कांवड़ यात्रा क्यों बन सकती है कोरोना की ‘सुपर स्प्रेडर’

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नई दिल्ली: कोरोना की तीसरी लहर के बीच कांवड़ यात्रा भी शुरू होने वाली है। कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व है और भक्तों का इससे अत्यधिक भावनात्मक जुड़ाव। उत्तराखंड सरकार ने तो कांवड़ यात्रा को रद्द कर दिया है पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रा की इजाजत दी है, जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट नाराज है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 16 जुलाई को करेगा। आखिर क्यों सब इस बात से डर रहे हैं कि यदि कांवड़ यात्रा को इजाजत मिली तो यह कोरोना के लिए सुपर स्प्रेडर, यानि कोरोना के तीव्र प्रसार का कारण बन सकती है? आइए इसे सिलसिलेवार ढंग से बिंदुओं में समझते हैं।

दरअसल, 2019 में जब यात्रा का आयोजन किया गया था, तब दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा से लगभग 3.5 करोड़ कांवड़िए हरिद्वार पहुंचे थे। जबकि 2-3 करोड़ से अधिक लोग पश्चिमी यूपी के अलग-अलग तीर्थ स्थानों पर शिव मंदिरों में जल चढ़ाने गए थे। ऐसे में माना जा रहा है कि यदि इतने सारे लोग एक साथ इकट्ठा होंगे तो बड़ी संख्या में लोग कोरोना संक्रमित हो सकते हैं। हरिद्वार मुख्य तीर्थ स्थलों में से एक है जहां कांवड़िए गंगा जल लेने के लिए आते हैं। इसी आशंका के कारण उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा रद्द की है।

इससे पहले कोरोना की दूसरी लहर से ठीक पहले हरिद्वार में हुए कुंभ मेले में शाही स्नानों में लाखों लोगों ने स्नान किया था। 12 अप्रैल को सोमवती अमावस्या पर सबसे अधिक 35 लाख की भीड़ जुटने की सूचना मिली थी। 11 मार्च को, महाशिवरात्रि पर 32 लाख तीर्थयात्री स्नान के लिए पहुंचे थे। लोग बिना मास्क लगाए स्नान कर रहे थे।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 14 जनवरी से 27 अप्रैल तक 91 लाख लोगों ने गंगा में पवित्र डुबकी लगाई थी। लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं के पहुंचने से सुरक्षा व्यवस्था में लगे अधिकारियों के लिए कोविड प्रोटोकॉल का पालन करवाना बहुत मुश्किल हो गया था। हालांकि तीसरे शाही स्नान 27 अप्रैल के दिन स्नान करने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या गिरकर 25,000 पर पहुंची थी।

एक साथ लाखों लोगों के हरिद्वार में जुटने को लेकर इसे राज्य सरकार की बहुत आलोचना हुई थी और कुंभ मेले को सुपर सुप्रेडर के तौर पर देखा गया। उत्तराखंड राज्य नियंत्रण कक्ष के रिकॉर्ड के मुताबिक, अप्रैल में कुंभ मेले के दौरान केवल 5 दिनों के अंदर कोरोना के 2,167 मामले मिले। 10 अप्रैल को 254, 11 अप्रैल को 386, 12 अप्रैल को 408, 13 अप्रैल को 594 और 14 अप्रैल को 525 पॉजिटिव मामले थे। जिनमें कई वरिष्ठ हिंदू धार्मिक नेता और साधु-संत संक्रमित पाए गए।

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने उस समय भी कुंभ मेले को लेकर चेताया था और अब भी कांवड़ यात्रा को लेकर चेतावनी जारी की गई है। विशेषज्ञों के अनुसार, कांवड़ यात्रा में कुंभ मेले की तुलना में कोविड-19 संक्रमण फैलने का जोखिम अधिक है क्योंकि यात्रा करने वाले भक्तों की संख्या कुंभ में भाग लेने वालों की तुलना में काफी अधिक होने की संभावना है।

सोमवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर उत्तराखंड सरकार को कांवड़ यात्रा नहीं होने देने की बात कही थी। कोरोना के कारण ही 2020 में कांवड़ यात्रा को इजाजत नहीं दी गई थी।

