नमस्ते भारत में हिमाचली लेखकों के हिंदी साहित्य में योगदान को सराहा
हिंदी साहित्य में योगदान को सराहा वरिष्ठ लेखक कथाकार डा सुशील फुल्ल ने विस्तार से रखे विचार, चंद्रधर गुलेरी, यशपाल की अप्रकाशित कहानियों का भी हुआ जिक्र
नमस्ते भारत में हिमाचली लेखकों के हिंदी साहित्य में योगदान को सराहा
वरिष्ठ लेखक कथाकार डा सुशील फुल्ल ने विस्तार से रखे विचार
चंद्रधर गुलेरी, यशपाल की अप्रकाशित कहानियों का भी हुआ जिक्र
INDIA REPORTER TODAY
DHARAMSHALA : RAJESH SURYAVANSHI
वरिष्ठ लेखक, कथाकार, आलोचक व साहित्य इतिहास कर्मी डॉ. सुशील कुमार फुल्ल ने आनलाइन बहुचर्चित कार्यक्रम ‘नमस्ते भारत विद चंद्रकांता‘ में शिरकत की। संवादकर्ता चंद्रकांता से एक विस्तृत बातचीत के दौरान डॉ. फुल्ल ने हिंदी कहानी आंदोलन, सहज कहानी, हिमाचल के लेखकों का हिंदी साहित्य व लोक साहित्य में योगदान, हिमाचल हिंदी कहानी में स्त्री विमर्श तथा भारत के मध्यकाल व विश्व की प्रेमाख्यान परंपरा पर प्रकाश डाला। डॉ. फुल्ल ने बताया कि साहित्य के रत्न डॉ. चंद्रधर शर्मा गुलेरी की अपूर्ण कथा ‘हीरे का हीरा‘ को पूर्ण किया। उन्होंने लेखक यशपाल की अप्रकाशित कहानियों के प्रकाशन का कार्यभार भी पूरा किया। सहज कहानी के शिल्प पर बात करते हुए उन्होंने बताया की सहजता ही इस कथा आंदोलन की कलात्मकता है।
कार्यक्रम में प्रेमचंद, ठाकुर बलदेव सिंह, सरदार शोभा सिंह, बाल साहित्य, पत्र-पत्रिकाओं के संकट व प्रकाशन की समस्या आदि महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी गंभीर संवाद हुआ। अपने अंग्रेजी उपन्यास ‘दी नेकेड वुमन‘ लिखे जाने की प्रेरणा और प्रसंग भी डॉ. फुल्ल ने साझा किए। चंद्रकांता द्वारा पूछे गए एक रोचक प्रश्न के प्रतिउत्तर में हिमाचल प्रदेश में व्यंग्यकारों की नव पौध के लिए उन्होंने प्राथमिक रूप से राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संपादक डॉ. लालित्य ललित के योगदान की विशेष चर्चा की। डॉ. फुल्ल ने ‘माई बाप‘ शीर्षक से एक सामयिक नाटक भी कलमबद्ध किया है जिसकी शैली व्यंग्यात्मक है।
इस साहित्यिक संवाद का आनलाइन सीधा प्रसारण किया गया। इस कार्यक्रम की प्रस्तोता पालमपुर से लेखिका व संपादक चंद्रकांता और तकनीकी निदेशक डी. डी. शर्मा हैं। कार्यक्रम में दर्शकों व श्रोताओं की सक्रिय भागीदारी रही। वरिष्ठ कहानीकार सुदर्शन वशिष्ठ, गंगाराम राजी, सरोज परमार, डॉ. आशुतोष गुलेरी, डॉ. विजय पुरी, डॉ. आशु फुल्ल व अन्य गणमान्य लेखकों ने संवाद में रचनात्मक भूमिका अदा की। पंद्रह सौ से अधिक पुस्तक समीक्षा, हजारों लेख और डेढ़ सौ से अधिक शोध पत्र लिखने वाले डॉ. फुल्ल पिछले छः दशकों से अथक लेखन में सक्रिय हैं। परवर्ती सहज कहानी व संश्लिष्ट कहानी के प्रणेता डॉ. फुल्ल ने हिंदी साहित्य इतिहास पर महत्वपूर्ण कार्य किया है।