राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 7वें राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं : सीनियर प्रोफेसर डॉक्टर सतीश शर्मा, आयुर्वैदिक पपरोला
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस
7वें राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस प्रत्येक वर्ष धन्वंतरी जयंती या धनतेरस के दिन मनाया जाता है। इस दिन आयुर्वेद के प्रवर्तक महर्षि भगवान धन्वंतरी जी का जन्म हुआ था। प्रथम आयुर्वेद दिवस 2016 में धन्वंतरी जयंती के दिन मनाया गया था। भगवान धन्वंतरी को आयुर्वेद ,आरोग्य, स्वास्थ्य, आयु , तेज और धन देवता के रूप में जाना जाता है ।भगवान धन्वंतरी को विष्णु का अवतार या अंश कहते हैं । भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी । समुद्र मंथन से निकले भगवान धनवंतरी के हाथों में स्वर्ण कलश था ।भगवान धन्वंतरि की चार भुजाएं हैं , ऊपर की दोनों भुजाओं में शंख और चक्र है जबकि दो अन्य भुजाओं में जालुका और औषध तथा दूसरे में स्वर्ण अमृत कलश है। आयुर्वेद दिवस को मनाने का एकमात्र उद्देश्य आयुर्वेद को जन जन तक पहुंचाने के साथ-साथ आयुर्वेद के प्रति लोगों में आगाध विश्वास पैदा करना तथा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयुर्वेद को पहचान दिलाना है।
हजारों वर्षों से आयुर्वेद हमारे स्वास्थ्य की देखभाल के साथ-साथ रोग से युक्त रोगियों को रोग मुक्त कर रहा है । भगवान धन्वंतरी की प्रिय धातु पीत्तल होने के कारण धनतेरस के दिन पीत्तल आदि बर्तन खरीदने की प्रथा है । भगवान धन्वंतरी ने ही अमृतमयी औषधियों की खोज की है । स्वास्थ्य समस्याओं के लिए आयुर्वेदिक औषधियों को वर्षों से ही उत्तम माना गया है और प्रयोग भी किया जा रहा है क्योंकि यह औषधियां प्राकृतिक जड़ी बूटियों के रूप में होने के साथ-साथ रोग को जड़ से खत्म करती हैं तथा शरीर में कोई भी उपद्रव पैदा नहीं करती हैं।-
आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य “रोग का शमन व स्वास्थ्य की रक्षा करना है।”
-आयुर्वेद प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है जो आधुनिक युग के साथ सामंजस्य बैठाता है । -भगवान धन्वंतरी देवताओं के चिकित्सक एवं आयुर्वेदिक औषधियों के भगवान माने जाते हैं । -भगवान धन्वंतरी आयुर्वेद के दैवीय संचारक माने जाते हैं ।
– भगवान धन्वंतरी स्वास्थ्य एवं समृद्धि के देवता माने जाते हैं।
आयुर्वेद दिवस मनाने के मुख्य उद्देश्य —
*आज की पीढ़ी को आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांतों के प्रति जागरूक करना ।
*आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाना।
*आयुर्वेद एवं उसके अद्वितीय चिकित्सा सिद्धांतों में दृढ़ता लाना ।
* आयुर्वेदिक औषधियों की क्षमता को उपयोग में लाकर व्याधियों एवं मृत्यु दर को कम करना।
* राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीतियों एवं योजनाओं में सहयोग देना।
त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि तथा चतुर्दशी को काली माता और अमावस्या को भगवती महालक्ष्मी जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था । देवताओं और दैत्यों के सम्मिलित प्रयासों के शांत हो जाने पर समुद्र में स्वयं ही मंथन चल रहा था जिसके चलते भगवान धन्वंतरी जी हाथ में अमृत का स्वर्ण कलश लेकर उत्पन्न हुए । महाराज धन्वंतरी काशी के राजा धन्व के पुत्र थे । महाराज धन्वंतरी आयुर्वेद के जन्मदाता , प्रवर्तक तथा देवताओं के चिकित्सक थे । भगवान विष्णु के 24 अवतारों में 12वां अवतार भगवान धन्वंतरि जी का है ।
