शर्मनाक बाग़ी विधायक काण्ड : जनता खामोशी से देख रही है कि कैसे लोकतन्त्र का गला घोंट रहे हैं भ्रष्ट राजनीतिज्ञ, मुख्यमंत्री सुक्खू सच्ची मानवता के बल पर लड़ रहे निर्णायक युद्ध

किसी भी कीमत पर सत्ता हथियाने कक आतुर विपक्ष, प्रजातंत्र का बेरहमी से हो रहा क़त्ल, जनता सब देख रही है, चुनाव में नIनिकालेगी गुस्सा

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*कलम के सिपाही अगर सो जाएं तो वतन के कथित मसीहा वतन बेच देंगे… वतन  बेच देंगे*

Dr. Sushma Sood, Lead Gynaecologist
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Dr. Swati Katoch Sood, & Dr. Anubhav Sood, Gems of Dental Radiance
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अत्यन्त दुःखद : प्रजातन्त्र का बेरहमी से चीरहरण हो रहा है और चौथा स्तम्भ मीडिया कुम्भकर्णी नींद सो रहा है
लेकिन परमात्मा का शुक्र है कि हमारी कलम की काली स्याही में आज भी वह दम है जो बेख़ौफ सच लिखने की हिम्मत रखती है। आज भी निष्पक्षता और निर्भीकता से हम पत्रकारिता कर रहे हैं।
Rajesh Suryavanshi, Editor-in-Chief, HR MEDIA GROUP, CHAIRMAN : Mission Again st CURRUPTION, H.P., Mob : 9418130904, 898853960)
राजनीति का नंगा नाच पूरे भारत की जनता देख रही है कि किस प्रकार जनता की चुनी हुई सरकार को ही ज़बरदस्ती धन, बल से गिराने की हर गंदी कोशिश की जा रही है। जनता चुपचाप देख रही है कि किस तरह से सत्ता के लालची बागी विधायकों पर कटोदों रुपया खर्च कर रहे हैं। उन्हें सरेआम जेल के कैदियों की तरह बंदी बना कर कभी रोहतक तो कभी उत्तराखंड के जंगलों व होटलों में छुपाया जा रहा है।
जनता यह भी देख रही है कि किस तरह उनके खून पसीने की कमाई को बेरहमी से सत्ता के लोभी बागी विधायकों की अय्याशी पर बर्बाद किया जा रहा है।
जनता देख रही है कि किस तरह बागियों के परिवार उनकी सलामती की दुआएं मांगते हुए मुख्यमंत्री सुक्खू से संपर्क साध रहे हैं कि उनकी सलामती के लिए कुछ किया जाए, वे उनके लिए वहुत चिंतित हैं लेकिन सत्ता का लालच और मां के साथ गद्दारी का परिणाम उन्हें परिवारों से और अधिक दूर ले जाता जा रहा है। उनकी राहों के कांटे बढ़ते जा रहे हैं। उन्हें शायद अंदाज़ा नहीं कि उन्हें टिश्यू पेपर की तरह इस्तेमाल करके फेंक दिया जाएगा।
देश की जनता खामोश होकर देख रही है कि किस तरह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया चुपचाप ख़ौफ़ के साए में, ज़ुबान पर ताला जड़े, खामोशी से राजनीति का नंगा नाच देख रहा है कि किस तरह लोगों की चुनी हुई सरकार को जबरन गिराकर सत्ता पर गैरकानूनी ढंग से, अधर्म से अपना कब्जा करने के घृणित षड्यंत्र रचे जा रहे हैं।
सदन में गुंडागर्दी का नंगा नाच हो रहा है और लोकतंत्र का प्रहरी मीडिया सो रहा है। ऐसा लगता है सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे बन कर रह गए हैं।
देश की जनता देख रही है कि बड़े वादे मीडिया हाउसों के मालिकों के हाथ में सिमटी, बिकी हुई पत्रकारिता खून के आंसू रो रही है और डरी-सहमी चुपचाप मजबूरन लोकतंत्र को लुटता हुआ देख रही है।
अब समय आ गया है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को जागना होगा, बेख़ौफ कलम उठानी होगी और राजनीति के चीरहरण को रोकना होगा ताकि हमारी भावी पीढ़ियों हैम पर भी देश के साथ गद्दारी का कलंक न थोपें।
भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब सत्य को खोजने की बजाय व्यावसायिक हितों यानि धंधे की दौड़ में शामिल हो गया है। भ्रष्टाचार का बोलबाला है। कई पत्रकार सरकारी ठेकेदार बन कर अपनी कलम से समझौता करके भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। कुछ में सच उजागर करने की इच्छाशक्ति ही नहीं है। कुछ पत्रकार और मीडिया हॉउस पेड न्यूज़ से खूब धन ऐंठ रहे हैं।
अधिकतर मीडिया वाले व्यक्ति विशेष, राजनीतिक पार्टी या राजनीतिज्ञों से सीधे तौर पर जुड़कर पत्रकारिता का सर्वनाश करने पर तुले हैं।

