टिकट आवंटन में सभी पार्टियों का एक ही नियम
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बी के सूद मुख्य संपादक
09 अक्तूबर 2021– (#चुनावी_राजनीति_मे_टिकट_आबंटन_के_इर्द_गिर्द_घूमती_है_राजनीति)–
चुनावी राजनीति करने वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है टिकट प्राप्ति। पार्टी का अधिकृत प्रत्याशी बनने को ही टिकट की संज्ञा दी जाती है। हर चुनाव क्षेत्र मे चुनाव लड़ने के एक से अधिक चाहवान होते है। लेकिन टिकट तो एक को ही मिलना होता है, परन्तु किसी भी पार्टी ने टिकट देने के मापदंड तय नहीं कर रखें है। भाजपा मे टिकट का अंतिम निर्णय करने का अधिकार केन्द्रीय चुनाव समिति के पास है और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस मे अधिकार गांधी परिवार के पास सुरक्षित है। अकाली दल मे बादल परिवार, बहुजन समाज पार्टी मे मायावती जी के पास, समाजवादी पार्टी मे मुलायम परिवार के पास, शिवसेना मे यह अधिकार ठाकरे परिवार के पास है और सिद्धांतवादी पार्टी होने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी मे अधिकार पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल के पास सुरक्षित है।
जितना घोलमाल टिकट आबंटन मे होता है उतना किसी और आबंटन मे देखने को नहीं मिलता। इस आबंटन को लेकर न कोई मापदंड है और न ही कोई नियम। आप अच्छे कार्यकर्ता हो सकते है और हो सकता है कि आपने पार्टी के लिए बहुत कुछ किया हो, समय-समय पर आपके योगदान की तारीफ भी पार्टी ने की हो सकती है परन्तु जरूरी नहीं है कि टिकट के लिए आप पार्टी की पंसद हो। मैंने राजनीति मे अपने जीवन के लगभग 40 वर्ष लगाए है लेकिन टिकट किस आधार पर मिलते है यह समझने मे असफल रहा हूँ। यह बात लगभग हर पार्टी पर लागू होती है। मै ईमानदारी से यह बात कह सकता हूँ जब टिकट मिला और जब काटा पार्टी के दोनों निर्णयों का सटीक आधार मै नहीं समझ सका था। बस इतना ही कह सकता हूँ दोनों ही अवसरों पर राजनीति की शंतरज की चालें चली गई थी। आज जो कुछ हिमाचल के उप-चुनाव मे टिकट को लेकर गहमा गहमी हो रही है, चर्चाओं का बाजार गर्म है और आरोप प्रत्यारोप लग रहे है। यह पहली बार नहीं हो रहा है न ही किसी एक पार्टी मे हो रहा है। यह दोनों पार्टियों मे हो रहा है और यह भविष्य मे भी होता रहेगा क्योंकि जब किसी खेल के नियम न हो तो खेल मे रोण्टी होने के मौके बढ़ जाते है। जब सिलेक्शन नेताओं की व्यक्तिगत पंसद न पसंद पर निर्भर करती हो तो इंसाफ की उम्मीद कम हो जाती है।
सबसे दुर्भाग्य पूर्ण बात तो यह हैबकि कुछ क्षेत्रीय पार्टियों मे तो पैसे लेकर टिकट देने के आरोप भी लगते रहे है। अभी आम आदमी पार्टी जो की बड़े सिद्धांतो की बात कर राजनीति मे आई थी और जन समर्थन जुटाने मे भी सफल रही है, राज्यसभा के दो टिकट पार्टी के बाहर के दो धनाड्य गुप्तो को देकर अपने दो दिग्गज नेताओं कुमार विश्वास और आशुतोष को खोने मे भी गुरेज नहीं किया। राजनीतिक विश्लेषक इस आबंटन की पृष्ठभूमि मे दोनों गुप्तो की सम्पन्नता को मानते है। 2007 मे सोलन विधानसभा से बहुजन समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार पंचकुला से चुनाव लड़ने सोलन आए थे। वह मुझसे मिलने मेरे घर आए थे और वह दबी आवाज मे पार्टी के प्रभारी जो पंजाब से ताल्लुक रखते थे को टिकट की कीमत देने की बात बता रहे थे। हालांकि मै उनकी बात की पुष्टी करने की स्थिति मे नहीं हूँ। मेरे हिसाब मे पार्टियां टिकट देने के लिए कुछ मापदंड तय कर सकती है। टिकटार्थी की शिक्षा,आयु, पार्टी मे सदस्यता और वरिष्ठता के अतिरिक्त भाषण, संवाद, वफादारी, ईमानदारी, विचारधारा की प्रतिबद्धता और नेतृत्व की क्षमता का आंकलन कर अंक रखे जा सकते है। शायद ऐसी प्रक्रिया से गुजरने मे कार्यकर्ताओं से कुछ हद तक न्याय हो सके। सबसे दुखद बात है कि पार्टियों का एक मात्र लक्ष्य अब सत्ता प्राप्ति हो गया है उसकी प्राप्ति के लिए कुछ भी करने के लिए सब पार्टियां तैयार है कोई भी अपवाद नहीं है।
एक बड़े नेता से पूछा गया कि आप चुनाव के लिए उम्मीदवार तय करने जा रहे हो उनके लिए आपने क्या योग्यता तय की है। नेताजी ने उत्तर दिया उम्मीदवार मे हम तीन योग्यताएं देखेंगे
(1) जीत की क्षमता
(2) जीत की क्षमता
(3) जीत की क्षमता
उम्मीद करता हूँ मेरे इस ब्लॉग से टिकट के चाहवान दोस्तों को कुछ टिप्स जरूर मिलेंगे कि यह चुनाव का टिकट कम और लाॅटरी टिकट अधिक है।