हिमाचल के रणबांकुरे” पुस्तक का शान्ता कुमार ने किया विमोचन, हिमाचल के सैनिकों के वीरता पुरस्कार पर आधारित है डॉ अरविंद ठाकुर लिखित पुस्तक
‘हिमाचल के रणबांकुरे”
पुस्तक का शान्ता कुमार ने किया विमोचन
हिमाचल के सैनिकों के वीरता पुरस्कार पर आधारित है डॉ अरविंद ठाकुर लिखित पुस्तक
पालमपुर
डॉ अरविन्द ठाकुर की लिखी पुस्तक “हिमाचल के रणबांकुरे” का पूर्व मुख्यमंत्री व प्रख्यात लेखक शांता कुमार द्वारा पालमपुर में लोकार्पण किया गया। दिल्ली की लोकप्रिय प्रकाशन से हाल ही में पुस्तक “हिमाचल के रणबांकुरे” प्रकाशित हुई है। इसके लेखक युवा साहित्यकार डॉ अरविंद ठाकुर के तीन वर्षों के अध्ययन और शोध का परिणाम है यह पुस्तक। इस पुस्तक में हिमाचल से संबंधित वीर-योद्धा सैनिक जिन्होंने परमवीर चक्र, महावीर चक्र व वीर चक्र प्राप्त किए हैं को शामिल किया गया है।
इस अवसर पर शान्ता कुमार ने डॉ अरविंद ठाकुर को उनके इन प्रयास के लिये बधाई दी और कहा कि यह उनका अपनी तरह का पहला प्रयास है। आने वाली पीढियां इस पुस्तक से अपने शहीदों के बलिदान को वर्षों तक जान पाएंगी।
“हिमाचल के रणबांकुरे” पुस्तक में सुनियोजित ढंग से हिमाचल के वीरों के चित्र, पद, रेजीमेंट, सम्मान का नाम व तिथि, जीवन और युद्ध क्षेत्र में उनकी वीरता का वर्णन किया गया है। साथ ही इस पुस्तक में लेखक डॉ अरविंद ठाकुर ने भारत की स्वतंत्रता के समय (1947-48) और इसके बाद लड़े गए प्रमुख युद्धों का विस्तृत ब्यौरा पेश किया है जिससे पाठक को सहजता से इन वीरों के पराक्रम की पृष्ठभूमि की जानकारी मिल सके।
184 पृष्ठों की पुस्तक “हिमाचल के रणबांकुरे” हिमाचल के हर जिले के वीरों का प्रतिनिधित्व करती है। वर्तमान पीढ़ी को इस प्रकार की पुस्तक मातृभूमि पर न्योछावर होने की प्रेरणा देती है। स्वतंत्र भारत का प्रथम परमवीर चक्र प्राप्त करने का गौरव भी हिमाचल के सपूत शहीद सोमनाथ शर्मा को मिला है। यूं तो भारतीय सेना ने आज तक 21 परमवीर चक्र, 219 महावीर चक्र और 1322 वीर चक्र अर्जित किए हैं इनमें से हिमाचल से संबंधित सैनिकों के चार परमवीर चक्र, 16 महावीर चक्र और 63 वीर चक्र का विस्तृत वर्णन इस पुस्तक में समाहित किया गया है। इस पुस्तक में परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा(1948), मेजर धन सिंह थापा(1962), कैप्टन विक्रम बत्रा व राइफलमैन संजय कुमार(1999) शामिल है। महावीर चक्र विजेता -लेफ्टिनेंट कर्नल कमान सिंह(1948), मेजर खुशालचंद(1948) से लेकर लेफ्टिनेंट कर्नल रतन नाथ शर्मा(1972), लेफ्टिनेंट कर्नल इंद्रबल सिंह बाबा(1987) शामिल है । वीर चक्र विजेता- सूबेदार भीमचंद(1948), सिपाही अमर सिंह(1961), सिपाही गोवर्धन सिंह (1961) से लेकर कैप्टन अमोल कालिया(1999), कैप्टन संजीव जमवाल(1999) तक शामिल है। इस पुस्तक में भारतीय सेना की 17 प्रमुख रेजीमेंटों के बारे में संक्षिप्त परिचय भी शामिल