शहीदी दिवस पर विशेष
भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव के कुछ संस्मरण
INDIA REPORTER TODAY
B.K. SOOD
SENIOR EXECUTIVE EDITOR
जब भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी के फंदे पर ले जाया जा रहा था तो जेल की कोठरी के दूसरे कैदियों मैं एकदम से सन्नाटा छा गया।
एक बार पहले जब भगत सिंह उसी रास्ते से ले जाए जा रहे थे तो पंजाब कांग्रेस के नेता भीमसेन सच्चर ने आवाज़ ऊँची कर उनसे पूछा था, “आप और आपके साथियों ने लाहौर कॉन्सपिरेसी केस में अपना बचाव क्यों नहीं किया.”
भगत सिंह का जवाब था, “इन्कलाबियों को मरना ही होता है, क्योंकि उनके मरने से ही उनका अभियान मज़बूत होता है, अदालत में अपील से नहीं.”
शहीद भगत सिंह की माता जी ने उनसे यह वादा लिया था कि वह फांसी पर चढ़ते हुए भारत माता की जय बोलेंगे ऐसी हैं !!
ऐसी थीं हमारी भारत देश की सिहंनी माताएं!
भगत सिंह ने अपने वकील प्राणनाथ मेहता से कहा कि वो पंडित नेहरू और सुभाष बोस को मेरा धन्यवाद पहुंचा दें, जिन्होंने मेरे केस में गहरी रुचि ली थी.
फांसी का तख्ता
भगत सिंह बोले, “पूरी ज़िदगी मैंने ईश्वर को याद नहीं किया. असल में मैंने कई बार ग़रीबों के क्लेश के लिए ईश्वर को कोसा भी है. अगर मैं अब उनसे माफ़ी मांगू तो वो कहेंगे कि इससे बड़ा डरपोक कोई नहीं है. इसका अंत नज़दीक आ रहा है. इसलिए ये माफ़ी मांगने आया है.”
तीनों युवा क्रांतिकारियों भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु के गले में फांसी की रस्सी डाल दी गई. उनके हाथ और पैर बांध दिए गए. तभी जल्लाद ने पूछा, सबसे पहले कौन जाएगा?
सुखदेव ने सबसे पहले फांसी पर लटकने की हामी भरी.