हिमालयन गद्दी यूनियन हिमाचल प्रदेश ने भरी हुंकार, नहीं मिला इन्साफ तो चुनाव का बहिष्कार

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हिमालयन गद्दी यूनियन का गठन सन 2017 में हुआ था जिसका मुख्य उद्देश्य यह था कि सभी उपजातियां मिलकर एक प्रस्ताव पारित करके उसे सरकार के समक्ष रखें ताकि बरसों से अन्याय का शिकार हो रही इन उप जातियों को न्याय मिल सके।

उल्लेखनीय है कि वर्तमान में हिमालयन गद्दी यूनियन में लगभग 350 लोग सेंट्रल कमेटी व कोर कमेटी के पदाधिकारी हैं।

इसके अलावा गद्दी समुदाय की इन 6 उप जातियों के लगभग पौने चार लाख मतदाता है और हर विधानसभा क्षेत्र में जैसे कि बैजनाथ विधानसभा क्षेत्र, पालमपुर, धर्मशाला, शाहपुर, नूरपुर, ज्वाली, भटियात, बनीखेत, चंबा सदर, भरमौर, बैजनाथ और चुराह 11 विधानसभा क्षेत्र बनते हैं और अगर इसमें मतों का अंतराल देखा जाए तो कम से कम 10-12 हजार वोट और तीन चार ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं कि जहां 20 हज़ार से 25 हज़ार वोट हैं मात्र इन 6 उपजातियों के।

इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार बनाने में किसका योगदान सर्वाधिक रहेगा इनसे उप जातियों के मतदाताओं का या गिने-चने य ठाकुर कहलाए जाने वाले वाले नेताओं का?

यह एक अति गंभीर और विचारणीय विषय है जिसे हर सरकार को, हर राजनीतिक पार्टी को सस्ते में नहीं लेना चाहिए। यह एक अत्यंत गंभीर प्रश्न है राजनीतिक दृष्टि से भी।

हिमालयन गद्दी यूनियन ने मुख्यमंत्री को चेताते हुए कहा है कि यदि उन्हें इस विषय में कोई संदेह है तो हिमालयन गद्दी यूनियन के सभी पदाधिकारियों को भी बिठाया जाए और वर्तमान में जो गद्दी ठाकुर नेता हैं उन्हें भी साथ बिठाया जाए और दोनों के बीच में एक बहस करवाई जाए तो मुख्यमंत्री जी स्वयं अंदाजा लगा लेंगे कि आपको यह किस तरह से और किन स्वास्थ्य पूर्ण विषयों की ओर गुमराह कर रहे हैं।

हिमालयन गद्दी यूनियन ने कहा मुख्यमंत्री जी! इन लोगों की और हमारी एक ही वेशभूषा है । एक ही तरह के धार्मिक रिवाज है। मरने -जीने में एक ही तरह की रस्में अदा की जाती हैं । जो हमारा चोलु, टोपु, पुरुषों का पहनावा है और महिलाओं का लुआंचडी, डोरा है वही ये लोग भी पहनते हैं और हमारी भाषा भी एक है तो फिर इसमें भिन्नता क्यों है? अन्याय क्यों है? उच्च नीच क्यों है?

इस बात का जवाब इन ठाकुर नेताओं को देना ही होगा। यह बात भी सर्वविदित है कि गद्दी समुदाय को उप-जातियों में बांट कर राजनीतिक षड्यंत्र के तहत ये लोग वर्षों से राजनीति कर रहे हैं।

हिमालयन गद्दी यूनियन ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि हमारे माननीय किशन कपूर जी जो कि लोकसभा का चुनाव जीतकर लोकसभा में पहुंचे हैं और भारी मतों से जीते हैं इस महत्वपूर्ण जीत की हमें अत्यधिक खुशी हुई थी और हमारी उप जातियों ने दिन- रात प्रयास करके और भारी संख्या में मत देकर उन्हें विजयश्री दिलाई थी।

इन उप जातियों द्वारा माननीय किशन कपूर जी को अपने लाखों मत देकर जिताने का एक मात्र यही उद्देश्य था कि वह हमें भी अपना समझें लेकिन लोकसभा में जाकर  माननीय किशन कपूर जी भी हमें पूरी तरह से भूल गए । तो अब न्याय ना मिलने पर इन उप जातियों के लाखों मतदाता भी अब उन्हें भूलने की कगार पर हैं। जो प्यार, सम्मान और सहयोग उन्होंने अपने गद्दी नेताओं को पूर्व में दिया है अब वे उन्हें शायद नहीं दे पाएंगे।

