम करने बालों को हो यह सम्मान दे रही है तो बाकी स्वयंसेवकों का क्या जो निष्पक्ष भाव से सेवा में लगे हुए हैं। कोरोनावायरस हम पत्रकारों के जीवन की सबसे बड़ी कहानी है और एक अरब से ज्यादा लोग हमसे उम्मीद कर रहे हैं कि हम इस दौर में उनके लिए हालत पर नजर रखें, खबरें देते रहें, सम्पादन का दायित्व निभाते रहें और नाइंसाफियों तथा सरकारी तंत्र की खामियों को उजागर करते रहें। आप अपने स्तम्भ के लिए गेब्रिएल गार्सिया मारखेज से शीर्षक तभी चुरा सकते हैं जब आप लापरवाह, यहां तक कि गुस्ताख और थोड़े सनकी भी हों. और हकीकत यह है कि हम पत्रकार लोग आम तौर पर तीनों होते हैं. इन और दूसरी कमजोरियों के लिए आम तौर पर अगर हमें माफ कर दिया जाता है तो इसलिए कि ज्यादातर लोग जानते हैं कि हम कहां से आ रहे होते हैं. इतने वर्षों बल्कि दशकों के अपने पत्रकारीय जीवन में किसी ने मेरे साथ रूखा या असभ्य व्यवहार नहीं किया, चाहे उनमें से किसी को मुझसे नाराज होने की वजह क्यों न रही हो। दंगों, बगावतों, आपदाओं, चुनाव अभियानों के दौरान हम पत्रकारों ने पाया है कि लोग हमारे साथ आम तौर पर अच्छा और सम्मानजनक व्यवहार करते हैं. यहां तक कि उजड्ड लोग भी, जिनका काम हत्या करना ही है, अक्सर हमें भोजन कराते हैं, सुरक्षा देते हैं. इनमें बेशक कुछ अपवाद भी होते हैं. चोरों में भी सम्मान की भावना होती है। यह सब कहां से आता है? इस विशाल और विविधता से भरे देश के एक अरब से ज्यादा लोगों को किसने सिखाया कि पत्रकार उनके लिए महत्वपूर्ण हैं? कि पत्रकार ऐसे भले लोग हैं जो उनके जीवन के बारे में जो खबरें देते हैं, या वे जो राजनीतिक विचार रखते हैं उन पर भरोसा किया जा सकता है. आप चुनाव अभियानों के दौरान यात्रा करेंगे तो आपको पता चलेगा कि लोग जिन पत्रकारों से कभी परिचित नहीं हुए उनके प्रति वे कितने स्वागत का व उदारता का भाव रखते हैं. गरीब से गरीब गांवों की महिलाएं भी पत्रकारों से किस तरह खुल कर बात करने लगी हैं. भारत के लोगों और उनके पत्रकारों के बीच का यह सामाजिक करार अनूठा है. इसकी ठोस वजह उनका यह विश्वास है कि हम अपना काम बहुत कर्मठता और साहस से करते हैं. यही वजह है कि जब सरकार या पुलिस उनकी बात नहीं सुनती तो देशभर में पीड़ित लोग सबसे पहले मीडिया से ही संपर्क करते हैं।हमें और सरकारों को इस और ध्यान देने की जरूरत है।
यही तो भारतीय लोकतंत्र व्यवस्था की विडंबना है कि यहां पर पत्रकारों उसे ही समझा जाता है जो सरकारी तंत्र का साथ दें जो प्रशासन और शासन की कमियों को उजागर करें लोगों की तकलीफों को शासन प्रशासन तक पहुंचाएं आम जनमानस की समस्याएं उठाये लोगों की दुख तकलीफ तक को शासन प्रशासन तक पहुंचाएं उनकी समस्याओं को उजागर करें वह इनके निशाने पर आ जाता है ।केवल वही पत्रकार सफल होते हैं जो सरकार की प्रशंसा के पुल बांधे और सप्लाई आर्डर और ठेके लेता रहे। सरकारी समारोहों में जाए वहां पर फैल रहे अवस्था व भ्रष्टाचार को उजागर ना करके केवल तारीफों के पुल बांधे सरकारी प्रेस विज्ञप्ति को आगे अखबार में कर दे वही असली पत्रकार बाकी सब बेकार