अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य पर विशेष : “नदी को बहने दो”

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस

लेखिका

कमलेश सूद, पालमपुर

‘नदी को बहने दो

रोकना मत मुझे

कहती है नदी,

मर्यादा में रहने देना

परीक्षा मत लेना मेरे सब्र की

तटबंध बस मुझे बहने देना।

कहीं अगर तोड़ कर तटों, किनारों को, अफनती, गरजती, लरतजी बढ़ी

तो रेत कर दूँगी,

गाँव, नगर और महानगर

पीस डालूँगी सारे के सारे।

खेत, खलिहान और घर मकान

सब कुछ मैदान कर डालूँगी,

इसीलिए कह रही छेड़ना मत मुझे,

बहने देना, संगीत की लय पर बढ़ने देना।

उकसाना मत कभी भूलकर भी मुझे

और मारने के लिए पत्थर तो उठाना ही मत कभी,

नहीं तो भूल जाऊँगी कि पेड़-पौधों में भी जान है,

यहाँ-वहाँ खड़े छोटे-बड़े कितने ही मकान हैं।

लपलपा जीभ सर्प सी

लील जाऊँगी बन काली सी

देव-दानव, धरती -गगन को चूर करके

पीस जाऊँगी

इसलिए तुम मुझे छेड़ना मत

शांत ही बहने देना।

तटबंध लहराऊँगी

नाचूँगी, मचलूँगी, गीत गाऊँगी

पहाड़ों को लाघ कर

धरती पर छपछपा जाऊँगी

कूहूँ भी पत्थरों के ऊपर से

करती हुई अठखेलियां

तटों से मैदान तक

शांत बह आऊँगी।

दे दूँगी नव जीवन कर दूँगी स्फुटित

पेड़-पौधे, जनमानस के हृदय को

बुझाती हुई प्यास,

उपजाती हुई रोटी,

खुशी के गीत गाती हुई

चुपचाप आगे बढ़ जाऊँगी।

और फिर अंत में……

इठलाती, मचलती, रून-झुन करती

छल-छल, कल-कल गीत गाती सागर से मिलने के लिए धीमे-धीमे बढ़ती हुई मैं भी

सागर हो जाऊँगी।

कमलेश सूद
मकान नं. 273
वॉर्ड नंबर ..2
निकट आर्य समाज मंदिर
पालमपुर…176061
(कांगड़ा)हिमाचल प्रदेश।

मोबाइल : 9418835456

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