ध्यान देने योग्य बात है कि ये जो गद्दी समुदाय के लोग वोट मांगने के लिए निकलते हैं, ये गद्दी जाति विशेष जाति नहीं है । गद्दी एक समुदाय है इसमें 13 जातियां हैं। लेकिन जो यह छ उपजातियां अपने साथ गद्दी शब्द जोड़ने से क्यों वंचित रही हैं आज तक, जैसेकि गद्दी धौगरी, गद्दी रिहाड़े, गद्दी बाडी, गद्दी लोहार, गद्दी सिप्पी जो उप जातियां हैं यही असल में गद्दी है जोकि कांगड़ा, चंबा जिला के अलावा संपूर्ण भारत में कहीं भी  नहीं पाई जाती है और यही जातियां वास्तव में जनजातीय दर्जा लेने का हक रखती हैं।

जब भी विधानसभा का चुनाव हो या लोकसभा का चुनाव हो हमारे नेता जी जो जनजातीय नेता है उन्हें जब हमारी उप जातियों के वोट लेने होते हैं तब कहते हैं कि आप तो हमारे भाई हैं, आप हमारे परिवार के सदस्य हैं और हमारा और आपका तो मूल रूप से सदियों पुराना संबंध है और आप हमें वोट दें ।

विडंबना इस बात की होती है कि जब वोट लिए जाते हैं उस वक्त कहते हैं उनालि टल्ली  जिसका अर्थ होता है कि जो गद्दी जाति के लोग ऊनी कपड़े पहनते हैं उसे उनाली टल्ली कहा जाता है और जब वोट हो जाते हैं तो उसके बाद यह लोग इन उप जातियों के लोगों को दरकिनार करते हुए हीन भावना से देखते हैं।

जब हमारा इन उप जातियों का एक समूह बना 2017 में तो उसके बाद हम सभी लोग मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश श्री जयराम ठाकुर जी से 8 बार मिले और जय राम जी ने हमारे इस कार्य को अमलीजामा पहनाने के लिए जिला कांगड़ा के जिलाधीश श्री राकेश प्रजापति जी जिन्होंने गहन छानबीन की हमारी उप जातियों के बारे में और छानबीन में पाया गया कि 1867 का गैजेटियर है जोकि अंग्रेजो के समय का था , उस में भी हमारी जातियों के साथ गद्दी शब्द लगा हुआ था और 1922-23 के गैजेटियर में भी पाया गया कि इस समुदाय की जो प्रजातियां हैं वही असल में गद्दी है और आज की तारीख में भी जो हमारे लोग भरमौर तहसील में रहते हैं। उन लोगों के साथ गद्दी शब्द लगा हुआ है और जिला कांगड़ा और जिला चंबा की चार जो तहसीलें हैं , विधानसभा क्षेत्र हैं उनमें इन लोगों के नाम के साथ गति शब्द नहीं जुड़ा है जबकि भरमौर तहसील में इन लोगों के नाम के साथ गद्दी शब्द भलीभांति जुड़ा हुआ है। तो एक से दूसरे जिले में भेदभाव क्यों है?

यह एक बड़ी विडंबना रही है कि एक सोची-समझी चाल के तहत यह रणनीति बनाई गई है। हमारे इन नेताओं के द्वारा ही जब 2003 में हमारे हिमांचल से माननीय आदरणीय श्री शांता कुमार जी जो केंद्र में मंत्री रहे और उस वक्त हमारे हिमाचल के मंत्री और विधायक जो गद्दी , ठाकुर हैं इन लोगों ने माननीय शांता कुमार जी को अपना प्रस्ताव रखा और फिर उन्होंने ना जाने कैसे-कैसे केंद्र की टीम को बुलाया और केंद्र की टीम ने पालमपुर के क्षेत्र में और जिला चंबा के डलहौजी क्षेत्र में तथा तीता चौराह के क्षेत्र में सर्वे किया और सर्वे में जो हमारी उप जातियों के गरीब लोग जो लकड़ी चराई का काम करते हैं और लकड़ी चराई में जो ठेलियों के छिलके यानी सिक्कड़ निकलते हैं उनसे अपने घरों की छतें बनाते हैं और साथ ही धूल मिट्टी में इन जातियों के लोगों के जो बच्चे खेलते हैं उन्हीं के फोटो खींच कर सर्वे टीम को बताया कि हम लोग ही जनजाति के लोग हैं और हमारी इतनी बुरी दुर्दशा है तथा इसीलिए हम मांग करते हैं कि हमें जनजातीय दर्जा प्रदान किया जाए और केंद्र व राज्य सरकार ने ऐसा ही किया।

