क्या नींव के पत्थरों को समेटने में कामयाब होगी आम आदमी पार्टी? क्या मना पाएंगे रूठे नेताओं को ?किसी भी राजनीतिक दल के लिए आसान नहीं है डगर पनघट की

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RAJESH SURYAVANSHI
Editor-in-Chief, 9418130904
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अगर आम आदमी पार्टी हाईकमान ने हिमाचल प्रदेश के यूथ विंग को आनन-फानन में  कुछ चाटुकारों के प्रभाव में आकर भंग ना किया होता तो आज प्रदेश में आम आदमी पार्टी दूसरी बार सत्ता में काबिज़ होने की तैयारियां कर रही होती।

आज आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश में सत्ता पर काबिज होने के लिए सरधड़ की बाज़ी लगाने को तैयार है। हिमाचल को पंजाब की तरह अपनी झोली में देखना चाहती है।

केजरीवाल को पूरी आशा है कि इस बार आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश में बहुमत प्राप्त करके सत्तासीन होगी लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तीनों ही राजनीतिक दलों के लिए यह सहज नहीं है।  तीनों पार्टियां आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस आमने सामने हैं । तीनों ही पार्टियों को आग के दरिया से होकर गुजरना होगा।

आज हर कोई अपने आप को जीता हुआ मानकर चल रहा है । तीनों पार्टियों का यही दावा है कि वह बहुमत से इस बार हिमाचल प्रदेश में अपनी सरकार बनाएंगे लेकिन क्या यह सहज है,  जीत का सेहरा तो सिर्फ एक ही पार्टी के सिर पर बंधेगा ।

इस समय भारतीय जनता पार्टी प्रदेश में अपने विकास कार्यों और जनसंपर्क अभियान में सबसे आगे चल रही है ।

दूसरे नंबर पर कांग्रेस पहले से प्रदेश में अपना प्रभाव रखती है लेकिन नेतृत्व गौण है।

अब तीसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश में क्या और कैसे गुल खिलाएगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा हालांकि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता डोर टू डोर जाकर लोगों को केजरीवाल की लोकलुभावन नीतियों और दिल्ली मॉडल से परिचित करवा रहे हैं। लोग उनसे आश्वस्त भी हो रहे हैं लेकिन अभी तक आम आदमी पार्टी हाईकमान अपने कार्यकर्ताओं में नई जान नहीं पहुंच पाई है। पार्टी अभी भी ढुलमुल स्थिति में है ।

गौरतलब है कि विधानसभा चुनावों को मात्र कुछ महीने शेष बचे हैं । 5 से 7 महीने के बीच में कौन सी पार्टी कितना दमखम दिखा कर प्रदेश में अपने जनाधार को मजबूत करती है यह देखने वाली बात होगी और इतने कम समय में अरविंद केजरीवाल किस तरह से प्रदेश में अपनी पैठ बनाते हैं यह तो आने वाला समय ही बताएगा । रास्ता इतना आसान भी नहीं है जिस पर तेजी से चलकर मंजिल पर पहुंचा जा सके क्योंकि वक्त है बहुत ही कम और बड़ा काम है ।

अब यह अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक सूझबूझ ही तय करेगी कि वह किस प्रकार मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में वह कामयाब साबित होते हैं। नेतृत्व की भारी कमी है। पुराने बने बनाए शक्तिशाली नेतृत्व को पार्टी ने अपने ही हाथों नेस्तनाबूद कर डाला है वरना आज आम आदमी पार्टी सबसे मजबूत स्थिति में हिमाचल प्रदेश में खड़ी होती अगर नीम के पत्तों को दरकिनार ना किया होता।

केजरीवाल की राह काफी आसान हो सकती थी यदि पिछले चुनावों के समय में जब आम आदमी पार्टी पूरे दमखम के साथ जोर-शोर से उभरकर प्रदेश में जनता के समक्ष आई थी।

उस समय पार्टी के हिमाचल प्रदेश के यूथ विंग ने बढ़-चढ़कर काम किया था। एक नन्हे से पौधे को विशाल वृक्ष बनाने की अभूतपूर्व कल्पना की थी। केजरीवाल की नीतियों और दिल्ली मॉडल को घर-घर तक पहुंचाने में सफलता हासिल की थी ।

