HIMACHAL हाई कोर्ट के निर्णय को 2 साल बाद भी लागू नहीं कर पाई हिमाचल सरकार, क्या इस देश में कानून को नहीं माना जाता?: प्रवीण शर्मा
जब इस देश में समानता का अधिकार खत्म कर दिया है तो सरकार किस प्रकार से देश को विकसित बता रही है । दो साल पहले हाई कोर्ट की अंतिम बैंच समानता के अधिकार के लिए अपना अंतिम फैसला सुनाया था एलपीए 54 के तहत एक याचिका 2014 में दर्ज हुई थी ।
👉आखिर मामला क्या था ?
हमारी सरकारें हर समय लोगों को विकसित करने की बात कहती हैं परन्तु हाई कोर्ट के ऐतिहासिक फैसलों पर विचार नही करती । जब 2008 में सरकारी सेवाओं में पुराने आर एन्ड पी रुलज के तहत नियमित रखने का प्रावधान था तो धूमल सरकार ने शिक्षा विभाग में किस अधिसूचना के तहत नियुक्तियां अनुबन्ध पर कर दी । क्या इस देश में कानून को नही माना जाता ।
👉अध्यापक संघ राज्य मीडिया सचिव व नयू मूवमेंट फार ओल्ड पेंशन संघ राज्य अध्यक्ष प्रवीण शर्मा ने समानता के अधिकार के तहत पक्ष रखते हुए कहा कि हाई कोर्ट के फैसलों को सरकार क्यों नही मानती । 2008 में स्कूलों में शिक्षकों की भर्तियां हुई जो कि पुराने आर एन्ड पी रुलज के तहत नियमित होनी चाहिए थी जबकि हाई कोर्ट ने भी अपनी अंतिम बैंच के फैसले में शिक्षकों को नियक्ति तिथि से नियमित करने के आदेश दिए पर सरकार ने हाई कोर्ट के फैसलें का भी सम्मान नही किया । पीड़ित लोग न तो अपने हक की आवाज बुलंद कर सकते हैं और न ही सरकार सुनती है तो ऐसे में फरयादी किस सरकार से बात करे । 2008 में मात्र 8220 रुपये में हमारे शिक्षकों को दूर दराज इलाकों में भेजा गया जो कि हिमाचल प्रदेश सरकार की तानाशाही थी । हमारे बहुत से शिक्षक रिटायर हो चुके हैं और 2008 में नियुक्त हुए थे । आज कबाड़ जैसे कार्य करने के लिए मजबूर हैं । एलपीए 54 के तहत अगर सरकार हाई कोर्ट के फैसले के तहत अगर लाभ देती है तो हजारों लोगों के साथ साथ सरकार का गुणगान करने वाले भी जिंदा रहेंगे । पेंशन अगर नही देनी तो फिर सबकी पेंशन बन्द की जाए ताकि समानता का अधिकार जिंदा रहे । प्रवीण शर्मा ने कहा कि हम किसी सरकार के खिलाफ नही हैं सिर्फ समानता के अधिकार की बात करते हैं ।