ठोकरें खाते -खाते तो यहां तक पहुचां हूं,….

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ठोकरें
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ठोकरें खाते -खाते तो यहां तक पहुचां हूं,
वरना उमर भर रास्ते ही तलाशता रहता।
कभी कंकड़-पत्थर तो कभी कांटेभी मिले,
बेपरवाह चलता रहा नहीं तो हटाता रहता।
कभी बिच्छू सांप और कभी सपोले भी मिले,
हटानें में कामयाब नहीं ज़हर उतारता रहता।

कभी खाया कभी भूखे पेट कमाने निकला,
खाने का इंतजार तो बहाने तलाशता रहता।

कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल प्रदेश

Mob : 94184 25568

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