Sri Sri RAVI SHANKAR के मानव कल्याण हेतुसुविचार

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श्री श्री रविशंकर के सुविचार

मैं आपको बताता हूँ, आपके अन्दर एक परम आनंद का फव्वारा है, प्रसन्नता का झरना है। आपके मूल के भीतर सत्य, प्रकाश और प्रेम है, वहां कोई अपराध बोध नहीं है, वहां कोई डर नहीं है। मनोवैज्ञानिकों ने कभी इतनी गहराई में नहीं देखा

जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसके प्रति बहुत गंभीर रहा जाए। जीवन तुम्हारे हाथों में खेलने के लिए एक गेंद की तरहहै । गेंद को पकड़े मत रहो

दूसरों को आकर्षित करने में काफी उर्जा बर्बाद होती है और दूसरों को आकर्षित करने की चाहत में – मैं बताता हूँ, विपरीत होता है

हमेशा आराम की चाहत में, तुम आलसी हो जाते हो। हमेशा पूर्णता की चाहत में, तुम क्रोधित हो जाते हो। हमेशा अमीर बनने की चाहत में, तुम लालची हो जाते हो

जिनमे कोई यह नही जानता की एक दोस्त कब दुश्मन बन जाये या दुश्मन कब दोस्त बन जाये। इसीलिए हमेशा खुद पर भरोसा रखे

बुद्धिमान वो हैं जो औरों की गलती से सीखता है। थोड़ा कम बुद्धिमान वो है जो सिर्फ अपनी गलती से सीखता है। मूर्ख एक ही गलती बार-बार दोहराते रहते हैं और उनसे कभी सीख नहीं लेते

दूसरों को सुनो फिर भी मत सुनो। अगर तुम्हारा दिमाग उनकी समस्याओं में उलझ जाएगा फिर ना सिर्फ वो दुखी होंगे बल्कि तुम भी दुखी हो जओगे

मानव विकास के दो चरण है – कुछ होने से कुछ ना होना, और कुछ ना होने से सबकुछ होना। यह ज्ञान दुनिया भर में योगदान और देखभाल ला सकता है

अपने कार्य के पीछे की मंशा को देखो। अक्सर तुम उस चीज को पाना नहीं चाहते जो तुम्हें सच में चाहिए

मै आपको बताता हु की, आपके मस्तिष्क के अलावा कोई भी दुसरी चीज़ आपको परेशान नही कर सकती। हा, भले ही आपको ऐसा दिखाई देंगा की दुसरे आपको परेशान कर रहे हो लेकिन वह आपका मस्तिष्क ही होंगा

भरोसा रखना कि वहाँ आपकी कमजोरी को दूर करने के लिए कोई बैठा है। ठीक है, आप एक बार सोते हो, दो बार, तीन बार। ये कोई मायने नही रखता, मायने तो सिर्फ आपका आगे बढ़ना रखता है। इसीलिए कमजोरियों की चिंता किये बिना ही सतत आगे बढ़ते रहे

कार्य करना और आराम करना जीवन के दो मुख्य अंग है। इनमे संतुलन स्थापित करने के लिए अपनी योग्यता का उपयोग करना चाहिये

श्री श्री रविशंकर प्रवचन

हम अपने गुस्से को क्यों काबु में नही करते? क्योकि हमें पूर्णता से प्यार है। इसीलिए जीवन में थोड़ी सी जगह अपूर्णता को भी दे तभी आप अपने गुस्से पर काबू पा सकते हो

प्यार का रास्ता कोई उबाऊ रास्ता नही है। बल्कि ये तो मस्ती का मार्ग है। ये गाने का और नाचने का सबसे अच्छा मार्ग है

चाहत या इच्छा तब पैदा होती है, जब आप खुश नहीं होते, क्या आपने देखा है? जब आप बहुत खुश होते हैं तब संतोष होता है, संतोष का अर्थ है कोई इच्छा ना होना

एक निर्धन व्यक्ति नया साल वर्ष में एक बार मनाता है। एक धनाड्य व्यक्ति हर दिन, लेकिन जो सबसे समृद्ध होता है वह हर क्षण मनाता है

जब आप अपना दुःख बांटते हैं तो वह कम नहीं होता। जब आप अपनी ख़ुशी बांटने से रह जाते हैं, वो कम हो जाती है। अपनी समस्याओं को सिर्फ ईश्वर से साझा करें और किसी से नहीं क्योंकि ऐसा करना सिर्फ आपकी समस्या को बढ़ाएगा

“इच्छा हमेशा “मैं” पर लटकती रहती है, जब हम मैं को त्याग देते हैं, तब इच्छा समाप्त वा औझल हो जाती है

श्री श्री रविशंकर जी के विचार

तुम्हारे अन्दर कोई भावना आई , अप्रिय भावना , और तुमने कहा , नहीं आनी चाहिए , ये फिर से नहीं आनी चाहिए । ऐसा करके तुम उसका विरोध कर रहे हो ।जब तुम विरोध करते हो , वो कायम रहती है । बस देखो , ओह ! उसकी गहराई में जाओ । नाचो ; अपने पैरों पर खड़े हो और नाचो । मस्ती में रहो ; मस्ती में चलो

तुम्हारा मस्तिष्क भागने की सोच रहा है और उस स्तर पर जाने का प्रयास नहीं कर रहा है जहाँ गुरु ले जाना चाहते हैं, तुम्हें उठाना चाहते हैं

यदि कोई आपको सबसे ज्यादा ख़ुशी दे सकता है तो वह आपको दुःख भी दे सकता है

 

SRI SRI RAVI SHANKAR LOVE QUOTES IN HINDI

उस बात के लिए गुस्सा होना जो पहले से ही हो चुकी है, इसका कोई अर्थ नही है। आप हमेशा अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हो, नही करते तो बस आप घटित घटना को नए नजरिये से नही देखते

यदि आप खुद के दिमाग पर काबू पा सकते हो, तो आपमें पूरी दुनिया को जितने की काबिलियत है

जिसे तुम चाहते हो उससे प्रेम करना नगण्य है। किसी से इसलिए प्रेम करना क्योंकि वह तुमसे प्रेम करता है यह महत्वहीन है। किसी ऐसे से प्रेम करना जिसे तुम नहीं चाहते, मतलब तुमने जीवन से कुछ सीखा है। किसी ऐसे से प्रेम करना जो तुमसे घृणा करे यह दर्शाता है की तुमने जीवन जीने की कला सीख ली

SRI SRI RAVI SHANKAR MOTIVATIONAL QUOTES IN HINDI

चिंता करने से आपके जीवन में कोई बदलाव नही होंगा लेकिन काम करने से जरुर आप अपने आप को मजबूत बना सकते हो

तुम्हे सर्वोच्च आशीर्वाद दिया गया है , इस ग्रह का सबसे अनमोल ज्ञान दिया गया है । तुम दिव्य हो ; तुम परमात्मा का हिस्सा हो । विश्वास के साथ बढ़ो । यह अहंकार नहीं है । यह पुनः : प्रेम है

थोड़ा समय निकाल कर अपने भीतर मौन में जाओ, तुम उससे बोहत सारा बल पाओगे, तुम्हारी शोभा अनन्त बनेगी और..प्रेम अप्रबंधित हो जाएगा ..हमारी चेतना का स्वभाव ही यही ह

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