बचा लो मुख्यमंत्री सुखविन्दर सुक्खू जी! -गरीबों के मसीहा क्या सनाझ पाएंगे गरीबोँ की आंसुओं में डूबी इन नम आंखों का दर्द? *आपके हेल्थ कार्डों का हो रहा बेदर्दी से बहिष्कार, गरीबों में मची हाहाकार, अब केवल आपसे ही है उन्हें न्याय का इन्तज़ार..*.

Govt. must undertake this Eye Hospital to save it's future

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INDIA REPORTER TODAY

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SHIMLA : INDIA REPORTER TODAY Bureau

मुख्यमंत्री जी, गरीब जनता की सुनो चीखो-पुकार, गरीब जनता को लूटने से वचाइये।

लोकप्रिय मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की चमचामाती छवि को धुमिल कर तार-तार कर रहा यह आंखों का एक चैरिटेबल हॉस्पिटल,

सरकारी योजनाओं को घटिया और बेकार बता कर, गरीबों को गुमराह करके सरेआम लूटे जा रहे करोड़ों रुपए,

क्या मुख्यमंत्री गरीबों और बेसहारा लोगों को दिलाएंगे इन्साफ

सरकार में अपनी पहुंच होने का डंका पीट कर अस्पताल की प्रबंधकारिणी के कुछ आका उठा रहे गलत फ़ायदा, मुख्यमंत्री की छवि को कर रहे धुमिल

कुछ परमार्थी लोग फलों का पेड़ उगा कर, उसे पालपोस कर बड़ा करके फल तोड़ने के लिए अक्सर उन हाथों में छोड़ जाते हैं जो उस पेड़ का बेरहमी से कत्ल करके मात्र अपनी स्वार्थ पूर्ति करने तक ही सीमित रहते हैं क्योंकि बाग का जितना दर्द उसके माली को होता है उतना फल खाने वालों को नहीं।
परिणामस्वरूप वह हरा-भरा पेड़ एक दिन टुकड़े-टुकड़े होकर ज़मीन पर आ गिरता है।

कुछ ऐसी ही स्थिति देखने को मिल रही है पालमपुर के समीप स्थित एक आंखों के अस्पताल में।

पालमपुर के नज़दीक स्थित आंखों का एक अस्पताल मुख्यमंत्री द्वारा गरीब और लाचार जनता के लिए चलाई गई जनहित की योजनाओं की सरेआम धज्जियां व खिल्ली उड़ा के, इन योजनाओं के अंतर्गत होने वाले इलाज को घटिया बता कर, रोगियों के मन में किन्तु-परन्तु डाल कर, उन्हें अच्छी तरह गुमराह करके, ज़बरदस्ती उनपर आंखों की महंगी सर्जरी थोप कर करोड़ों रुपए ऐंठने के चक्रव्यूह का पर्दाफ़ाश होने के लिखित सनसनीखेज समाचार प्राप्त हुए हैं।

यहां हम आपको बताते चलें कि बरसों से, लोगों से एक-एक रुपये का दान इकट्ठा करके एक आई हॉस्पिटल का सपना संजोने वाले एक मसीहा का सपना इतनी बुरी तरह से तार-तार होग, इस दर्दनाक हकीकत की उन्होंने अपने जीते जी कभी कल्पना भी नहीं की होगी। जिस उद्देश्य को लेकर इस अस्पताल का निर्णाण किया गया था वह आज लहुलुहान होता नजर आ रहा है।

यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि तमाम डॉक्टर और स्टाफ तो पूरी ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा और अत्यधिक मेहनत से अपना कार्य कर रहे हैं लेकिन अस्पताल की निरंकुश मैनेजमेंट के प्रेशर तले सभी पिसने को मजबूर हैं। उनका क्या दोष?

