पैतृक घरों की अनदेखी से बहुत दुख होता है

आजकल के बच्चों को अपने पैतृक घरों की देखरेख करनी ही चाहिए

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Bksood Chief Editor

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उपरोक्त चित्र में जिस  घर के ऐसे दशा दिखाई दे रही है सोचिए यह कितना बड़ा घर था, और उसे कितने चाव से किसी ने बनाया होगा ।

जिस किसी ने भी यह घर बनाया हो तो इतने शौक से कितनी मेहनत से 1-1 ईंट खुद अपने हाथों से बनाकर चुनाई होंगी।
इतना बड़ा घर किसी अमीर का ही रहा होगा लेकिन,,
वक्त के साथ महल खंडहर हो गया ,
तालाब,खुद को समझने लगा कि मैं समंदर हो गया !!
परंतु तालाब को यह नहीं मालूम कि उसकी सीमाएं बहुत सीमित हैं !
ना उसमें उछाल है ना उबाल है!
बस मैं सबसे बड़ा हूं…
इसी, गलतफहमी का ख्याल है!!

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