उस समय कार्यकर्ताओं में भी बहुत जोश था और आम जनता भी आम आदमी पार्टी के पक्ष में नजर आ रही थी लेकिन न जाने क्यों पार्टी हाईकमान ने प्रदेश के युवा विंग को आनन-फानन में भंग कर डाला जिससे आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं और युवाओं का हौसला पस्त हो गया। सभी अपने-अपने घरों में जा बैठे क्योंकि पार्टी हाईकमान ने उनके हसीन सपने को चूर-चूर कर दिया था। न तो वे यहां के रहे और न वहां के । उनमें आक्रोश उत्पन्न हो गया। पार्टी से उनका मोहभंग होने लगा और पार्टी फिर से धरातल पर चली गई, कहां आकाश को छूने वाली थी।

आम आदमी का मानना है कि जब प्रदेश में आम आदमी पार्टी के यूथ विंग का गठन किया गया था तो उस समय युवा कार्यकर्ता विशाल राणा को प्रदेश के यूथ विंग का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था । उन्होंने पदभार संभालते ही आम आदमी पार्टी में एक नई स्फूर्ति का संचार किया था। कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया था और आम आदमी पार्टी के संस्थापक श्री अरविंद केजरीवाल की लोकप्रिय नीतियों को जन जन तक पहुंचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। उन्होंने अपने रास्ते में आने वाली तमाम बाधाओं को चीरते हुए तन-मन-धन पार्टी की सेवा में लगा दिया था । उन्हें लोगों का भरपूर प्यार और समर्थन भी मिला था । सारे युवा वर्ग ने उन्हें अपना नेता मान कर उन पर दिल खोलकर विश्वास जताया था लेकिन अचानक यूथ विंग को भंग कर पार्टी ने अपना सारा जनाधार लगभग समाप्त कर डाला।

जिस जोश से आम आदमी पार्टी हिमाचल प्रदेश में आसमान छू रही थी उतने ही जोर से धरती पर जा गिरी।

कार्यकर्ताओं में हाईकमान के प्रति भारी भारी रोष पनप उठा।  जन आक्रोश भी बढ़ा। यदि उस समय पार्टी हाईकमान ने सोच समझकर सूझबूझ से कोई परिपक्व निर्णय लिया होता कर्मठ कार्यकर्ताओं और नेताओं की परख करते हुए यूथ विंग को भंग न किया होता तो आज पार्टी शत प्रतिशत सत्ता पर काबिज होने के लिए तैयार होती। हां यह अलग बात है कि आज भी कुछ निष्कासित नेता दिल से पार्टी के साथ चल रहे हैं लेकिन उनमें वह पहले जैसा जोश अब नजर नहीं आ रहा। इन्हीं रुष्ट नेताओं ने हालांकि पंजाब चुनाव के दौरान भी अपने बल पर बूूूथ – बूथ पर जाकर पार्टी को भरपूर सहयोग दिया।

लोगों का मानना है कि भले ही आम आदमी पार्टी की एक तेज लहर प्रदेश में देखने को मिल रही है लेकिन समय बहुत कम है और इतने कम समय में केजरीवाल किस तरह से पार्टी की नींव से जुड़े पुराने कर्मठ और जोशीले नेताओं को साथ लेकर चलते हैं और लोगों को अपने पक्ष में कर पाते हैं क्योंकि अभी तक तो  प्रदेश में नेतृत्व निर्माण भी पूरी तरह से नहीं हो पाया है , न कोई मुख्यमंत्री का चेहरा न कोई यूथ विंग के अध्यक्ष का चेहरा लोगों को देखने को मिल रहा है, जगह-जगह पर किस तरह से नेतृत्व निर्माण किया जाएगा इस पर भी अभी तक प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। यह ग्राउंड रिएलिटी है।

अब बड़ी बात यह देखने में आएगी कि आज आम आदमी पार्टी के संस्थापक श्री अरविंद केजरीवाल की एक विशाल रैली मंडी में आयोजित हो रही है उसमें केजरीवाल क्या घोषणा करते हैं और किस तरह से प्रदेश के युवा वर्ग को साथ लेकर चलने में कामयाब होते हैं।

आज की रैली यह भी सिद्ध करेगी कि आम आदमी को साथ लेकर आम आदमी पार्टी कितनी सफल साबित होगी और किस रणनीति के तहत केजरीवाल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को सीधी टक्कर दे पाएंगे।

आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं का कहना है कि समय इतना काम है कि पार्टी को जल्द से जल्द कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करना होगा। लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए एक नई रणनीति बनानी होगी तथा नेतृत्व निर्माण करने में सूझबूझ का परिचय देना होगा।

यह भी अतिआवश्यक है कि जो लोग पार्टी को बदनाम करने तथा उसे मात्र अपने उद्देश्य के लिए प्रयोग करने में लगे हैं उन्हें  पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना होगा। जो पदाधिकारी आम आदमी पार्टी को जनता तक ले जाने और इसके आधार को मजबूत करने में असफल साबित हुए हैं उन्हें भी दरकिनार करके नए नेतृत्व को उसकी कमान सौंपने होगी तभी आम आदमी पार्टी का सपना साकार हो पाएगा।

यह बात तो सर्वविदित है की भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ने ही प्रदेश में अपने जनाधार को कमजोर किया है । इसका मुख्य कारण यह है कि भाजपा के मंत्रियों और अन्य नेताओं ने अपने खास कर्मठ ईमानदार और योग्य कार्यकर्ताओं की लगातार अनदेखी की है, उन्हें हाशिए पर धकेला है और उनकी जगह धनकुबेरों को अपने साथ रखने में अधिक दिलचस्पी दिखाई है ।

उनके नकारात्मक रवैये से पार्टी कार्यकर्ताओं में और कई पदाधिकारियों में रोष व्याप्त है।

यही हालत कांग्रेस की भी है जहां बहुत से कर्मठ कार्यकर्ताओं की अनदेखी हुई है तथा केवल झोलाछाप और स्वार्थी नेताओं का ही बोलबाला है। अवसरवादी कार्यकर्ताओं की ही पार्टी में चलती है।

ऐसी विकट परिस्थितियों में केजरीवाल को पार्टी  कार्यकर्ताओं में नया जोश भरना होगा, नए प्राण फूंकने होंगे तथा पुराने कर्मठ नेताओं को साथ लेकर चलना होगा । उनमें विश्वास दिखाना होगा क्योंकि अगर नींव के पत्थर साथ नहीं होंगे तो इमारत मजबूत होने का तो सपना देखना ही बेमानी है। रास्ता जलते अंगारों से भरा पड़ा है।

वर्तमान परिस्थितियों में केजरीवाल किस प्रकार से अपनी राजनीतिक परिपक्वता और सूझबूझ का परिचय देते हैं यह देखने योग्य बात है तथा इसी पर पूरे प्रदेश की नजरें टिकी हुई हैं।

लोगों का यह मानना है कि वर्तमान रूलिंग पार्टी भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री ठाकुर जय राम अत्यंत ईमानदार, गतिशील और कर्मठ व्यक्तित्व के स्वामी हैं। राजनीति में उनकी शराफत के किस्से सुनाए जाते हैं। उन्होंने प्रदेश के लिए काम भी काफी किया है। वह अपने सौम्य व्यवहार के लिए प्रदेश भर में मशहूर है , एक मिलनसार व्यक्ति हैं लेकिन कुछ मंत्रियों पर उनकी पकड़ बेहद कमजोर है और यही मंत्री उनकी छवि को धूमिल करने में लगे हुए हैं ।

अगर मुख्यमंत्री उन्हें कंट्रोल नहीं करते तो इसका खामियाजा आने वाले चुनावों में भुगतना पड़ सकता है । यह तो वही बात होगी की करे कोई और भरे कोई । आम जनता और कार्यकर्ताओं की अनदेखी करें मंत्री और भुगतें उल्टा मुख्यमंत्री। श्री जयराम ठाकुर को भी अपने कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों और आम जनता को विश्वास में लेना होगा और कुछ  तानाशाह भ्रष्ट मंत्रियों और अन्य पदाधिकारियों पर नकेल कसनी होगी। तभी डबल इंजन की सरकार देखने के सपने की ओर अग्रसर हो पाएंगे अन्यथा *बहुत कठिन है, डगर पनघट की।*

यही बात श्री अरविंद केजरीवाल पर भी सटीक बैठती है कि वह किस तरह से अपने पुराने विश्वसनीय कर्मठ रूठे हुए नेताओं को फिर से मुख्यधारा में लाकर उन्हें साथ लेकर चलते हैं। यदि ऐसा हो पाता है तो निश्चय ही उनके सपनों की राह सरल हो सकती हैं।

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