मुझे तो अपनों ने लूटा, ग़ैरों में कहां दम था : पालमपुर भाजपा

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चीख चीख कर कह रही है पालमपुर भाजपा : मुझे तो अपनों ने लुटा, ग़ैरों में कहां दम था

INDIA REPORTER TODAY

PALAMPUR : RAJESH SURYAVANSHI

वोह कहते हैं ना कि जितना खतरा अपनों से होता है, उतना ग़ैरों से कभी नहीं होता। चिल्ला- चिल्ला कर कहते रहे भाजपा के दिग्गगज कार्यकर्ता की उनकी अनदेखी मत करो, उन्हें उनके हक से नवाज़ों वरना परिणाम घातक सिद्ध होंगे लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी। तमाम सर्वे रिपोर्टों को ताक पर रख कर ‘अंधा बांटे रेवड़ियां, फिर फिर अपनों को दे’ कि लोकोक्ति को चरितार्थ करते रहे भाजपा के कुछ स्थानीय छुटभैये नेता।
इन नेताओं ने रोते-बिलखते वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की एक न सुनी और अपने निजी स्वार्थों को भुनाने के चक्कर में कुछ ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दे डाला जिनका कोई खास वजूद ही नहीं था, कोई पहचान नहीं थीं, ज़मीन के साथ कोई जुड़ाव नहीं था। जिन नेताओं की पकड़ थी उनके रातोंरात टिकट काट दिए गए और भाई भतीजावाद को तरजीह देकर मां समान अपनी पार्टी का गला रेत दिया। परिणाम सामने नज़र आ रहे थे फिर बई स्वार्थ की नींद में आंखें बंद रहीं।
टिकटों का आबंटन करने वाले ये वो लोग थे जो खुद बाहरी क्षेत्रों से संबंधित हैं और उनका पालमपुर में कोई खास ज़मीनी आधार नहीं फिर भी अपने दम्भ और ज़िद्द को पूरा करने के लिए उन्होंने अपनी ही पार्टी का गला दबा दिया।
टिकट धारकों की काबिलियत को दरकिनार करके पार्टी टिकटों की बंदरबांट की गई। परिणामस्वरूप इन नेताओं ने कई महत्वपूर्ण सीटें जानबूझ कर कांग्रेस की झोली में डाल दीं।
ग़ौरतलब है कि टिकटों के आबंटन के समय से ही कांग्रेसी फुले नहीं समा रहे थे क्योंकि उन्हें उस वात की भनक लग चुकी थी कि अब गेंद उनके पाले में आ चुकी है।
कांग्रेस की जीत के साथ कुछ बातें जुड़ी हुई हैं। एक तो 70 साल तक पालमपुर नगर परिषद में कांग्रेस का कब्ज़ा रहा। अध्यक्षा राधा सूद ने परिषद की कमान को अपने हाथों में लेकर उसे मज़बूत किया। अपना एक नाम बनाया और क्षेत्र में रारक्की भी करवाई और कांग्रेस के वजूद को और मज़बूत बनाया। वहीं दूसरी महत्वपूर्ण बात यह रही कि कांग्रेस का नेतृत्व एक अकेले नेता विधायक आशीष बुटेल ने किया। और किसी नेता की दखलंदाज़ी यहां दर्ज नहीं की गई अर्थात आशीष बुटेल का नेतृत्व सफल रहा।
वहीं दूसरी ओर भाजपा के जी स्थानीय नेता विभिन्न तरीकों से अपनी- अपनी चलाते रहे। अपनी अपनी डफली, अपना अपना राग अलापते रहे और यही पार्टी की हार का मुख्य कारण बना।
वरना यदि पार्टी टिकट पात्र लोगों को दिए गए होते तो आज तस्वीर का रुख शायद कुछ और ही होता। भाजपा कांग्रेस को बराबर की टक्कर देने में समर्थ होती और पालमपुर नगर परिषद जा विस्तार कर 70 साल बाद उसे तमाम अडचनों के वावजूद नगर निगम का ताज पहनाने का सुखद फल ज़रूर भोगती।
लोगों का मानना है कि कांग्रेस 70 साल में अपने ही राज़ में छोटी सी नगर परिषद का विस्तार नहीं कर पाई जबकि लोग यह मांग करते करते थक चुके थे।
जयराम सरकार ने लोगों की समस्यओं और उनकी मांगों की तरफ उचित ध्यान दिया । तमाम अवरोधों और धमकियों के वावजूद इसे नगर निगम का दर्जा दिया। ऐसी स्थिति में लोगों के सहानुभूति भाजपा के साथ थी लेकिन टिकटों के गलत आबंटन ने भाजपा की तमाम उम्मीदों पर पानी फेर दिया और पार्टी मात्र 2 सीटों पर ही सिमट कर रह गई।
जनता में इस बात की ज़ोरदार चर्चा है कि जिन छुटभैये नेताओं की वजह से आज पार्टी की इस दिन का मुंह देखना पड़ा है उन्हें मुख्यमंत्री अब अपने साथ अग्रिम पंक्ति में न बिठा कर उन्हें उनके असली स्थान पर बिठायें जोकि उनकी वास्तविक जगह है। कुछ स्थानीय नेता तो उतने वेलगाम हो चुके हैं कि घमंड में चूर होकर वे असभ्यता पर भी उररने से गुरेज नहीं करते चाहे उनके सामने कोई अधिकारी हो, कर्मचारी हो, कार्यकर्ता हो या कोई आम आदमी हो। पार्टी को ऐसे नेताओं की अक्ल ठिकाने लगाने की परम आवश्यकता है ताकि स्थिति और विकट न हो।

1 Comment
  1. bk sood says

    Ward wise vishleshan kijiye

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