हरिद्वार में हुए कुंभ के दौरान तीर्थयात्रियों का टेस्ट किया जाना तय हुआ था लेकिन लाखों लोगों की एक साथ जांच करना असंभव साबित हो रहा था। इसलिए कुंभ में कोरोना टेस्टिंग में फर्जीवाड़ा होने की बात भी सामने आई। उत्तराखंड सरकार ने कुंभ के दौरान आने वाले यात्रियों और अन्य लोगों की कोरोना जांच के लिए 11 लैब को जिम्मा सौंपा था। करीब एक लाख आरटी-पीसीआर जांच में फर्जीवाड़ा होने के आरोप लग रहे हैं। लैब के फर्जीवाड़े के कारण टेस्टिंग सिर्फ दिखावे की हुई और असलियत में कुंभ में आने वाले श्रद्धालु बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित हुए।

कांवड़ यात्रा के दौरान भी उत्तर प्रदेश सरकार ने कांवड़ यात्रियों को कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करने को कहा है और यात्रियों के लिए आरटीपीसीआर की रिपोर्ट निगेटिव होना जरूरी है। लेकिन जब एक साथ लाखों लोग यात्रा करेंगे, शिविरों में रुकेंगे और मंदिरों में जलाभिषेक करेंगे तो उनकी टेस्टिंग मुश्किल होगी। टेस्टिंग कराने के लिए लगी लंबी कतारों और आरटीपीसीआर रिपोर्ट आने में समय लगने के कारण लोग टेस्ट कराने से बचते भी हैं।

भगवान शंकर के वे भक्त जो सावन के महीने में कंधे पर कांवड़ रखकर यात्रा करते हैं उन्हें कांवड़िया कहा जाता है। हजारों-लाखों की संख्या में पैदल या गाड़ी से चलने वाले कांवड़िए ज्यादतर केसरिया रंग के वस्त्र पहनते हैं। ये लोग मुख्य तौर पर उत्तराखंड के गौमुख, हरिद्वार या गंगोत्री, उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद और बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरते हैं और भगवान शिव के किसी पवित्र देवस्थान पर उस जल को अर्पित करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के अनन्य भक्त परशुराम पहले कांवड़िया थे। उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लेकर वर्तमान बागपत शहर के शिवलिंग पर सावन के सोमवार को चढ़ाया था।

कांवड़ यात्रा हर साल श्रावण मास में होती है और इस बार यह 25 जुलाई को शुरू होने वाली है। यात्रा लगभग 15 दिनों की अवधि तक चलेगी और इस दौरान बड़ी संख्या में भक्त पवित्र नदियों खासकर गंगानदी के तट पर जाएंगे। 1980 के दशक तक कांवड़ यात्रा सीमित स्तर पर होती थी, लेकिन बाद में इसे लोकप्रियता मिलने लगी। आज, इसे देश के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है।

ज्यादातर कांवड़ यात्री दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के होते हैं।
दिल्ली समेत और उसके पड़ोसी राज्य जैसे हरियाणा, राजस्थान के अधिकांश कांवड़िए आमतौर पर हरिद्वार की ओर जाते हैं।
तीर्थयात्री यूपी के मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंदशहर, हापुड़, अमरोहा, शामली, सहारनपुर, आगरा, अलीगढ़, बरेली, खीरी, बाराबंकी, अयोध्या, वाराणसी, बस्ती, संत कबीर नगर, गोरखपुर, झांसी, भदोही, मऊ, सीतापुर, मिर्जापुर और लखनऊ  भी जाते हैं।

कांवड़िए काशी में विश्वनाथ मंदिर और मेरठ में औघरनाथ मंदिर में जलाभिषेक करते हैं। वहीं कांवड़ यात्रा के तीर्थयात्रियों के बीच लोकप्रिय अन्य मंदिर देवगढ़-झारखंड का बैद्यनाथ धाम और वासुकीनाथ मंदिर है जहां हर साल बिहार और झारखंड के हजारों कांवड़िए भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं। वहीं पश्चिम बंगाल में 300 साल पुराने तारकनाथ मंदिर में भी लोग जल अर्पित करने पहुंचते हैं। इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी लोग इसी तरह प्रमुख ज्योतिर्लिंगों पर भी जलाभिषेक करने जाते हैं। सावन में कांवड़ यात्रा के दौरान 12 ज्योतिर्लिंगों पर गंगाजल चढ़ाने और भगवान शिव के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि इन पवित्र मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक करने से हर मनोकामना पूरी होती है।

कहां-कहां हैं शिव का धाम
केदारनाथ धाम- उत्तराखंड
विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग- उत्तर प्रदेश
वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग- झारखंड
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग- मध्यप्रदेश
ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग- मध्यप्रदेश
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग- गुजरात
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग- गुजरात
भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग- महाराष्ट्र
त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग- महाराष्ट्र
घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग- महाराष्ट्र
मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग- आंध्रप्रदेश

 

 

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