आम आदमी पार्टी के सामने अग्नि परीक्षा की घड़ी, करो या मरो वाली बात पर लगानी होगी अंतिम मुहर : संपादकीय
जब आम आदमी पार्टी के सारे कार्यकर्ता पार्टी की मजबूती के लिए प्रदेश में दिनरात डटे हुए हैं, रथ यात्राएं चल रही हैं, केजरीवाल जी इतनी भागदौड़ कर रहे हैं ताकि आम आदमी पार्टी हिमाचल में स्थापित हो और जनता की सेवा करे, दिल्ली मॉडल को जनता तक पहुंचा कट आम आदमी की शिक्षा, स्वास्थ से जुड़ी समस्याओं का हल करे, लेकिन ऐसे में धर्मशाला में हाल ही में पार्टी के कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा केजरीवाल जी की दिल्ली से आई टीम के साथ बदसलूकी कर रथ यात्रा को लठ यात्रा में बदलने का तांडव रचने वाले कुछ लोग पार्टी को बदनाम कर रहे हैं जोकि अत्यन्त शर्मनाक व दुर्भाग्यपूर्ण है।
इस कारण पार्टी कार्यकर्ताओं व आम आदमी का मनोबल गिरा है और पार्टी बैकफुट पर चली गई है। जिस तेज़ गति से पार्टी प्रदेश में आगे बढ़ रही थी वह सब कार्य वेकार हो गया।
अब अति आवश्यक है कि दिल्ली की केजरीवाल जी की टीम को ईगो छोड़ कर और कान भराई की बातों को दरकिनार कर सभी नए-पुराने कार्यकर्ताओं के साथ संपर्क स्थापित करना चाहिए।
इस घटनाक्रम बारे जब श्र विशाल राणा- आम आदमी पार्टी के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष (यूथ विंग) के विचार जानने चाहे तो वह भी काफी हताश व निराश नज़र आये।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में नया संगठन खड़ा करते समय दिल्ली की टीम को चाहिए था कि यहां आते ही जिन लोगों ने पार्टी की ओर से लोकसभा का चुबाव लड़ा था, उन्हें और पूर्व में जितनी भी पूर्व कमेटियां थीं, प्रदेशाध्यक्ष थे, विधानसभा अध्यक्ष थे उन सब से मिलकर उनकी राय लेनी चाहिए थी ताकि संगठन को मजबूत किया जा सके।
यह कहा गया कि जो भी आता गया उन्हें हम ओहदा देते गए। जो आया उसे ओहदा मिल गया। लेकिन टीम को सुनिश्चित करना चाहिए था कि जिन लोगों को पार्टी में ओहदे दिये गए वे 3-4 महीने बीत जाने के बाद भी अपने ओहदों को जस्टिफाई कर भी रहे हैं या नहीं। ओहदे के मुताबिक उनका स्तर है भी या नहीं। लेकिन ऐसा कुुुछ नहीं हुआ।
राणा ने कहा कि कुछ मामलों में यह भी देखा गया कि कुछ लोग दूसरी पार्टियां छोड़ कर आए और उन्होंने पार्टी में ओहदा ले लिया ।
चलो कोई बात नहीं अगर ओहदे ले भी लिए तो उस स्तर पर काम भी तो होना चाहिए था।
लोग आए, ओहदे लिए और आराम से घर बैठ गए, काम तो उन्होंने कुछ किया नहीं जिससे पार्टी मजबूत हो, पार्टी का आधार बढ़े, ये लोग जो दूसरी पार्टियों को छोड़ कर मात्र टिकट लेने की इच्छा लेकर आम आदमी पार्टी में आए थे उन्होंने पार्टी की बेहतरी के लिए कुछ नहीं किया, वे जैसे-तैसे पार्टी टिकट लेना चाहते थे और कुछ नहीं।
चलो जो हुआ सो हुआ लेकिन अभी भी बहुत कुछ बेहतर किया जा सकता है। जिस तरह से केजरीवाल जी की प्लानिंग होती है। उसमें पुराने संगठन के कर्मठ लोगों को जिन्होंने मात्र थोड़े से समय में ही पार्टी को शिखर पर पहुंचा दिया था उन्हें मान-सम्मान के साथ पुन: पार्टी की मुख्य धारा में जोड़ना चहिए था।
