सनसनीखेज खुलासा! सितासी साज़िशों का दौर : सतर्क हो जाओ मुख्यमंत्री जी, शत्रु घात लगाए बैठा है, अपनों और ग़ैरों में फ़र्क जानने का वक्त आ चुका है
हर साख पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्तां क्या होगा
“कलम के सिपाही अगर सो जाएं तो वतन के कथित मसीहा वतन बेच देंगे, वतन बेच देंगे…”
“न काहू से दोस्ती,
न काहू से बैर”
हिमाचल प्रदेश में सियासी साज़िश: सुक्खू सरकार को कमजोर करने में लगे राज्यपाल और कुछ उच्च अधिकारी
SHIMLA
RAJESH SURYAVANSHI, EDITOR-IN-CHIEF, HR MEDIA GROUP
पिछले कुछ महीनो में ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार पर राजनीतिक संकट के घनघोर काले बादल मंडराए, थोड़ा बरसे और निकल गए। सरकार का सतर्कता विभाग, जांच एजेंसियां लाचार होकर मुंह ताकती रहीं और नाटकीय तरीके से विपक्ष एक जोरदार साज़िश रच कर बहुमत के बावजूद साम-दाम-दण्ड-भेद के बल पर बड़ी आसानी से राज्यसभा की सीट उड़ा ले गया और मुख्यमंत्री को भनक तक नहीं लगी। जो रात को साथ थे, सुबह पराए हो गए, गद्दार बन गए। इतना बड़ा राजनीतिक षडयंत्र रचा गया लेकिन किसी को कानोंकान खबर तक नहीं हुई। ऐसा भारत वर्ष के इतिहास में पहले कभी देखने को नहीं मिला।
हैरानी की बात तो यह है कि उसे समय जो जांच एजेंसियां जानबूझ कर कुंभकरण की नींद सोई रही थी और जिनके कारण इतना बड़ा घटनाक्रम हुआ उनके खिलाफ एक्शन लेना तो दूर की बात, सरकार ने आज तक उंगली तक नहीं उठाई और वह आज भी उसी तरह विपक्ष के साथ मिलकर अपने कारनामों को यथावत अंजाम दे रहे हैं, सरकार के बिना किसी डर के। मुजरिम मौज कर रहे हैं और फरियादी दर-दर की ठोकरें कगकर परेशान हो रहे हैं ।
आज मुझे यह लिखते हुए हैरानी हो रही है कि सरकार के किसी भी विभाग में चले जाओ किसी को सरकार का डर नहीं है। सबकी अपनी-अपनी डफली और अपना-अपना राग।
मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा कि सरकारी जांच एजेंसियां और रेवेन्यू विभाग सिर से पांव तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। किसी की परवाह नहीं। हर कोई अपनी जेबें गर्म करने में मशरूफ़ है।
दोषियों के ख़िलाफ़ चल रही जांच की फाइलों पर साल दर साल धूल जमती जा रही है। किसी न किसी बहाने फाइलें लाल फीताशाही की शिकार है। किसी की कोई जवाबदेही नहीं। हर कोई अपने आप को हरफनमौला साबित करने में जुटा हुआ है। ऐसी विकट परिस्थितियों में कोई भी लोकप्रिय सरकार पारदर्शिता से कैसे काम कर सकती है। यह बातें मुख्यमंत्री महोदय को सुनने में तो पूरी लग सकती हैं लेकिन यह कटु सत्य है।
बात बुरी लग सकती है लेकिन लोकतंत्र के सच्चे और सजग प्रहरी होने के नाते जनता द्वारा चुनी गई लोकप्रिय सरकार को सचेत करना हम अपना फर्ज समझते हैं।
यहां आपको यह बात बताते चलें कि हिमाचल प्रदेश के इतिहास में राजा वीरभद्र सिंह ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं जिनसे अफसर शाही कांपती थी । उनकी एक इशारे पर बड़े से बड़े जनहित के काम बिना किसी रोक-टोक के हो जाया करते थे। जिस ओर भी उनके आने की भनक पड़ती थी, पूरा सरकारी तंत्र चुस्त-दुरुस्त हो जाता था। एनएसयूआई की जड़ें मजबूत थीं जो आज खोखली हो चुकी हैं। संगठन स्वयं को लाचार और अनदेखा महसूस कर रहा है जोकि सरकार के लिए चिंताजनक है।
केंद्र सरकार प्रदेश को विपक्षी होने के कारण राहत पैकेज देने में कंजूसी बरत रही है ताकि प्रदेश पर आर्थिक संकट मंडराते रहें, मुख्यमंत्री नाहक ही परेशान रहें, उनका ध्यान इधर-उधर भटका रहे और सरकार का बहुमुल्य समय यूँ ही गुज़र जाए। इसी बीच शक्तिशाली विपक्ष जो हर समय मुख्यमंत्री के खिलाफ घात लगाए बैठा रहता है, अपने-अपने लोगों के काम आराम से करवाकर खूब लुत्फ़ उठाएं। अब कोई माने या न माने, लेकिन यही सत्य का दर्पण है।
प्रिय पाठकवृन्द, अब फिर से लौट चलते हैं असली मुद्दे की बात पर।
