प्रख्यात लेखिका श्रीमती सुरेश लता अवस्थी की भगवान राम पर रचित और अयोध्या में प्रस्तुत “प्राण जाए पर वचन न जाए”

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अयोध्या में कवि सम्मेलन

सुरेश लता अवस्थी,

चौकी खलेट, पालमपुर।

Mobile : 82787 39443

प्राण जाये पर वचन न जाए

*रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई*

कितनी अच्छी उच्च कोटि की रघुकुल की ये रीत,
प्राण जाए पर वचन न जाई सुन लो मेरा गीत,
इसी रीत को रघुवंशी श्री राम ने सदा निभाया था,
आने वाली पीढ़ियों को जीवन आदर्श सिखाया था।

राजतिलक के बदले जब माता ने दिया बनवास,
सीता लक्ष्मण संग चले थे वन में राम के साथ,
जनक दुलारी सीता ने भी पत्नी धर्म कमाया था,
अग्नि के उन सात फेरों का पूरा वचन निभाया था।

कैकेई ने चाहा था अवध का राज भरत को पाना,
पर भाई के उस सेवक ने यह अन्याय न माना,
धरा रूप सन्यासी नंदीग्राम में कुटिया बनाई थी,
और शत्रुघ्न ने भाई सेवा की रीत निभाई थी।

मारीच ने बन सोने का मृग सीता को ललचाया था,
राम ने तब अवतार लेने का लक्ष्य सामने पाया था।
धनुष उठा कर मृग के पीछे दौड़े तीरों को ताने,
अन्तर्यामी राम की लीला क्या है कोई कहां जाने,

मारा रावण लाये सिया विभीषण को राज दिलाया था,
अपने भक्त को राजा बना शरणागत धर्म निभाया था,
हनुमत को चरणों में बिठा कर स्वामी धर्म निभाया था,
चौदह वर्ष बिता कर वन में पिता का वचन निभाया था।

त्याग की ऐसी कहानी लिखी जो बनी जगत को प्रेरणादायी,
उर्मिला लक्ष्मण की पत्नी जो चौदह वर्ष तक़ सो नही पाई,
न ही शिकवा, न ही शिकायत पति दर्श की आस लगाई
इस घर से अब अर्थी निकले इसी वचन की रीत निभाई।

कलियुग में भी प्रभु आपने सभी कष्ट चुपचाप सहे,
कई वर्षों तक़ घर से बेघर प्रभु आप तम्बू में रहे,
अब तो भव्य महल बनेगा फिर से लौट के आओगे राम,
एक बार फिर धनुष उठा लो लता की ये फरियाद है राम,
इस कलियुग में बहुत से रावण उनका कर दो काम तमाम,
जैसे रावण का वध कर के, लंका से लौटे थे राम,जैसे रावण का वध करके, लंका से लौटे थे राम।।

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