तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में…

0

दिल को छू लेने वाली कुछ पंक्तियां

Raj Arora

*तन्हा बैठा था एक दिन मैं अपने मकान में,*
*चिड़िया बना रही थी घोंसला रोशनदान में।*

*पल भर में आती पल भर में जाती थी वो।*
*छोटे छोटे तिनके चोंच में भर लाती थी वो।*

*बना रही थी वो अपना घर एक न्यारा,*
*कोई तिनका था, ना ईंट उसकी कोई गारा।*

*कुछ दिन बाद….*
*मौसम बदला, हवा के झोंके आने लगे,*
*नन्हे से दो बच्चे घोंसले में चहचहाने लगे।*

*पाल रही थी चिड़िया उन्हे,*
*पंख निकल रहे थे दोनों के*
*पैरों पर करती थी खड़ा उन्हे।*

*देखता था मैं हर रोज उन्हें*
*जज्बात मेरे उनसे कुछ जुड़ गए ,*
*पंख निकलने पर दोनों बच्चे*
*मां को छोड़ अकेला उड़ गए।*

*चिड़िया से पूछा मैंने..*
*तेरे बच्चे तुझे अकेला क्यों छोड़ गए,*
*तू तो थी मां उनकी*
*फिर ये रिश्ता क्यों तोड़ गए..*

*चिड़िया बोली…*
*परिन्दे और इंसान के बच्चे में यही तो फर्क है*

*इंसान का बच्चा…..*
*पैदा होते ही अपना हक जमाता है,*
*न मिलने पर वो मां बाप को*
*कोर्ट कचहरी तक भी ले जाता है।*

*मैंने बच्चों को जन्म दिया*
*पर करता कोई मुझे याद नहीं,*
*मेरे बच्चे क्यों रहेंगे साथ मेरे*
*क्योंकि मेरी कोई जायदाद नहीं*

🙏🙏

Leave A Reply

Your email address will not be published.