अगर कोई मैनेजमेंट की तानाशाही के खिलाफ आवाज़ उठाने की कोशिश करता है तो उसे नौकरी से निकालने की धमकी दी जाती है। आखिर बाल-बच्चेदार लोग जाएं तो कहां जाएं?
जब मामले की तह तक जाने हेतु पत्रकार ने मैनेजमेंट के एक आका से बात की तो उन्होंने इंसानियत की सभी हदें लांघते हुए लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का गला घोंटते हुए उसे माननीय न्यायालय में सबक सिखाने की धमकी तक दे डाली।

हनारे पत्रकार ने जनता के प्रति अपने कर्तव्य को निभाते हुए, जान जोख़िम में डाल कर यह समाचार आप और सरकार तक पहुंचाने की हिम्मत दिखाई है क्योंकि उस हॉस्पिटल की कार्यकारिणी में कुछ सनकी और मनमाने लोगों का बोलबाला है जो स्वयं की सरकार में गहरी पैठ होने का दावा करके कुछ भी करने की चेरावनी देते हैं। हालांकि कार्यकारिणी में कुछ भले मेंबर भी हैं लेकिन उनकी एक नहीं चलती। वे न के बराबर हैं। वयोवृद्ध हैं।

इस अस्पताल दिनोदिन बदतर होती हालत को देख कर आज उस महान व्याक्ति की आत्मा भी खून से लथपथ हो रही होगी, केवल यह देख-देख कर कि जिन मुहाफिज़ों के हाथों ने वह अपनी उम्र भर की पूंजी, अपनी वसीयत सौंप कर गए हैं, वे हाथ इतने ज़ालिम और क्रूर निकलेंगे, इतनी बेरहमी से गरीब जनता की जेबों पर डाका डालेंगे, यह उन्होंने कभी सींचा भी नहीं होगा। उन्होंने यह भी नहीं सोचा था कि उनके बाग के नए माली उनके निर्णयों और समाजसेवा की भावना की अनदेखी कर उनके बाग को एक साल के बाद ही उजड़ने की स्थिति में ला खड़ा करेंगे।

ध्यान देने योग्य बात है कि पिछ्ले काफी दिनों से हिमाचल की अग्रणी *मिशन अगेंस्ट करप्शन* संस्था को ये शिकायतें मिल रही थीं कि आंखों का यह निजी अस्पताल नारीज़ों की जेबों पर डाका डाल कर अपने चैरिटेबल स्टेटस का अनुचित लाभ उठा रहा है।

पीड़ितों ने रोते-रोते अपनी पीड़ा बयान करते हुए जब अपना हालेदिल सुनाया तो उनकी भीगी आंखें बिना कहे उनके दुख, उनकी लाचारी बयान कर रही थीं।

कुछ ने लिखित शिकायत  में, तो किसीने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पहले तो पूरा दिन बर्बाद करजे, भूखे वेट लाइनों में लग कर इन असहाय बुजुर्गों ने अपनी आंखें चेक करवाई। सीनियर सिटिजन्स को यहां कोई अधिमान नहीं दिया जाता है। पार्किंग तक कि व्यवस्था नहीं है।

बाद में जब सरकारी कल्याणकारी योजनाओं के तहत आंखों में लेंस डलवाने की बात आई तो संवंधित स्टाफ ने, उन्हें ऊपर से मिली हिदायतों के अनुसार अच्छी रारह गुमराह करने की कोशिश की। उनका माइंड वाश करने के पूरे हथकण्डे अपनाए गए ताकि हिम केअर कार्ड के तहत ऑपरेशन न किया जा सके क्योंकि उसमें मार्जन कम होता है।

इस चक्रव्यूह रचना के अंतर्गत मरीज़ों को यह कह कर गुमराह किया गया कि सरकार द्वारा गरीबों व आम आदमी को आयुष्मान भारत और हिम केअर जैसी योजनाओं के तहत जो मोतिया बिंद के मरीजों की आंखों में जो IOL यानी इंट्रा ऑक्युलर लेंस डाले जा रहे हैं वे सब घटिया क्वालिटी के होते हैं। कुछ ही माह बाद इनसे दिखना बंद हो जाता है। नज़र धुंधली पड़ जाती है। आंखों में और भी कई रारह की सनस्याएँ पैदा हो जाती हैं जिनका बाद में इलाज करना दुर्लभ या असंभव हो जाता है। आंखों से अकसर पानी बहना शुरू हो जाता है। आंखों नें दर्द होती रहती है, सफेद मोतिया काले मोतिये में वदल जाता है जोकि भयंकर साबित होता है…आदि आदि … इस रारह की झूठी बातें बता कर, बरगला कर, उन्हें गुमराह करके मरीजों को पहले तो अच्छी तरह डराया जा रहा है, फिर बड़े तरीके से एक चक्रव्यूह रचते हुए उन्हें महंगे लेंस खरीदने हेतु उकसाया जाता है ताकि हॉस्पिटल मोटी कनाई कर सके।
जब तहकीकात की गई तो पता चला कि जनमानस की सभी शिकायतें सही हैं।
जो मरीज डर के मारे महंगा लेंस डलवाने को मजबूरन राजी हो जाते हैं उनकी बात तो छोड़िए।
अब जो दूसरा खतरनाक खेला यह अस्पताल कर रहा है वह आपको बताते हैं। यह जानकर आपका भरोसा इस चैरिटेबल अस्पताल से हमेशा के लिए उठ जाएगा।