उस समय पत्रकारिता का जुलूस निकल जाता है, धज्जियां उड़ जाती हैं जब कोई पत्रकार कहता है या उस्केवारे में कहा जाता है कि वह फलां पोलिटिकल पार्टी से जुड़ा हुआ है। फलां नेता से जुड़ा हुआ है। पत्रकारों की आजीविका का ठोस साधन न होने के कारण भ्रष्टाचार, ब्लैकमेलिंग बढ़ रही है। इसी का अनुचित लाभ राजनीतिज्ञ और उद्योगपति उठा रहे हैं।
कुछ पत्रकार स्वार्थपूर्ति हेतु निष्पक्ष और निर्भीक रूप से कलम चलाने से डरते हैं जोकि देश के लोकतंत्र के लिए घातक है।

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के संदर्भ में भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया लोगों के विचारों को प्रभावित करने या परिवर्तित करने में अहम भूमिका निभाता है। इसकी भूमिका के अंतर्गत न केवल राष्ट्र के समक्ष उपस्थित समस्याओं का समाधान खोजना शामिल है, बल्कि लोगों को शिक्षित तथा सूचित भी करना है ताकि लोगों में समालोचनात्मक जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सके। परंतु विगत समय में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं, जो यह बताता है कि उनका झुकाव सत्य की खोज के बजाय वाणिज्यिक हितों की ओर अधिक है।

आँकड़े यह दर्शाते हैं कि अधिकतर राजनीतिक दलों के कुल बजट का लगभग 40 प्रतिशत मीडिया संबंधी खर्चों के लिये आवंटित होता है। चुनावों में प्रयुक्त होने वाला धन बल, शराब तथा पेड न्यूज़ की अधिकता चिंता का विषय है। इस पर लगाम लगाना अनिवार्य है।

भारतीय प्रेस परिषद के अनुसार, ऐसी खबरें जो प्रिंट या इलेक्ट्रॅानिक मीडिया में नकद या अन्य लाभ के बदले में प्रसारित किये जा रहे हों पेड न्यूज़ कहलाते हैं। हालाँकि यह साबित करना अत्यंत कठिन कार्य है कि किसी चैनल पर दिखाई गई विशेष खबर या समाचारपत्र में छपी न्यूज़, पेड न्यूज़ है।

पेड न्यूज़ के मामलों में वृद्धि होने का प्रमुख कारणः भारत में अधिकतर मीडिया समूह कॉरपोरेट के स्वामित्व वाले हैं तथा केवल लाभ के लिये कार्य करते हैं। पत्रकारों की कम सैलरी तथा जल्दी मशहूर होने की चाहत भी इसका एक कारण है।

यद्यपि भारत में मास-मीडिया में भ्रष्टाचार मीडिया जितना ही पुराना है, परंतु हाल के वर्षों में यह अधिक संस्थागत एवं संगठित हो गया है, जहाँ समाचारपत्र और टी.वी. चैनल किसी विशिष्ट व्यक्ति, कॉरपोरेट इकाई, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों इत्यादि के पक्ष में धन लेकर सूचनाएँ प्रकाशित या प्रसारित करते हैं। विगत कुछ वर्षों में इसने चुनाव लड़ रहे प्रत्यार्शियों की रिपोर्टिंग करके एक नया आयाम हासिल किया है।

समस्याएँ: इससे पाठक को गलत सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी अपने चुनाव खर्च में इसे शामिल नहीं करते हैं, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत लागू चुनाव नियम संहिता, 1961 का उल्लंघन है। संबंधित समाचारपत्र तथा न्यूज़ चैनल इस आय को अपने बैलेंस शीट में नहीं दर्शाते हैं, अतः वे कंपनी अधिनियम, 1656 और आयकर अधिनियम, 1961 दोनों का उल्लंघन करते हैं।

परिणामः इन कार्यों से राजनीति में धन-बल का प्रभाव बढ़ता है, जो कि लोकतांत्रिक सिद्धांतों को कमजोर करता है। इससे मीडिया की विश्वसनीयता खत्म हो जाती है तथा लंबे समय में यह मीडिया के लक्ष्यों के लिये नुकसानदायक हो सकता है।

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Dheeraj Sood, Correspondent
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