बस यही ज़िन्दगी है

बस यही ज़िन्दगी है

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*बस यही ज़िन्दगी है !*

Rajesh Suryavanshi
editor-in-chief

*जो पीछे मुड़ के देखा तो,*
*कुछ यादें बुला रही थी।*
*अब तक के सफर की,*
*सारी बातें बता रही थी।।*

*कितनी मुश्किल राहें थीं*,
*हम क्या क्या कर गए।*
*एक सुकून की तलाश में,*
*कहां कहां से गुजर गए।।*

*कितने लोग मिले सफर में,*
*कितने बिछड़ गए।*
*जन्मों का साथ निभाने वाले,*
*जाने किधर गए।।*

*हर उम्र के सपने अलग थे,*
*दृष्टिकोण अलग था।*
*मकसद अलग था,*
*मोल अलग था।।*

*आईने में खुद को देख कर,*
*रोज सोचता रहता हूँ।*
*क्या खोया क्या पाया,*
*अक्सर तोलता रहता हूँ।।*

*उम्र के साथ- साथ।*
*सोच बदलती रहती है।*
*चाहत बदलती रहती है,*
*खोज बदलती रहती है।।*
*अब इस मुकाम पर,*
*एक ठहराव आ गया है।*
*मंज़िल का तो पता नहीं,*
*पर पड़ाव आ गया है।।*

*बेचैन मन को राहत*
*अब मिलने लगी है।*
*समझौता कर लिया तो,*
*ज़िन्दगी मुकम्मल लगती है।।*

*ऐ ईश्वर तेरा धन्यवाद,*
*तुझसे कोई शिकवा नहीं है।*
*यहां सब थोड़े अधूरे से हैं,*
*किसी को पूरा मिला नहीं है।।*

*बहोत सारी कट गई,*
*अब थोड़ी सी बची है।*

*बस यही ज़िन्दगी है।*
*बस यही ज़िन्दगी है।।*

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