आशीष बुटेल समेत सभी सीपीएस की कुर्सी खतरे में, सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार को झटका दिया, सीपीएस नियुक्ति मामले में ट्रांसफर याचिका खारिज

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सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश सरकार की मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति मामले में ट्रांसफर याचिका को खारिज कर दिया है। इस फैसले से कांग्रेस सरकार को बड़ा झटका लगा है।

सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में सीपीएस मामले की सुनवाई को लेकर आवेदन दायर किया था और सीपीएस की नियुक्ति से जुड़ी याचिकाओं को हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने का आग्रह किया था। हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई 7 दिसंबर को होने वाली है।

इस मुद्दे पर नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. राजीव बिंदल ने कहा है कि यह फैसला कांग्रेस सरकार के लिए एक बड़ा झटका है।

भाजपा विधायक सतपाल सिंह सत्ती ने भी सीपीएस की नियुक्ति को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। उन्होंने इसे लाभ का पद बताया है। इसके अलावा, कई अन्य व्यक्तियों ने भी सीपीएस की नियुक्तियों के खिलाफ याचिकाएं दायर की हैं।

इस मुद्दे में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण पल को चिह्नित करता है और यह दिखाता है कि न्यायिक प्रक्रिया में स्वतंत्रता और संपूर्ण न्याय प्रणाली की सख्ताई का पालन किया जा रहा है।

इस मामले में पहली याचिका वर्ष 2016 में “पीपल फॉर रिस्पॉन्सिबल गवर्नेंस” संस्था द्वारा दायर की गई थी, जिसने सीपीएस की नियुक्ति के खिलाफ उठाए गए विवादों को बढ़ावा दिया था। इसके बाद, मंडी निवासी कल्पना देवी ने भी सीपीएस की नियुक्ति के खिलाफ याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय में होने वाली सुनवाई की तारीख 7 दिसंबर को निर्धारित की गई है।

इस मुद्दे में भाजपा विधायक सतपाल सिंह सत्ती ने सीपीएस की नियुक्ति को चुनौती देने के साथ ही इसे एक राजनीतिक खिलवाड़ के रूप में बयानित किया है। उनका कहना है कि इस फैसले से कांग्रेस सरकार को बड़ा झटका पहुंचा है।

इसके अलावा, अन्य भी विधायकों ने सीपीएस की नियुक्तियों के खिलाफ चुनौती दी है और इस मामले में उच्च न्यायालय की सुनवाई की जा रही है। सीपीएस संजय अवस्थी, सुंदर सिंह, राम कुमार, मोहन लाल ब्राक्टा, आशीष बुटेल, और किशोरी लाल के नाम सुनवाई के दौरान मुद्दे को और भी जटिल बना रहे हैं।

इस समय, सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हिमाचल में न्यायिक प्रक्रिया में स्वतंत्रता के मानकों को मजबूती से दिखाया है। इससे यह साबित होता है कि न्यायिक प्रक्रिया में भ्रष्टाचार और आत्मसमर्पण के खिलाफ सरकार ने सख्त दृष्टिकोण अपनाया है।

हिमाचल प्रदेश सरकार ने छह सीपीएस की नियुक्ति की थी, जिन्हें मंत्रियों के साथ अटैच किया गया है। इन नियुक्तियों को लेकर भाजपा ने विरोध किया और हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 7 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी।

इस बीच, सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। इससे सीपीएस नियुक्ति मामले की सुनवाई अब हाईकोर्ट में ही होगी।

भाजपा ने इस फैसले को कांग्रेस सरकार के लिए बड़ा झटका बताया है।

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