-भगवान धन्वंतरी का जन्म समुद्र मंथन से हुआ है ।
-द्वितीय मत में काशीराज धन्व के पुत्र धन्वंतरी हैं ।
– तृतीय मत में गालब ऋषि जब प्यास से व्याकुल होकर भटक रहे थे तो घड़े में पानी लेकर जा रही वीरभद्रा नाम की कन्या ने उसकी प्यास बुझाई । इससे प्रसन्न होकर गालब ऋषि ने आशीर्वाद दिया कि तुम योग्य पुत्र की मां बनोगी। वीरभद्रा के कहने पर कि वह वैश्या है गालब ऋषि उसे अपने आश्रम ले गए और वहां कुश की पुष्पाकृति बनाकर उसकी गोद में रखकर वेद मंत्रों से अभिमंत्रित कर प्रतिष्ठित कर दी वह ही भगवान धन्वंतरी कहलाए ।
जरा मृत्यु विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का सृजन किया ।
श्रीमद भगवत गीता में कहा गया है कि देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया जिसमें मंदर पर्वत को मथनी के रूप में प्रयुक्त किया गया और बासुकी नाग को डोरी के रूप में प्रयुक्त किया गया । मंथन के दौरान एक- एक करके अनेक रत्न पैदा हुए जिसमें स्वर्ण कलश के साथ महाराजा धन्वंतरि प्रकट हुए ।
केरल के नेल्लुवाई में भगवान धन्वंतरि का सर्वाधिक सुंदर व विशाल मंदिर है , इसके अलावा अन्नकाल धन्वंतरी मंदिर( त्रिशूर)और श्री कृष्ण धन्वंतरी मंदिर( उडुपी )तथा श्री धन्वंतरी मंदिर (रामनाथपुरम )भी बहुत प्रसिद्ध है । तमिलनाडु के वालाजपत में धन्वंतरी (आरोग्यपीदम )मंदिर स्थापित है । आरोग्यपीदम की साइट पर लाइव धन्वंतरि पूजा देखी जा सकती है। तक्षकेश्वर मंदिर मंदसौर मध्य प्रदेश में भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा के दर्शन के बाद ही चिकित्सक एवं अन्य लोग जड़ी बूटियों को इकट्ठा करते हैं तथा उसके बाद ही चिकित्सा सेवा सुश्रुषा प्रारंभ करते हैं । भगवान धन्वंतरी के युग में औषधियों से अमृत निकालने की विधि केवल भगवान धन्वंतरी को ही मालूम थी । अतः भगवान धन्वंतरी ने दैत्यों और देवों के श्रम का सहारा लेकर समुद्र मंथन कर अमृत निकाला जिसे केवल देवताओं ने ही पीया । क्योंकि दैत्य अमृत प्राप्त न कर सके इसी कारण युद्ध हुआ और उन्होंने उसी के अनुरूप अमृत बनाने की कोशिश की परंतु विशेषज्ञता के अभाव में अमृत न बनकर सुरा बनी जिसके कारण दैत्यों का विनाश हुआ । जरा , रुजा व मृत्यु का नाश करने वाले व अमरत्व देने वाले भगवान धन्वंतरी को भगवान विष्णु का अंश या अवतार माना जाता है । धन्वंतरी जयंती या धनतेरस को धन्वंतरि की पूजा अर्चना करके अच्छे स्वास्थ्य की रक्षा का वरदान मांगा जाता है तथा उसके बाद अमावस्या को भगवती मां लक्ष्मी की पूजा कर धन की कामना की जाती है । पहले स्वास्थ्य की रक्षा की कामना कर बाद में धन की कामना करने का उद्देश्य यही है कि स्वस्थ स्वास्थ्य से ही धन की रक्षा और कामना की जा सकती है । स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो धन कामना कठिन नहीं होगी ।
समुद्र मंथन के पश्चात जब शिव भगवान ने हलाहल ग्रहण किया था तो भगवान धन्वंतरि ने ही भगवान शिव को अमृत प्रदान किया तथा कहा भी गया है कि ” धन गया तो कुछ नहीं गया, यदि स्वास्थ्य गया तो सब खो गया।”