पाठकों के लेख

सुश्री तृप्ता भाटिया द्वारा लिखित एक सुंदर अर्थ पूर्ण लेख

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डबल मीनिंग बातें….कोड में बातें….ऐसा नहीं है औरतें या लड़कियां समझती नहीं पर वो नजंदाज़ कर देती हैं। उसके बाद वो व्यक्ति का पूरा चरित्र जान लेती हैं कई बार उनके साथ रोज़ काम करना है, कौन ही मुँह लगे शायद यह सोचकर भी।अगर उसने ज़ाहिर किया कि सब समझ में आता है तो वो चालू है, चुप चाप इग्नोर किया तो रोज़ सुने।

मुझे प्रेग्नेंट औरोंतों को देखकर बड़ा प्यार आता है, एक अलग ही नूर(चमक) होता है उनके चेहरे पर, एक निस्वार्थ प्यार की अनुभूति भी। दूसरों को देखर ही कल्पना होती है कि मेरी माँ भी इस दुनिया में मुझे ऐसे ही लेकर आई होगी। उसे मुझसे मुझे देखे बिना, परखे बिना प्यार हो गया होगा।

कुछ लोगों की नज़र उनको बड़े अजीव तरीके से देखती है, व्यंग्य तक मारने से नहीं चूकते।
खैर

लड़कियां-औरतें क्या करें क्या ना करें यह बात हम अब तब ही करेंगे जब आप बतौर समाज यह सुनिश्चित कर चुकेंगे होंगे कि लड़के और मर्द और बाप और भाई और चाचा और ताऊ और यार-दोस्त क्या करें और क्या ना करें।

क्यों? क्या हुआ?
अपनी बिरादरी के मर्दों को ज्ञान देने के नाम पे पसीने छूट गए?
चुप-चाप से अपने मोबाइल पर पोर्न देखना और सेंड करना छोड़ना पड़ेगा
वो मर्द होने का गरूर की भरे आफिस या कहीं भी गन्दा से जोक या फिर मैं मर्द हूँ बोल सकता हूँ छोङना पड़ेगा।
या सोशल मीडिया पर अपने दोस्त भद्दी और गंदी पोस्ट के लिए उसको लताड़ना पड़ेगा।
या फिर हर बलात्कार के बाद “लड़कियां भी कुछ कम नहीं होती” ऐसी घटिया वयानबाजी करने वाले व्यक्ति या फिर अपने MLA/MP का boycott करना पड़ेगा।

डर रहे हो? नहीं हो पाएगा तुमसे? मुश्किल है?

तृप्ता भाटिया शिमला

 

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