चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय की भूमि पर टूरिजम विलेज को लेकर युवा सेवाएं खेल एवं आयुष मन्त्री श्री यादविन्द्र गोमा व विधान सभा के उप मुख्य सचेतक श्री केवल सिंह पठानियां जी के अखबारों में छपे ब्यान पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पालमपुर के पूर्व विधायक प्रवीन कुमार ने कहा है कि आज की राजनीतिक नेताओं की नई पीढ़ी इस बात से अनभिज्ञ है कि अतीत में हमारे साथियों ने इस छोटे से पहाड़ी राज्य में कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना करके कृषि शिक्षा, अनुसंधान और विस्तार के लिए क्या योगदान दिया है।
पूर्व विधायक ने कहा उस वक्त स्थानीय जनता को इस विश्वविद्यालय के लिए मुफ्त भूमि दान करने के लिए प्रेरित करना और राष्ट्रीय जैविक प्रयोगशाला से केंद्र सरकार से एक बड़ा हिस्सा प्राप्त करना उन दूरदर्शी नेताओं के ऐसे उदाहरण हैं।
अगर यह भूमि अधिशेष होती, तो उस समय के दूरदर्शी नेता स्थानीय लोगों को अधिग्रहित करके दान करने के लिए प्रेरित नहीं करते।
उन्होंने कहा साठ के दशक के दौरान खेती और जनसंख्या की स्थिति की तुलना करें तो उन्होंने राष्ट्रीय प्रयोगशाला की अधिकांश भूमि वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद के पास छोड़ दी होगी, जिसे अब पालमपुर में हिमालय जैविक प्रयोगशाला संस्थान के रूप में जाना जाता है, फिर भी उन्होंने कृषि शिक्षा और कृषक समुदाय की भविष्य की आवश्यकता को महसूस किया।
पूर्व विधायक नर कहा इसी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल प्रदेश राज्य को हर साल अनाज, दालें, सब्जियां, आलू, अदरक लहसुन, तिलहन और चारा आदि के 10 लाख क्विंटल से अधिक बीज की आवश्यकता होती है। इसमें से केवल 1.63 लाख क्विंटल की पूर्ति राज्य के 227 हेक्टेयर भूमि पर फैले 36 बीज उत्पादन फार्मों से होती है। बाहर से निर्भरता कम करने और राज्य को इस संबंध में आत्मनिर्भर बनाने के लिए बीज उत्पादन कार्यक्रम का विस्तार करने की आवश्यकता है।
अधिक उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए बीज सबसे महत्वपूर्ण इकाई है। उच्च गुणवत्ता वाले स्वस्थ बीज का उत्पादन स्थानीय कृषि पारिस्थितिक वातावरण के लिए सबसे उपयुक्त है। इन्ही विशेषज्ञों की राय के आधार पर कृषि विश्वविद्यालय की भूमि वर्तमान में केवल प्रजनक बीज पैदा कर रही है। यह राज्य की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सर्वोत्तम गुणवत्ता के तहत प्रमाणित बीज का उत्पादन कर सकती थी, बशर्ते सरकार ने भूमि को बीज फार्मों में विकसित करने के लिए धन दिया होता।
यहाँ के कृषि वैज्ञानिक और कुलपति समय-समय पर बाहरी एजेंसियों जैसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और जापानी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी आदि से प्रतिस्पर्धी परियोजनाओं के माध्यम से बीज उत्पादन और अनुसंधान के उद्देश्य से भूमि विकसित करने के लिए अनुदान की व्यवस्था करते रहे ।
प्रदेश की सताधारी कांग्रेस पार्टी के इन दोनों सतासीन नेताओं को स्मरण करवाते हुए पूर्व विधायक ने कहा कांग्रेस के मित्र तो प्रायः इस कृषि विश्वविद्यालय को दिग्गज भाजपा नेता श्री शान्ता कुमार जी के ही नाम से जोडते रहे।
अगर सही मायनों में प्रदेश में लम्बा शासन तो कांग्रेस पार्टी का ही रहा ऐसे में विना पक्षपात के इस कृषि विश्वविद्यालय के उत्थान के लिए दिल खोलकर धन दिया होता तो आज यहाँ एक ईंच जमीन बेकार न दिखती ।