भक्ति का सार : भक्ति जब व्यक्ति में प्रवेश करती है, तो व्यक्ति को “इन्सान” बना देती है

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भक्ति

भक्ति जब भोजन में प्रवेश करती है, तो भोजन को “प्रसाद” बना देती है। भक्ति जब भूख में प्रवेश करती है, तो भूख को “व्रत” बना देती है। भक्ति जब पानी में प्रवेश करती है, तो पानी को “चरणामृत” बना देती है।

भक्ति जब सफर में प्रवेश करती है, तो सफर को ” तीर्थयात्रा” बना देती है।

भक्ति जब संगीत में प्रवेश करती है, तो संगीत को “कीर्तन” बना देती है।

भक्ति जब घर में प्रवेश करती है, तो घर को “मन्दिर” बना देती है।

भक्ति जब कार्य में प्रवेश करती है, तो कार्य को “कर्म” बना देती है।

भक्ति जब क्रिया में प्रवेश करती है, तो क्रिया को “सेवा” बना देती है।

भक्ति जब व्यक्ति में प्रवेश करती है, तो व्यक्ति को “इन्सान” बना देती है।

जय जय श्री

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