सर्वविदित है कि अस्पताल की प्रबंधकारिणी तो मानसिक रूप से चक्रव्यूह रच कर अपना गंदा खेल खेल कर गिद्ध की तरह रोगियों को अपने नुकीले पंजों में जकड़ने को हमेशा बेताब रहती है जबकि इसके विपरीत जो मरीज आंखों का आपरेशन करवाने हेतु यहां आते हैं उन्हें इस चक्रव्यूह की, इस चाल की ज़रा सी भी भनक नहीं होती।

बेचारे मरीज तो अपने घर से, सैंकड़ों मील दूर से भी धक्के खाते हए, मन में तरह तरह के सपने संजोए हुए यह सोच कर पूरा दिन यहां लाइनों में खड़े रह कर यह सोच कर शान्ति से सब कुछ सहता है कि चलो मुख्यमंत्री की कृपा से वह हिम केअर हेल्थ कार्ड के तहत अपनी आंखों का मुफ्त ऑपरेशन करवा लेगा।
लेकिन उसके सारे सपने उस समय धराशायी हो कर, टूट कर बिखर जाते हैं जब अस्पताल उनके दिमाग नें सरकार के खिलाफ यह ज़हर घोल देता है कि सरकारी योजनाएं तो मात्रा दिखावा हैं, गरीबों को मूर्ख बना कर वोट लेने का जरिया नात्र हैं, और कुछ भी नहीं। इन योजनाओं के तहत जो ऑपरेशन किये जाते हैं, उनकी प्रक्रिया और क्वालिटी बेहद घटिया किस्म की होती है। इससे लोग अंधे तक हो जाते हैं।

ऐसी बातें सुन कर मरीज वास्तव में घबरा जाता है। अब उसके सामने ‘एक रारफ कुआं और दूसरी रारफ खाई’ वाली विकट स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उसपर बिजली सी गिर जाती है कि अब वह करे तो क्या करे।

अन्ततः मजबूर नारीज़ों को हॉस्पिटल की बनाई हुई गेम ही सच लगने लगती है। वह यह सोच कर परेशान हो उठता है कि हेल्थ कार्ड की आशा लिए हुए वह यहां खाली जेब लिए आया था। फिर वह डर के मारे, आंखें गंवाने के डर से हेल्थ कार्ड के अंतर्गत सर्जरी भी नहीं करवाता और सरकार और मुख्यमंत्री को कोसता हुआ, हैल्थ कार्ड को बेकार समझते हुए,मजबूरन महँगा ऑपरेशन करवाने हेतु जैसे तैसे पैसा इकठ्ठा करने हेतु निकल पड़ता है अस्पताल छोड़कर, फिर अगली तारीख पर, मोटा धन साथ लेकर आने के लिए।

यहां लूट से सम्बंधित एक और बात देखने को यह मिली कि केवल मोटा पैसा ऐंठने के चक्कर में नारीज़ को व उनके अभिभावकों के सामने अलग अलग तरह के लेंस परोस दिए जाते हैं ताकि लोगों को मूर्ख बनाया जा सके। अगर कोई कम मूल्य का लेंस या हेल्थ कार्ड वाला लेंस डलवा भी लेत है तो उसके मन में हमेशा एक उठा पटक चली रहती है कि कहीं उसकी आझ खराब न हो जाए। उसका नानसिक संतुलन खराब होने लगता है और इसका मुख्य कसूरवार होता है अस्पताल और अकेला पिस्ता है लाचार नारीज़।

