विश्वविद्यालय की “उस” सच्चाई का हुआ पर्दाफ़ाश, आ ही गई बिल्ली थैले से बाहर*
*हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की 112 हेक्टेयर भूमि हस्तांतरण मामले की वास्तविक सच्चाई, आ ही गई बिल्ली थैले से बाहर*
राजेश सूर्यवंशी,
एडिटर-इन-चीफ
पालमपुर, हिमाचल प्रदेश –
चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर (HPAU) की 112 हेक्टेयर भूमि को पर्यटन विभाग के नाम पर हस्तांतरण करने के मुद्दे ने सरकार और विश्वविद्यालय के बीच विवाद पैदा कर दिया है। सुक्खू सरकार इस निर्जन भूमि पर पर्यटक विलेज का निर्माण करना चाहती है, ताकि कांगड़ा को पर्यटक राजधानी के रूप में विकसित किया जा सके। इसके तहत और भी कई संबंधित प्रोजेक्ट कांगड़ा जिला में विभिन्न स्थानों पर आरम्भ किये जा रहे हैं। इससे सरकार की आय भी बढ़ेगी और प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में यह कदम मील का पत्थर साबित होगा।
प्रबुद्ध पाठकगणों को मैं एक अति महत्वपूर्ण पुरानी याद दिलाने जा रहा हूँ जोकि पर्यटक विलेज से जुड़ी हुई है। आज हर कोई इस मामले पर अपने विचार प्रकट कर रहा है। खूब विरोध भी जताया जा रहा है, लेकिन न जाने क्यों किसी ने भी इस मामले की गहराई में जाने का प्रयास नहीं किया। आज हम आपको पूरे माजरे से अवगत करवा देते हैं। फिर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा।
पर्यटक विलेज का यह मुद्दा पिछली भाजपा सरकार के समय में उठा था। जयराम सरकार भी इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने की पक्षधर थी, इसलिए तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकुर जयराम ने पालमपुर के निकटतम सुंदरतम पर्यटक स्थान राख और इसके आसपास के खाली पड़े क्षेत्र में इस पर्यटक विलेज के निर्माण की इच्छा जाहिर की थी और यह एक बेहतरीन सुझाव था जिससे निर्जन, वीरान और अल्पविकसित क्षेत्र और स्थानीय लोगों का कल्याण होना निश्चित था। जितनी पर्यटन की संभावनाएं इस क्षेत्र में हैं वे अन्यत्र नहीं। सरकार तेजी से अपने कदम इस ओर बढ़ा रही थी। ऐसा होना सही भी था क्योंकि एक परोपकारी महिला ने 3000 कनाल जमीन इस आईटी पार्क प्रोजेक्ट हेतु दान भी दे दी थी।
विभागीय हलचल ज़ोरशोर से शुरू भी हो गई थी। ज़िला काँगड़ा के पूर्व ज़िलाधीश तथा वर्तमान डायरेक्टर इंडस्ट्रीज़ श्री राकेश प्रजापति, आईएएस ने भी 2-3 बार मौके का दौरा किया। फाइलें बनीं। इलाके में काफी चर्चा भी हुई। लेकिन डॉ चौधरी साहिब ने अपने हित साधने के उद्देश्य से जो बीज बोए थे वे अंकुरित हुए और अंजाम सबके सामने है। जो भूमि महिला ने दान दी थी वह भी वेकार पड़ी है, एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी कज भूमि पर विवाद हो रहा है और मामला उलझ कर रह गया है।
पर्यटन विभाग के नाम पर एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी पालमपुर भूमि हस्तांतरण का मामला उस समय बड़ा मुद्दा बन गया जब तत्कालीन वाईस चांसलर थे डॉ एचके चौधरी और मुख्यमंत्री थे ठाकुर जयराम। डॉ चौधरी साहिब सरकार की गुड बुक्स में थे। साथ ही वह अपने कुलपति पद की एक्सटेंशन के भी चाहवान थे तो उन्होंने टूरिस्ट विलेज राख से हटा कर कृषि विश्वविद्यालय की 112 हेक्टेयर भूमि पर बनाने का प्रस्ताव सरकार को दे डाला और अपनी अनापत्ति भी जाहिर कर दी। बस, फिर क्या था, सरकार का ध्यान इस तरफ मुड़ गया और राख को टूरिस्ट विलेज बनाने का सरकार का सपना धरा का धरा रह गया। और डॉ चौधरी द्वारा लगाई चिंगारी ने कालान्तर में आग का रूप धारण कर लिया।
अब हालात ये हैं कि इस आग में क्या सरकार, क्या विद्यार्थी, क्या शिक्षकगण, सभी झुलस रहे हैं। अगर डॉ चौधरी अपने वेस्टेड इंटरेस्ट्स की वजह से इस मामले में जानबूझकर न कूदते तो आज यह टूरिस्ट विलेज बिना किसी रोकटोक और व्यवधान के प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रहा होता। उनके द्वारा की गई यह छोटी सी भूल आज पूरे गुलशन को जलाने के लिए काफी बड़ी साबित हो रही है।
विश्वविद्यालय के शिक्षकगण और विद्यार्थी इस निर्णय के विरोध में हैं और उन्होंने सरकार से इस मामले में पुनर्विचार करने की मांग की है। उनका कहना है कि यह निर्णय विश्वविद्यालय के हितों के खिलाफ है और इसका विरोध किया जाएगा।
इस मामले में विभिन्न प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ लोग इसे सरकार की आय बढ़ाने और प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक अच्छा कदम मानते हैं, जबकि अन्य लोग इसे विश्वविद्यालय के हितों के खिलाफ मानते हैं।
सरकार ने इस मामले में जल्द ही निर्णय लेने की बात कही है, लेकिन विश्वविद्यालय के शिक्षकगण और विद्यार्थी इस मामले में अपनी चिंताएं व्यक्त करते रहेंगे।
इस मामले का भविष्य अभी अनिश्चित है, लेकिन यह तय है कि यह मामला हिमाचल प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित होगा।