राज्यपाल प्रकरण से एक और राजनीतिक संकट में फंसती दिख रहीभाजपा : मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खु तत्काल संज्ञान लें, महामहिम राज्यपाल किसके इशारे पर कर रहे विद्यार्थियों के भविष्य से कथित खिलवाड़, चुनाव आयोग के नियमों को दिखा रहे ठेंगा, कब लेगा चुनाव आयोग इस धांधली का संज्ञान

क्यों महामहिम की गरिमा को ध्वस्त करने पर तुले हैं?

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मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खु तत्काल संज्ञान लें

उपरोक्त समाचार को पढ़ कर हैरानी भी होती है और दुख भी। हैरानी का सबब यह है कि एक साल से महामहिम राज्यपाल महोदय विश्वविद्यालय संशोधन बिल को अकारण अपनी ईगो शांत करने के लिए  जनमानस के हितों से खिलवाड़ करते हुए अपने पास ज़बर्दस्ती रोके बैठे हैं और चुनाव आदेश के आदेशों की खिल्ली उड़ाते हुए आचार संहिता और चुनावी प्रक्रिया को रौंदते हुए तानाशाही रवैया अपना कर जैसे-तैसे अपने चहेतों को आनन-फानन में वाईस चांसलर बनाने की फ़िराक में हैं।

दुःख इस बात का है कि बिल पर अपनी सहमति की मोहर न लगा कर वह पिछले लगभग एक साल से यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों और कर्मचारियों के हितों और भविष्य से कथित खिलवाड़ कर रहे हैं। मामले की हद तो देखिए, जिस विधानसभा ने बहुमत से जनहित में जिस यूनिवर्सिटी अमेंडमेंट बिल को पास किया है उसे धत्ता बताकर इसे अनदेखा करके उसका कथित अपमान करके अपने स्तर पर असंवैधानिक तरीके से कुलपति की नियुक्ति करने पर तुले हुए हैं। ऐसा हिमाचल प्रदेश की जनता ने आज़ादी के बाद पहली बार अनुभव किया है।

आम जनता का मानना है कि महामहिम राज्यपाल की जनहित की कथित अनदेखी और ज़रूरत से ज़्यादा पर्सनल इंटरेस्ट ने छात्रों की शैक्षिक आकांक्षाओं से समझौता कर उसे तार-तार कर दिया है।

ऐसा करके महामहिम ने विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को धूमिल किया है। स्थायी कुलपति की लंबे समय तक अनुपस्थिति संस्था के नेतृत्व पर खराब प्रभाव डालती है और प्रमुख प्रशासनिक पदों के लिए चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता के बारे में चिंता पैदा करती है और कई भावी प्रश्नों की ओर संकेत करती है।

इसके अलावा, राज्यपाल के कार्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता को कमजोर करने में अपनी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं।  शैक्षणिक संस्थानों की स्थिरता और विकास के लिए खतरा पैदा हो चुका है।

उल्लेखनीय है कि राज्यपाल के लिए यह अनिवार्य है कि वह व्यक्तिगत एजेंडे पर अकादमिक समुदाय के हितों को प्राथमिकता दें और एक योग्य और स्थायी कुलपति की नियुक्ति में तेजी लाएं।

हिमाचल प्रदेश के लोगों की मांग है कि सुक्खू सरकार इस मुद्दे के समाधान के लिए गंभीरता से कार्रवाई करे और विश्वविद्यालय का सुचारू संचालन सुनिश्चित करे।

इतना ही नहीं, राज्यपाल को अपने कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए, और शैक्षिक प्रणाली की अखंडता की रक्षा के लिए भविष्य में इस तरह के हस्तक्षेप को रोकने के लिए कड़े  कदम उठाए जाने चाहियें….!