अब अंत में प्रश्न यह उठता है कि असली कसूरवार है कौन?
अस्पताल हेल्थ कार्ड को बेकार और घटिया बता कर खुद करोड़ों रुपए कमा कर सरकार और मुख्यमंत्री की स्वच्छ छवि पर काला धब्बा लगा रहा है, बेसहारों, गरीबों व अनाथों के मसीहा कहे जाने वाले मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविन्दर सिंह सुक्खू की चमकती छवि पर कालिख़ पोतने का घिनोना कृत्य किया जा रहा है जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है।

एन्टी करप्शन संस्था ने माननीय मुख्यमंत्री के ध्यान में यह बड़ा कांड लाते हुए आग्रह किया है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए गरीबों को न्याय दिलवाने की तत्काल कार्यवाही अमल नें लाने की कृपा करें क्योंकि लोगों को आपसे बहुत उम्मीदें हैं। वे आपको अपना आदर्श मानने लगे हैं क्योंकि आपकी कार्यप्रणाली को देझते हुए हिमाचल के लीग आपको अपना रक्षक नान रहे हैं। आपही उन्हें न्याय दिला सकते हैं।

लोगों को पूर्ण आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास है कि आप इस नामले में त्वरित कार्यवाही का आदेश जारी करते हए खुद अपनी देखरेख में उचित छानबीन जरवाएँगे और हैल्थ कार्ड की गरिमा को बरकरार रखेंगे और चंद तानाशाह और पूंजीपतियों के दवाब में न आकर सच्चाई का दामन पकड़ कर सख़्त कार्यवाही करके न्याय की रक्षा करेंगे।

अगर फिर भी कुछ तथाकथित  लोग अपनी मनमानी से बाज़ नहीं आए और गरीबों का मज़ाक़ उड़ाते रहे तो जनता ने अपने चहेते, नसीहा, लोकप्रिय मुख्यमंत्री से गुहार लगाई है कि सरकार जल्द इस हॉस्पिटल का सरकारीकरण करके इसे अपने अधीन लेकर ग़रीबों व आम जनता के हितों की रक्षा करे व इस हॉस्पिटल के कार्यकलापों की वजह से सरकार की उज्ज्वल छवि जो धूमिल हो रहीं है, इस पर तत्काल अंकुश लगाया जा सके।

लोगों का मानना है कि जबसे कार्यकारिणी बदली है तभी से यह अस्पताल किसी न किसी सुर्खी में बना ही रहता है और मज़े की बात तो यह है कि हॉस्पिटल को सनस्यओं और आरोपों से बाहर निकालने की कोशिश कार्यकारिणी का एक भी मेंबर नहीं करता जोकि हैरानी और दुख की बात है।

अंधेर नगरी और चौपट राजा वाली लोकोक्ति यहां चरितार्थ होती दिख रही है।

मुख्यमंत्री महोदय से आग्रह रहेगा कि उन तानाशाह लोगों पर भी शिकंजा कसा जाए जो अपनी निजी रंजिशें निकालने हेतु  अपनी पहुंच सरकार में होने की बातें कह कर जनता को लूटने और पत्रकारों को मारने-पीटने और सच लिखने पर कोर्ट में घसीटने की धमकियां देकर लोकतंत्र को कमज़ोर करने की कुचेष्टा करते हैं और गरीबों के हकों पर डाका डालते हैं। ऐसे अधर्मी लोगों के कुकृत्यों के गंदे छींटे सरकार के साफ-सुथरे दामन को भी दाग़दार कर रहे हैं।

जनता को पूर्ण विश्चास है कि मुख्यमंत्री सूक्खु जी गरीबों के हितों की अवश्य रक्षा करके जनता के दुश्मनों को ऐसा सबक सिखाएंगे जो अन्य अस्पतालों के लिए ज़बरदस्त उदाहरण साबित होगा। इससे मुख्यमंत्री महोदय की छवि और अधिक उज्ज्वल होगी।

 

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