उस टीम ने यह सिद्ध कर दिया और हमारे हिमाचल के हिंदू,  गुजरो को भी इन्होंने अपने साथ शामिल कर लिया और उन्हें भी जनजाति का दर्जा दे दिया गया क्या उस समय उन्हें इन उप जातियों की याद नहीं आई? कितना बेहतर होता अगर हिंदू जातियों को भी जनजातीय का दर्जा दे दिया जाता और उनके नाम के साथ गद्दी शब्द जुड़ जाता क्योंकि 2003 से पहले जिला कांगड़ा के गद्दी ठाकुर लोग और चंबा जिला की 4 तहसीलों के गद्दी ठाकुर लोग ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में आते थे और एक समझौते के तहत उन्होंने जनजातीय दर्जा ले लिया और सरेआम एक खाई पैदा कर दी जोकि इन उप जातियों के साथ घोर अन्याय है।

उस समय जनजातीय दर्जा मिलने पर 2003 में एक महासम्मेलन किया गया और उस महा सम्मेलन में हमारे केंद्रीय मंत्री जी काफी स्वागत किया गया क्योंकि वह स्वागत करने योग्य थे परंतु जब हमारा एक डेलीगेट आदरणीय शांता कुमार जी से 2 वर्ष पूर्व मिला तब शांता जी ने भी माना कि त्रुटि तो कहीं ना कहीं हुई है और मुझे भी गुमराह किया गया है । मैं आज आपकी पीड़ा को समझता हूं और आप मुख्यमंत्री जी से मिलें और मुख्यमंत्री जी आपके इस कार्य को देखेंगे लेकिन मुख्यमंत्री जी से 8 बार मिलने के उपरांत लिखित कारवाही होने के बावजूद भी अभी इस मामले में कोई उचित कार्यवाही अमल में नहीं लाई जा सकी है जोकि गहन चिंता और दुख का विषय है।

जिलाधीश महोदय ने भी जो पुराना रिकॉर्ड  चीफ सेक्रेटरी राजस्व विभाग को भेजा है  मुख्यमंत्री जी बताएं कि आपने इस मामले में क्या कार्रवाई करवाई है ।

अब हमने 28 अप्रैल को धर्मशाला में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और उसमें 15 मई तक का अल्टीमेटम दिया गया है हिमाचल सरकार  अगर हमारा कार्य नहीं करती है तो हम विरोध प्रदर्शन करेंगे, हम धरना देंगे और इसी तरह फिर भी अगर काम नहीं करती है तो हम लोग 10-11 विधानसभा  क्षेत्रों में जहां हमारे लोग पाए जाते हैं वहां हम लोगवोट नहीं देंगे तथा चुनावों का बहिष्कार करेंगे।

2011 की जनगणना के अनुसार हमारा वोट बैंक 4.5 लाख से 5 लाख है उसमें से अगर ये उपजातिियां अलग हो जाएं तो इनका वोट बैंक मात्र डेेेढ़  से पौने दो लाख ही रह जाता है। जिस दिन हम अलग हो गए तो यह जीत के बताएं।

उल्लेखनीय है कि 1 मई रविवार को हिमालयन गद्दी यूनियन हिमाचल प्रदेश के पालमपुर मंडल का गठन विधिपूर्वक कर लिया गया है जिसमें भारी संख्या में लोग पहुंचे थे।

इसी तरह ही समस्त जिला चंबा और कांगड़ा विधानसभा क्षेत्रों में मंडलों का गठन करके एक विशाल रैली का आयोजन किया जाएगा जिसमें कि हजारों की संख्या में महिलाएं, पुरुष तथा नौजवान एकत्रित होंगे और सरकार के विरुद्ध अपना धरना-प्रदर्शन करेंगे तभी शायद सरकार कुम्भकर्णी नींद से जागेगी तथा तभी सरकार को पता चलेगा कि इन नेताओं ने सरकार में बैठे मंत्रियों व मुख्यमंत्री जी को कितनी बुरी तरह से गुमराह किया है ।

इस विषय में अगर हिमाचल सरकार में बैठे लोगों को तकलीफ है तो केवल इन नेताओं को ही है, दूसरे मंत्रियों और अन्य विधायकों को इस बारे में अभी तक कुछ ज्ञान नहीं है। वे तो यही समझते हैं कि सभी लोग गद्दी जनजाति से ही सम्बन्ध रखते हैं।

रमेश भोला,
मीडिया प्रभारी ,
हिमालयन गद्दी यूनियन, हिमाचल प्रदेश।

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