राज्यपाल की हठधर्मिता छात्रों, विश्वविद्यालय और लोकतंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। इससे
छात्रों की शैक्षिक आकांक्षाओं पर प्रहार होना लाजमी है।

सर्वविदित है कि महामहिम के कथित अड़ियल रवैये और स्थायी कुलपति की अनुपस्थिति के कारण, विश्वविद्यालय में शैक्षणिक गतिविधियाँ बाधित हुई हैं, जिससे छात्रों की शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हुई है।

अनुचित चयन प्रक्रियाओं ने छात्रों में विश्वासहीनता पैदा कर दी है और उन्हें योग्य नेतृत्व से वंचित रखा है।

विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा पर धब्बा:

राज्यपाल के कथित मनमाने कार्यों ने विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को धूमिल किया है।
स्थायी कुलपति की कमी ने विश्वविद्यालय को एक अस्थिर और अव्यवस्थित संस्थान के रूप में चित्रित किया है।

गैर-पारदर्शी चयन प्रक्रियाओं ने विश्वविद्यालय की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर खतरा:

राज्यपाल की मनमानी कार्यप्रणाली लोकतांत्रिक मूल्यों और संस्थानों का अपमान करती है।
स्थायी कुलपति की अनुपस्थिति विश्वविद्यालय के स्वायत्तता और शैक्षणिक स्वतंत्रता पर खतरा पैदा करती है।
अनुचित चयन प्रक्रियाएं भ्रष्टाचार और पक्षपात को बढ़ावा देती हैं, जो लोकतंत्र पर हानिकारक प्रभाव डालती हैं।

आवश्यक सुधार:

हिमाचल प्रदेश सरकार को राज्यपाल के कार्यों में त्वरित हस्तक्षेप कर मामले की जांच करनी चाहिए और उचित कार्रवाई करनी चाहिए।
एक योग्य और स्थायी कुलपति की नियुक्ति तुरंत की जानी चाहिए, जो विश्वविद्यालय का नेतृत्व संभाल कर कुशलतापूर्वक कार्य कर सके।

इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए, शैक्षणिक संस्थानों में चयन प्रक्रियाओं को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाया जाना चाहिए।

हिमाचल प्रदेश के लोगों की मांग:

Sukhu sarkar

हिमाचल प्रदेश के लोग सुक्खू सरकार से इस मुद्दे पर तत्काल और कठोर कार्रवाई की मांग करते हैं

यह निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है कि राज्यपाल अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को छोड़कर, छात्रों और विश्वविद्यालय के हितों को प्राथमिकता दें।

एक योग्य और स्थायी कुलपति की नियुक्ति करके, विश्वविद्यालय को उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करने और छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने का अवसर दिया जाना अति महत्वपूर्ण है।

लोगों का मानना है कि यह देख कर बहुत दुःख होता है, आत्मा सिहर उठती है की अभी भाजपा पॉवर, प्रतिष्ठा और उचित-अनुचित तरीके से सत्ता की छीना-झपटी में इस कदर मशगूल हो गई है कि उसे भला-बुरा कुछ नज़र नहीं आ रहा।

लोगों में इस बात की भी चर्चा है कि भाजपा अभी कुछ राज्यों में सत्ता हथियाने हेतु कई राज्यों में ऑपरेशन लोटस चलाने, हिमाचल में साम-दाम-दण्ड-भेद के द्वारा राज्य सभा सीट पर कब्ज़ा करने और कांग्रेस के 6 बाग़ियों को आपरेशन लोटस के तहत गैरकानूनी तरीके से अपने साथ मिलाने के आरोपों से अभी उभर भी नहीं पाई थी कि अब महामहिम के कार्यकलापों की वजह से चुनाव आयोग के नियमों की धज्जियां उड़ाने के आरोपों से घिर गई है जिसका संज्ञान मुख्यमंत्री को तत्काल लेना चाहिए, यह जनता की मांग है अन्यथा लोकतंत्र पर जो एक के बाद एक कुठाराघात हो रहा है उससे देश में लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी टूट जाएगी और देश तानाशाही का शिकार होकर अपंग बन कर रह जाएगा। अगर पावर और पैसे के लोभ में लोकतांत्रिक ढांचे पर ऐसा कुठाराघात होता है तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।

अब देखना यह है कि आम जनता की इस मांग पर मुख्यमंत्री कब क्या कदम उठाते हैं। यह भविष्य के गर्भ में है।

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Dheeraj Sood, Correspondent
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