मान-सम्मान हर आदमी की ज़रूरत है। न तो कार्यकर्ता और न ही पार्टी किसी ईगो में रहे क्योंकि संगठन अच्छे और मेहनती कार्यकर्ताओं से बनता है।
उन्होंने कहा कि कुछ चापलूसों द्वारा कान भरने के कारण कर्मठ कार्यकर्ताओं को दरकिनार करने का खामियाजा आज पार्टी को दुर्भाग्यवश भुगतना पड़ रहा है। मान-सम्मान न मिलने के परिणामस्वरूप कर्मठ और ईमानदार कार्यकर्ता आम आदमी पार्टी को छोड़ कर मजबूरन दूसरे राजनीतिक दलों में शरण ले रहे हैं। उनकी इतने सालों की मेहनत पर आम आदमी पार्टी ने पानी फेर दिया है।
सैलरी तो देनी नहीं होती है, पार्टी को केवल मान-सम्मान ही देना होता है। कार्यकर्ता तो खुद घर-बार, काम-काज छोड़ कर अपनी जेब से पैसे खर्च कर पार्टी का आधार सुदृढ कर रहे हैं। ऐसे में दिल्ली से आने वाले ऑब्सर्वरों या कमेटियों के इंचार्जों को क्या दिक्कत है।
वर्तमान में प्रदेश में हज़ारों लोग हैं जो संगठन के लिए खड़े होते हैं बल्कि मैं अपनी भी बात कहता हूं कि मैंने यूथ प्रदेशाध्यक्ष के पद पर साढ़े तीन साल तक स्टेट को रिप्रेजेंट किया है और मेरा कार्यकाल अत्यन्त सफल रहा है तो मुझे भी मेरी कर्मठता के बल पर आ
अभी तक क्यों नहीं एडजस्ट किया गया। मुझे मेरी ईमानदारी का सिला देने में पार्टी क्यों हिचकिचा रही है।
राष्ट्रीय या प्रदेश नेतृत्व को सभी बातों को ध्यान में रखते हुए समय रहते ज़रूरी संज्ञान लेना पड़ेगा।
श्री विशाल राणा ने दुख प्रकट करते हुए कहा कि एक तो संगठन में अनुशासनहीनता बढ़ रही है, सहनशीलता की कमी देखने में आ रही है। एक-दूसरे कार्यकर्ता को सहन नहीं किया जा रहा है। आपस में लड़ाई-झगड़ों के कई एपिसोड हो रहे हैं।
इसलिए एक अनुशासन समिति ही बना दी जाए ताकि 24 घंटे अनुशासन का डंडा बरकरार रहे। किसी भी संस्थान में या संगठन में बहुत ज़रूरी है। इस समय सब को एकजुट करना ही सबसे बड़ा कार्य होना चाहिए।
कम से कम दूसरी पार्टियों को देख कर ही संज्ञान ले लीजिए जहां लोग पार्टियां छोड़ते हैं, निष्कासित होते हैं और बाद में इलेक्शन के मद्देनजर संगठन को मजबूत करने के लिए फिर से एक प्रोसेस चलता है और उन्हें फिर से पार्टी में वापस लाने की प्रक्रिया चलती है। मान-सम्मान से उन्हें वापिस लाया जाता है। उन्हें वापिस लाने का यही मकसद होता है कि सही दिशा में कदम बढ़ा कर किसी भी तरह फतेह हासिल की जा सके।
श्री राणा ने कहा कि अगर यही महत्वपूर्ण कदम आम आदमी पार्टी यदि अभी भी उठा लेती है तो हम पूरा सहयोग देने के लिए ततपर हैं, हमने पहले भी तन-मन-धन से पार्टी की बेहतरी के लिए अथक प्रयास किए हैं जिसके सकारात्मक परिणाम पार्टी ने खुद देखे हैं। इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है। अनगिनत लोग मुझे रोज़ फोन कर पूछते हैं कि विशाल जी आप सक्रिय कब हो रहे हो। लेकिन जब कोई ज़िम्मेदारी पार्टी ने दी ही नहीं तो क्या किया जा सकता है।
वालंटियर के तौर पर तो मैं सक्रिय हूं। मैंने पंजाब के चुनावों में और चंडीगढ़ के म्युनिसिपल चुनावों में भी खूब सक्रिय रहा। वहां आम आदमी पार्टी को सर्वाधिक सीटें मिलीं।
वालंटियर तौर पर तो मैं सक्रिय हूं लेकिन आधिकारिक तौर पर मुझे कोई ज़िम्मेदारी नहीं सौंपी गई है।
