महामहिम राज्यपाल व यशस्वी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की आपसी सूझबूझ से जल्द होने वाला है कुलपतियों की नियुक्ति का रास्ता प्रशस्त
All fingers are not in the same length. But when they bend, all stand equal. Life becomes easy when we bend & adjust to all situations
हिमाचल प्रदेश में अन्य कुलपतियों की नियुक्ति के बाद अब जल्द होगी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर के वाईस चांसलर की नियुक्ति, ऐसे मिल रहे संकेत
कर्मचारियों की 100 प्रतिशत पेंशन का खर्चा हिमाचल प्रदेश सरकार वहन करे…
यूनिवर्सिटी का लगभग 90 प्रतिशत खर्चा सरकार की जेब से जाए …..
इसके बावजूद कुलपति की नियुक्ति में राज्य सरकार को कथित रूप से दरकिनार करने की कोशिश प्रजातंत्र पर कुठाराघात के समान है।
जनता के अनुसार कुलपतियों की नियुक्ति का हक जनता के लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के पास होना अनिवार्य है। जबकि देखने में यह आ रहा है कि भाजपा के महामहिम राज्यपाल महोदय मतदाताओं द्वारा बहुमत से चुनी हुई कांग्रेस सरकार को किसी भी कीमत पर मात देकर अपनी जयजयकार करवाने के पक्षधर दिखाई देते हैं जिसका मतदाताओं की दृष्टि में भविष्य में लोकप्रिय मोदी सरकार को लाभ नाममात्र का और नुकसान भारी-भरकम होता नजर आ रहा है।
लोकतांत्रिक सरकार के नुमाइंदों की उपस्थिति के बिना राज्यपाल द्वारा गठित चयन समिति का कोई औचित्य नहीं है। हिमाचल प्रदेश व स्थानीय जनता के उत्थान में रोड़ा न बन कर राज्यपाल महोदय को प्रदेश की तमाम यूनिवर्सिटियों के कुलपतियों की नियुक्तियों का जिम्मा पूर्ण रूप से प्रदेश सरकार पर छोड़ देना चाहिए ताकि उनकी मान-प्रतिष्ठा यथावत बनी रहे और प्रदेश पारदर्शिता से और आगे बढ़े।
राजभवन को इन छोटी-मोटी वातों को ईगो का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए क्योंकि व्यर्थ के टकराव से राज्यपाल की गरिमा को ठेस पहुंच सकती है जोकि दुर्भाग्यपूर्ण होगा।
लोगों का कहना है कि प्रदेशहित सर्वोपरि होना चाहिए न कि राजनीति से त्रस्त अहंकार व स्वार्थ।
“कुछ बदलाव कष्टदायक होते हैं लेकिन आवश्यक होते हैं”
प्रदेश की जनता की साक्षरता दर #Literacy Rate बहुत ऊंचा है और वह विपक्ष की चालों को बेहतर तरीके से समझ रही है क्योंकि भाजपा समर्थित छात्र संगठनों को कथित रूप से उकसा कर उन्हें मोहरा बना कर सरकार के प्रदेशहित के निर्णयों के खिलाफ खड़ा करना माननीय राजभवन व विपक्ष की वास्तविकता को दर्शाता है। जबकि उन्हें प्रदेश सरकार के जनहित के कार्यों में रोड़ा न अटकाते हुए प्रदेश की प्रगति में भागीदार व सहयोगी बनना चाहिए।
सर्वविदित है कि अड़ियल रवैये की वजह से उंगलियां उठ रही हैं, जगहंसाई हो रही है और विश्वविद्यालयों का कामकाज प्रभावित हो रहा है। राज्यपाल जितनी जल्दी यूनिवर्सिटी संशोधन विधेयक को अपनी सहमति देंगे प्रदेश का उतना अधिक भला होगा। राजभवन को यह बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए तथा बिहार जैसे प्रकरण की पुनरावृत्ति को रोकने की दिशा में प्रदेश सरकार के साथ एकमत होकर अपना कर्त्तव्य निभाना चाहिए।
हिमाचल प्रदेश में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर महामहिम राज्यपाल श्री शिव प्रताप शुक्ला और सरकार के बीच विवाद बढ़ गया है।
महामहिम राज्यपाल श्री शिव प्रताप शुक्ला जी की ओर से संशोधित विधेयक को अपनी सहमति सहित लौटाने में देरी करने और बिना सरकार की सहमति के उम्मीदवारों का चयन करने के उनके स्पष्ट इरादे ने इस विवादरूपी खाई को और अधिक गहरा कर दिया है जिसके सकारात्मक परिणाम केंद्र सरकार के पक्ष में निकट भविष्य में बिल्कुल भी नहीं दिखते।
आज 5 महीने हो चुके हैं लेकिन हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति की नियुक्ति लंबित पड़ी हुई है जिस वजह से यूनिवर्सिटी के बहुत से विकास कार्य रुके पड़े हैं और कभी भी विरोध की अग्नि प्रज्ज्वलित हो सकती है जिसे रोकना अत्यन्त आवश्यक है।
लोगों का मानना है कि महामहिम राज्यपाल यदि सहर्ष यूनिवर्सिटी संशोधन विधेयक व अन्य रोके गए जनहित के बिलों को सहमति से लौटा देते तो इससे मोदी सरकार की छवि में चार चांद लग जाते तथा मतदाताओं का भरोसा मोदी सरकार पर और मज़बूत हो जाता जिसका सीधा लाभ उन्हें आगामी लोकसभा चुनावों में मिल सकता था।
विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि लोकप्रिय सुक्खू सरकार अविलम्ब अपनी कानूनी शक्तियों का उपयोग कर अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कुलपतियों के पदों को विज्ञापित और नियुक्ति करने पर विचार कर रही है।
आसन्न कदम मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू के लिए एक लिटमस टेस्ट है, जो अपनी सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप वाइस चांसलर्स की नियुक्तियों को किस तरह सुरक्षित करने में सक्षम साबित होती है।
बताते चलें कि अब यहां यह देखना भी दिलचस्प होगा कि सरकार इस विवादास्पद प्रक्रिया से गुजरते हुए अपनी पार्टी, कार्यकर्ताओं, आम लोगों और अपने विधायकों के हितों की रक्षा कैसे और कितनी गर्मजोशी से अतिशीघ्र करके अपना दायित्व सफलतापूर्वक निभा पाती है।
बिहार के अनुभव से प्रेरणा लेने का हिमाचल प्रदेश सरकार का निर्णय प्रमुख शैक्षिक प्रमुखों के चयन में निर्वाचित राज्य सरकारों और गवर्नर शक्तियों के बीच चल रहे तनाव को रेखांकित करता है। यह निर्धारित करने के लिए सामने आने वाली स्थिति पर बारीकी से नजर रखी जाएगी कि क्या सुक्खू सरकार राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में अपने अधिकार का सफलतापूर्वक दावा कर सकती है।
आसान शब्दों में कहें तो, हिमाचल प्रदेश में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर माननीय राज्यपाल और सरकार के बीच द्वंद छिड़ गया है।
हिमाचल प्रदेश के महामहिम राज्यपाल महोदय श्री शिव प्रताप शुक्ला चाहते हैं कि कुलपतियों की नियुक्ति उनके अधिकार क्षेत्र में हो, जबकि सरकार चाहती है कि यह अधिकार सरकार के पास हो क्योंकि इन विश्वविद्यालयों के सारे दारोमदार सरकार के ही सिर पर होता है।सरकार ने अब फैसला किया है कि वह अपनी कानूनी शक्तियों का उपयोग कर अपनी पसंद के कुलपतियों को नियुक्त करेगी। यह एक कठिन फैसला है, क्योंकि इससे महामहिम राज्यपाल और लोकप्रिय सुक्खू सरकार के बीच संबंध और खराब हो सकते हैं और संबंधों में आई यह खटास सुखद भविष्य की राह में रोड़ा साबित हो सकती है।
इसलिए बुराई को आरंभ में रोक देना ही श्रेयस्कर होता है #Nip the Evil in the Bud अन्यथा रस्सी जल जाने के बाद केवल राख़ ही हाथ आती है जिसका कोई औचित्य नहीं रह जाता।
यह देखना दिलचस्प होगा कि लोकतांत्रिक तरीके से बहुमत से चुनी गई लोकप्रिय सुक्खू सरकार इस विवादरूपी सागर से कैसे अपनी नाव को पार करवाती है।
गौरतलब बात यह है कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं उन राज्यों में विधानसभा द्वारा पास किए गए बिल बिना किसी ऑब्जेक्शन के राज्यपाल द्वारा तत्काल स्वीकृत किये जा रहे हैं।
यही नहीं केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा से और राज्यसभा से पास किए गए बिल भी बिना किसी विलंब के सहर्ष राष्ट्रपति भवन से स्वीकृत किए जा रहे हैं जबकि अत्यन्त दुख एवम खेद का विषय है कि गैर भाजपा शासित प्रदेशों में जनहित बिलों को विधानसभा द्वारा पास करने पर भी माननीय राज भवन में विलंब नीति द्वारा दरकिनार किया जा रहा है, यह प्रजातंत्र और प्रदेश की प्रगति के लिए शुभ संकेत कदापि नहीं है।
ऐसी भेदभावपूर्ण नीतियों से मतदाताओं के मन को भी गहरी ठेस पहुंचती दिख रही है।
इस मामूली से मुद्दे को पहाड़ का रूप देने का सीधा असर लोकप्रिय माननीय प्रधानमंत्री जी की सरकार पर पड़ता दिख रहा है और 2024 के लोकसभा चुनावों में इस छोटी सी गलती का बड़ा हर्जाना भरने की नौबत आ सकती है क्योंकि जब लोकतांत्रिक तरीके से चयनित सरकार द्वारा जनहित में बनाए गए विधेयक को पास करने में जानबूझकर कर अटकलें लगाई जाती हैं तो जनता का दिल पसीज उठता है तथा संबंधित माननीय के विषय में कई तरह की दुर्भावनाएं हिलोरे लेने लगती हैं। बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी वाली स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
क्योंकि जनाब *यह पब्लिक है, यह सब जानती है, अंदर क्या है बाहर क्या है यह सब कुछ पहचानती है।
….अभी अभी विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त संकेतों से ज्ञात हुआ है कि मामले की गंभीरता को भांपते हुए महामहिम राज्यपाल व यशस्वी मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविन्दर सिंह सुक्खू आपसी सुझबुझ व राजनीतिक परिपक्वता का परिचय देते हुए जनहित में अविलम्ब सकारात्मक निर्णय लेने वाले हैं।