बचपन याद आ गया… जब घड़ी पापा के पास होती थी और वक्त हमारे पास…अब कभी नहीं लौटेंगे वो सुनहरी पल

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बचपन याद आ गया…

अपनी पुश्तैनी हवेली की,
स्लेटपोश छत पर,
बरसात की बूंदों की आवाजें,
टप-टप छण -छण घुंघरुओं ,
की छणक सी आवाजें,
सुनी तो बचपन याद आ गया।।

नीले पत्थरों से सजे-धजे,
आंगन की यादें,
जहां घुटनों के बल रेंगना,
अम्मां की उंगली पकड़ चलना,
किलकारियों की यादें,
आज जब आई
तो बचपन याद आ गया।

गोबर से लीपा पोता घर,
दीवारों पर गोलू की नीली परत,
आंगन में पानी घड़ों की कतार,
सामने बड़ का विशाल पेड़,
आम अमरुद पेड़ों की यादें आई,
तो बचपन याद आ गया।

लकड़ी की तख्ती पर,
गाजणी लगाते-लगाते ,
हाथों पर छड़ी से मास्टर की मार,
मार खा कर बच्चे की रोने की,
जब यादें आई,
तो बचपन याद आ गया।
कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल,

Mob : 94184 25568

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