प्रशांत किशोर ने कहा कांग्रेस हिमाचल और गुजरात चुनाव हार रही है* *अब तो सबसे बड़े हकीम ने भी हाथ खड़े कर दिए* *तो क्या कांग्रेस मुक्ति की तरफ़ बढ़ रहा है भारत* *आख़िर कौन है पीके और क्या हैं उनके भविष्यवाणी के मायने * *गुजरात और हिमाचल में डूबती कांग्रेसी कश्ती की इन्साइड स्टोरी*

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*प्रशांत किशोर ने कहा कांग्रेस हिमाचल और गुजरात चुनाव हार रही है*
*अब तो सबसे बड़े हकीम ने भी हाथ खड़े कर दिए*
*तो क्या कांग्रेस मुक्ति की तरफ़ बढ़ रहा है भारत*
*आख़िर कौन है पीके और क्या हैं उनके भविष्यवाणी के मायने *
*गुजरात और हिमाचल में डूबती कांग्रेसी कश्ती की इन्साइड स्टोरी*

कांग्रेस के उपचार में लगे अव्वल दर्जे के हकीम ने अब कह दिया कि अब कांग्रेस का कुछ नहीं हो सकता है। वह आने वाले हिमाचल और गुजरात के विधानसभा चुनाव भी हार जाएगी। जहां से पार्टी आलाकमान को काफ़ी उम्मीदें हैं और उम्मीदें हो भी क्यों नहीं, इन दोनो राज्यों में कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल जो है।

कांग्रेस के चुनावी रणनीति का काम सँभाल चुके जाने माने चुनाव स्ट्रेटजिस्ट प्रशांत किशोर ने अपनी भविष्यवाणी में कहा है कि कांग्रेस इस बार गुजरात और हिमाचल के चुनाव बुरी तरह हार जाएगी। कांग्रेस के चिंतन शिविर से कुछ भी हासिल नहीं होगा।

दरअसल कांग्रेस आलाकमान और प्रशांत किशोर के बीच दो हफ़्ते लम्बी बात बे-नतीजा रही। प्रशांत किशोर कांग्रेस के लिए काम करने के लिए कुछ मामलों में एकाधिकार चाह रहे थे और चापलूसी के बजाय क्वालिटी वाली चीजों को तरजीह देना चाहते थे। लेकिन कांग्रेस के कुछ ख़ास दरबारी अलाकमान की गुड बुक में अपने नम्बर कहाँ कम नहीं होने देते। लिहाज़ा प्रशांत को भी लगा डूबती नैया में बैठने से बेहतर है कि किनारे से नजारा देखा जाए।

गुजरात कांग्रेस से वास्ता रखने वाले हार्दिक पटेल भी इसी हफ़्ते कांग्रेस की नाव से उतर चुके हैं। हार्दिक ने तो कांग्रेस की नैया डुबाने का आरोप मझधार नहीं माझी पर ही जड़ दिया।

प्रशांत किशोर के यह शब्द भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत अभियान की दिशा में एक अहम क़दम के तौर पर देखा जा सकता है। परिवार-पुत्र मोह के बीच फ़ंसी कांग्रेस को निति और जनता की डिमांड के हिसाब से चलाकर, बोझ बन चुके नेताओं को किनारे बैठाकर, पार्टी को कुछ गति देने की क्षमता रखने वाले प्रशांत किशोर को पार्टी के नेताओं ने ही किनारे लगा दिया।

आपसी खींचतान में उलझी कांग्रेस का आख़िर भविष्य सच में क्या होगा? यह तो वक्त बताएगा लेकिन जिस तरह से ‘आप’ इन दोनो राज्यों में अपने हाथ पैर मार रही है। इससे यह कहना मुश्किल नहीं है कि वह कांग्रेस के हिस्से के कुछ वोट पर अपना पंजा मार दे और कांग्रेस दहाई में पहुँचने को तरस जाए।

यह पहली बार नहीं है जब प्रशांत किशोर कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं। कांग्रेस और प्रशांत का साथ चोली-दामन जैसा रहा है। वह पहले राहुल गांधी और सोनिया गांधी का लोक सभा चुनाव देखते थे। उस समय उनकी रिपोर्टिंग तो बहुत छोटे नेता को थी। लेकिन जब तक प्रशांत मां-बेटे का चुनाव प्रबंधन देखे दोनों को जीत मिली। 2109 में तो राहुल गांधी भी अमेठी से हार गए।

प्रशांत ने पहले भी 2017 विधानसभा चुनाव में भी यूपी कांग्रेस के कायाकल्प का बीड़ा उठा चुके हैं। लेकिन दशकों से जमें जड़ीले नेताओं की वजह से उन्हें मुंहकी खानी पड़ी। लोग तो प्रशांत के यूपी मिशन को उनका वाटरलू तक कहने लगे। लेकिन प्रशांत किशोर ने बंगाल के चुनाव में खुद को फिर से साबित किया।

अब प्रशांत किशोर कोई बातें हवा में क्यों नहीं करते इसे भी समझ लीजिए।

याद करिए पिछले साल अप्रैल में; पश्चिम बंगाल के चुनाव के दौरान देश के वामपंथी पत्रकारों के साथ क्लब हाउस मीटिंग की ऑडिओ लीक हुई बात चीत के बारे में। जिसमें प्रशांत किशोर मोदी विरोधी एजेंडा चलाने वाले पत्रकारों से कह रहे थे कि देश में मोदी का एक कल्ट है। बंगाल में मोदी एक कल्ट है (यहाँ यह भी याद रखिए कल्ट के समर्थक नहीं उपासक होते हैं) जिसका कुछ किया नहीं जा सकता है। यानी जिसे आप बरगला नहीं सकते। बहुत हंगामा हुआ, पत्रकार मंडली बेनक़ाब हुई।

ख़ैर, प्रशांत किशोर मीडिया के सामने आए और सवालों के जवाब दिए और कहा हाँ ऐसा है। लेकिन इसी के साथ प्रशांत किशोर ने एक बात सीना ठोंक कर चुनौती देते हुए और कही यदि भाजपा वहाँ पर 100 का आँकड़ा छू गयी तो मैं इस स्ट्रेटजिस्ट के काम से सन्यास ले लूँगा।

बंगाल का रिज़ल्ट आया भाजपा को 77 सीटें मिली। लेकिन भाजपा का कुल वोट प्रतिशत 38 था। जो पिछले चुनाव के समय मात्र 10 प्रतिशत था। भाजपा के 28 प्रतिशत वोटर्स बढ़ गए थे। यानी मोदी का कल्ट है। यह तीन पैराग्राफ़ मैने सिर्फ़ यह बताने के लिए खर्च किए कि आप जान सकें कि प्रशांत किशोर कोई बात हवा में नहीं करते हैं।

प्रशांत किशोर 2104 के चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी के चुनावी कैम्पेन का ज़िम्मा सम्भाल चुके है। भाजपा और नरेंद्र मोदी के साथ काम करते समय कई मामलों में प्रशांत किशोर की बातों को कोई भी काट नहीं सकता था। यह बात अलग है कि उनकी सारी बातें साइंटिफ़िक सर्वे पर आधारित होती थी।

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