पूर्व वाईस चांसलर का पर्दाफ़ाश : विजिलेंस विभाग की निष्पक्ष जांच और त्वरित कार्यवाही की हो रही वाहवाही, जांच में पूर्व वाइस चांसलर पर लगे आरोप हुए सही साबित,16 करोड़ के एक और घोटाले का होने वाला है भंडाफोड़, दागी चरित्र के अधिकारियों को नहीं दिया जाना चाहिए वाईस चांसलर बनने का मौका, विश्वविद्यालय अधिकारियों पर मंडरा रहे संदेह के बादल हुए और घने

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विजिलेंस विभाग की निष्पक्ष जांच और त्वरित कार्यवाही की हो रही चहुँतरफी वाहवाही

RAJESH SURYAVANSHI, CHAIRMAN MISSION AGAINST CORRUPTIONcum Editor-in-Chief, HR MEDIA GROUP

जांच में पूर्व वाइस चांसलर पर लगे आरोप हुए सही साबित, विश्वविद्यालय अधिकारियों पर मंडरा रहे संदेह के बादल हुए और घने

विजिलेंस विभाग द्वारा हाल ही में की गई जांच में यह खुलासा हुआ है कि पूर्व वाइस चांसलर पर शिकायतकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप सत्य हैं।
इस जांच में यह भी पाया गया कि विश्वविद्यालय ने उचित दस्तावेज न देकर तथ्यों को छुपाने की संगीन और नाकाम कोशिश की।
जांच के नतीजे में सामने आया है कि पूर्व में विश्वविद्यालय में नियुक्तियों एवं वित्तीय संबंधी कई गड़बड़ियां हुई हैं, जिससे सिलेक्शन कमेटी भी कटघरे में खड़ी हो गई है।
विजिलेंस विभाग की जांच ने यह स्पष्ट किया कि गलत जानकारी और तथ्य छुपाने में शामिल लोगों के खिलाफ भी कठोर से कठोर कार्रवाई अमल में लाई जा सकती है। क्योंकि तथ्यों को छुपा कर जांच एजेंसियों के आगे गलत तस्वीर पेश करके उनकी सशक्त टीम को रास्ते से भटका कर गुमराह करना भी एक भयंकर साज़िश और षड्यंत्र है।

विभाग ने यह भी संकेत दिया है कि बिना टेंडर के तीन साल तक आउटसोर्स ठेकेदार को एक्सटेंशन देने का मामला और करीब 16 करोड़ रुपए की वित्तीय गड़बड़ी का मामला भी जल्द ही उजागर हो सकता है। इसमें पूर्व कुलपति और शोध निदेशक पर भी गाज गिर सकती है।
दस्तावेजों की गहन छानबीन के दौरान यह पाया गया कि दो अधिष्ठाताओं में से एक जो रिटायर हो चुके हैं और एक जो वर्तमान में छह महीने के भीतर रिटायर होने वाले हैं, वे भी वित्तीय गड़बड़ी में सम्मिलित पाए गए हैं। इस प्रकार, आने वाले समय में कृषि विश्वविद्यालय से वरिष्ठता के आधार पर कार्यवाहक कुलपति का पद मिलना मुश्किल नजर आ रहा है।
वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए, सरकार और राज्यपाल महोदय को चाहिए कि जैसा कि पूर्व में भी रहा है, सचिव कृषि के पास कार्यभार सौंपा जाए। ऐसा इसलिए ताकि वरिष्ठता के आधार पर किसी ऐसे व्यक्ति को कुर्सी पर न बैठाया जाए जो वित्तीय गड़बड़ी में शामिल पाया गया हो।
विजिलेंस विभाग की इस जांच ने न केवल विश्वविद्यालय के प्रशासन में हो रही अनियमितताओं को उजागर किया है, बल्कि यह भी प्रमाणित किया है कि कैसे महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोग अपने अधिकारों का दुरुपयोग कर सकते हैं। यह खबर पूरी तरह से प्रमाणित दस्तावेजों पर आधारित है, जिससे इसकी सत्यता पर कोई संदेह नहीं है।
इस जांच के परिणामस्वरूप, यह आवश्यक है कि विश्वविद्यालय में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को सुनिश्चित करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं। केवल तभी हम शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण स्वच्छता और ईमानदारी की उम्मीद कर सकते हैं।
विजिलेंस विभाग के इस सराहनीय कार्य के लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए, जिन्होंने निडर होकर सच्चाई को उजागर किया और समाज के समक्ष सही तस्वीर प्रस्तुत की।

यहां हम आपको बताते चलें कि पूर्व में विश्वविद्यालय में जितने भी वित्तीय अथवा अन्य घोटाले हुए हैं, विजिलेंस विभाग के कर्मठ अधिकारियों की मेहनत के परिणामस्वरूप उन पर से जब पर्दा उठेगा तो सब यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि कितने संगीन घोटालों को बड़ी होशियारी से सदा सदा के लिए दफ़न कर दिया गया था जिससे सरकार को करोड़ों रुपए की चपत लगी।

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