अपनों की साज़िश की शिकार सुक्खू सरकार जाते-जाते बची। बमुश्किल जीवनदान मिला जैसे किसी डूबते हुए को तिनके का सहारा मिल जाता है।
9 में से 6 गद्दार हार गए और उपचुनाव में तीन दागी विधायक किसी न किसी तरह बच निकले, लेकिन लेकिन चोंकाने वाली बात यह है कि आज भी 9 के 9 विधायकों के जासूस सरकार में उच्च महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं। वे दीमक की तरह सरकार को चाट रहे हैं, उसकी चूलें हिला रहे हैं। सरकार अगर अब भी नहीं जगी तो बहुत देर हो सकती है । उस सबके काम बिना किसी रुकावट के हो रहे हैं। कभी कभी तो मुझे भी भ्रम होने लगता है कि सत्ता पर काबिज सरकार कांग्रेस की है या भाजपा की। मैं पूरी तहकीकात के बाद ही इस नतीजे पर पहुंचा हूँ।
ग़ौरतलब है कि जो कार्य मुख्यमंत्री के सलाहकारों और उनके मीडिया सेल को करना चाहिए वह हमारी टीम जान जोखिम में डाल कर रही है। हम भी चाहते हैं कि सरकार भले किसी भी दल की हो, लेकिन उसे प्रदेश की जनता ने बहुमत देकर शासन करने के लिए भेजा है। उसका तख्तापलट करके जनता की भावनाओं और उनके अधिकारों-कर्तव्यों के साथ खेलने की इज़ाज़त किसी को न दी जाए। उसे पूरी निष्ठा और पारदर्शिता से काम करने दिया जाना चाहिए इसीलिए हम समय-समय पर मुख्यमंत्री महोदय को सचेत करते रहते हैं ताकि लोकतंत्र को ठेस न पहुंचे क्योंकि लोकतंत्र का गला घोंटकर सत्ता पर काबिज होने की कोशिश करना बहुत बड़ा गुनाह है जिसे जनता जभी माफ नहीं करती।
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को भारी राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार के खिलाफ साजिशें तेज हो गई हैं, जिससे सत्तारूढ़ दल की स्थिति कमजोर होती दिख रही है। राज्य के नौ विधायकों के समर्थक कुछ अधिकारी गुप्त रूप से सरकार की महत्वपूर्ण सूचनाएं विपक्षी दलों को पहुंचा रहे हैं, जिससे सरकार के खिलाफ माहौल बनने लगा है।
इन अधिकारियों की गतिविधियों से कांग्रेस पार्टी के भीतर असंतोष का माहौल पनपने लगा है। पार्टी कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर रोष बढ़ रहा है कि किस तरह से कुछ अधिकारी सत्तारूढ़ दल के प्रति वफादार नहीं रहकर सरकार के खिलाफ षड्यंत्र रचने में शामिल हैं। वहीं, विपक्षी दल भाजपा इस राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाने के लिए पूरी तरह तैयार है और उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल इस समय ऊंचा है।
राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल भी सरकार के कामकाज में जानबूझ कर बाधा डालने के आरोपों का सामना कर रहे हैं। वह राजनीतिक द्वेष के चलते मुख्यमंत्री को हर मोर्चे पर नीचा दिखाने की फ़िराक में रहते हैं। उन्हें अपनी गरिमा की तनिक भी परवाह नहीं है जोकि सोचनीय है।
मुख्यमंत्री सुक्खू द्वारा पेश किए गए कई महत्वपूर्ण विधेयक और योजनाएं राज्यपाल के पास मंजूरी के लिए लंबित पड़ी हैं, जो सरकार की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रही हैं। इस स्थिति ने सरकार की साख को गंभीर संकट में डाल दिया है।
सुक्खू सरकार को इस समय गहरे राजनीतिक संकट से निपटने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। विपक्षी दलों की साजिशें और राज्यपाल का विरोधात्मक रवैया सरकार के लिए दूरगामी चुनौतियां पैदा कर सकता है। मुख्यमंत्री के सामने यह चुनौती है कि वे किस प्रकार इस संकट से सरकार को उबारते हैं और अपने विधायकों और अधिकारियों पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित करते हैं।
सत्तारूढ़ दल को अब अपने भीतर चल रही असंतोष और साजिशों पर तुरंत ध्यान देना होगा। इसके लिए जरूरी है कि सरकार अपने अधिकारियों पर निगरानी तंत्र को मजबूत करे और राज्यपाल के कार्यों के प्रति कड़ा रुख अपनाए। अगर सरकार ने समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए, तो विपक्षी दल इसे चुनावी मुद्दा बनाकर सरकार को और भी मुश्किलों में डाल सकते हैं।