अगर ऊपर से या संगठन से मुझे कोई ज़िम्मेदारी मिलती है तो मैं उसे जी-जान से निभाउंगा, पहले भी निभा चुका हूं।
मेरे प्रदेशाध्यक्ष के कार्यकाल की यह खासियत रही है कि मैं किसी व्यक्ति विशेष के साथ गुटबाज़ी कर के नहीं चला। मेरी यही कोशिश रही कि मैं हर वर्ग को साथ लेकर पार्टी हित में चलूं, चाहे वरिष्ठ है, यूथ है, महिला विंग है, श्रम विंग है , लेबर विंग या कोई अन्य विंग है, उन सबको ही हमने एकजुट करके चलाया।
सभी प्रोजेक्टस को हमने सफलतापूर्वक निभाया । साढ़े चार लाख से ऊपर का डाटा तो हमने पार्टी को दिल्ली में भेज हुआ है ऑक्सिमिटर अभियान से, वह कहाँ गया। अगर उनमें से 50 प्रतिशत को भी ग्रैब किया जाता तो इस समय हलचल मची होती और हम फतेह के बिल्कुल करीब होते। यूनियन इस स्ट्रेंथ वाली कहावत मेरे कार्यकाल में बिल्कुल सटीक बैठी थी।
वर्तमान में इन सभी बातों पर गहराई से ध्यान देने की ज़रूरत है। फिर से एक्टिव करने की ज़रूरत है।
हमने पूरे प्रदेश से, बूथों से, विधानसभाओं से , जिलों से जो हमने डाटा इकट्ठा कर दिल्ली भेजा था उन्हें फिर से एक्टिव करने की ज़रूरत है।
अगर हाईकमान इस बात का संज्ञान लेता है और पुराने जितने भी अच्छे कार्यकर्ता हैं उनकी स्क्रूटिनी करके उन्हें यह जिम्मेदारी दें ।
पार्टी ने 18 प्रवक्ता तो बना दिए लेकिन मुझे लगता है कि 4 प्रवक्ता चाहिए। और प्रवक्ता वो चाहिए जिन्हें लोकल इश्यूज, प्रदेश स्तरीय इश्यूज, राष्ट्रीय स्तरीय मुद्दों की परख हो, उनकी समझ हो, बोलने को तो कोई कुछ भी बोलेगा लेकिन उन बातों का लीगल वर्शन भी होना चाहिए उनके पास। कुछ रिकॉर्ड भी होने चाहिएं, कुछ डाटा भी होना चाहिए ताकि कल को साबित भी किया जा सके।
18 प्रवक्ता जो बनाए हैं उन्हें मेरी ओर से शुभकामनाएं हैं लेकिन वे करेंगे क्या। मात्र 4 प्रवक्ता काफी हैं बाकियों को फील्ड में ज़िम्मेदारी सौंपनी चाहिए।
एक मुख्य प्रवक्ता बनाया जाना चाहिए जो प्रेस कांफ्रेंसस में भी जाए , डिबेट वगेरह के चक्कर में तो पार्टी को नहीं पड़ना चाहिए क्योंकि डिबेट में हमेशा ही मुंह की खानी पड़ती है।
अंत में में यही कहना चाहता हूं कि हाईकमान मेरी इन बातों का संज्ञान ले और हम सबके साथ मिलकर पूरी डेडिकेशन के साथ काम करें।
अभी जितने भी लोग दूसरी पार्टियां छोड़ कर आए वे केवळ पंजाब की जीत देखने के बाद ही आए जबकि में तो पिछली विधानसभा के चुनाव के बाद ही आ गया था और तभी से हम लोग डटे ही हुए हैं।
निक्का सिंह पटियाल जी , आम आदमी पार्टी के सौतेले व्यवहार के कारण कांग्रेस पार्टी में चले गए। कांग्रेस पूर्व प्रदेशाध्यक्ष निक्का सिंह पटियाल और आम आदमी पार्टी के चीफ कॉर्डिनेटर शेष पल सकलानी को हाथों हाथ शामिल कर के खुद को मजबूत और गौरवान्वित महसूस कर रही है।
कांग्रेस प्रचार समिति के चेयरमैन सुखविंदर सुखु की ये अब तक की सब से बड़ी राजनीतिक कूटनीति है। सुखु जी और भी कई ऐसे धमाके करने वाले हैं।
पर आम आदमी पार्टी से इस पलायन की शुरुआत की जिम्मेदारी लेने को कौन तयार है ? पार्टी प्रमुख और संगठनमंत्री का पार्टी से चले जाना एक बहुत बड़ा नुकसान है । क्या किसी ने जिम्मेदारी लेने की कोशिश की ?