है। इन रेजीमेंटों का आदर्श वाक्य, युद्ध घोष, मुख्यालय की जानकारी पुस्तक की रोचकता बढ़ती है। भारतीय सेना द्वारा लड़े गए युद्ध व ऑपरेशनों का संक्षिप्त वर्णन दिया गया है जैसे- भारत-पाक युद्ध(1947-48), ऑपरेशन पोलो हैदराबाद ,कांगो में संयुक्त राष्ट्र ऑपरेशन(1961-62), भारत चीन युद्ध(1962), भारत पाक युद्ध(1965), ऑपरेशन रिडल, भारत पाक युद्ध (1971),ऑपरेशन पवन (1987) कारगिल युद्ध(1999) । पालमपुर से सम्बंधित इस पुस्तक के लेखक डॉ अरविंद ठाकुर दो दशकों से सरकारी क्षेत्र में एक दन्त चिकित्सक के रूप में कार्यरत, वर्तमान में सिविल हॉस्पिटल पालमपुर में सेवाएं दे रहे हैं। एक कुशल दंत चिकित्सक के साथ ही वह एक कवि, कहानीकार एवं साहित्यकार के रूप में भी जाने जाते हैं। लेखक के कविता संग्रह, कहानी, संपादन कार्य साहित्य जगत में इनके योगदान को दर्शाता है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सुशील कुमार फुल्ल का कहना है कि “हिमाचल के रणबांकुरे” जैसी पुस्तक वर्तमान समय के बच्चों, युवाओं का मार्गदर्शन करने में सहायक रहेगी। अपनी मिट्टी पर प्राण तक न्योछावर करने वाले वीर सैनिकों की वीरगति को बड़े ही मार्मिकता, भाषा कुशलता और रोचक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए डॉ अरविंद प्रशंसा के पात्र है। साहित्यकार कल्याण जग्गी कहते हैं कि आज के युवा वर्ग को मोबाइल की दुनिया से परे इस प्रकार की पुस्तकों को एक बार अवश्य पढ़ाना चाहिए। फेसबुक पर वीर सैनिकों के सिर्फ चित्र को लाइक करने से अच्छा है कि युवा उनके जीवन कार्य व समर्पण को विस्तृत ढंग से पढ़े।
डॉ अरविंद ठाकुर की “हिमाचल के रणबांकुरे” पुस्तक हिमाचल के वीरों को सही मायने में श्रद्धांजलि है।
शांता कुमारजी ने डॉ अरविन्द ठाकुर के प्रयास ओं की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि आज तक किसी ने भी हिमाचल के शूरवीरों के बारे में इतने विस्तार, इतनी गहनता इतने अनुसंधानात्मकता में कुछ भी लिखने का प्रयत्न नहीं किया है। इस पुस्तक के प्रकाशन से हिमाचल वासियों को पता चलेगा कि उनके वीर सपूतों ने कहाँ-कहाँ ,कब-कब कितने बड़े बलिदान दिए हैं। मैं समझता हूँ कि ऐसी पुस्तकों से अपने वीरों को याद करने का, अपने स्वतंत्रता सेनानियों को जानने का हर आम एवं खास आदमी को पता होना चाहिए, तभी हम अपनी धरोहर पर गौरव कर सकेंगे। यह पुस्तक यदि स्कूलों कॉलेजों या दूसरे प्रदेशों में भी जाती है तो भारत के क्रांतिकारी इतिहास में हमारा क्या योगदान है उसका अवलोकन भी किया जा सकेगा। इन्हीं शब्दों के साथ एक बार मैं पुनः लेखक की पीठ थपथपाना चाहता हूँ ताकि वे आगे भी भविष्य में वीरों के बारे में उनकी जीवनी के बारे में प्रेरणादायक प्रसंग यत्र-तत्र, सर्वत्र लिखता रहे ।
इस उपलक्ष पर साहित्यकार डॉ सुशील कुमार फुल्ल, निर्मल फुल्ल, सुमन शेखर और डॉ स्वीटी गोयल उपस्थित रहे।