पाठकों के लेख
महेंद्र नाथ सोफत पूर्व मंत्री हिमाचल प्रदेश सरकार
BKSood chief editor
22 अक्तूबर 2021— (#सरकारें_कर_दाताओं_के_पैसे_की_करती_है_बर्बादी) —
लखीमपुर खीरी हत्याकांड का सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया है। सुप्रीम कोर्ट लगातार जांच पर नजर बनाए हुए है। अभी बुधवार को एक बार फिर से उतर प्रदेश के “ढीले रवैये” को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाने की खबर प्रतिष्ठित अग्रेंजी और हिंदी दैनिक मे छपी है। मुख्य न्यायधीश एन वी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान जांच की स्टेटस रिपोर्ट समय पर अदालत मे पेश न करने के लिए फटकारा है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार के नियमित वकील सुप्रीम कोर्ट मे सरकार की पैरवी करने के लिए तैनात रहते है लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा लखीमपुर हत्या कांड के संज्ञान लेने के बाद इस केस की पैरवी करने के लिए विशेष तौर पर विश्व विख्यात कानूनविद और वकील हरीश साल्वे की सेवाएं ली गई है। हरीश साल्वे देश के जाने-माने वकीलों मे से एक है। वह कानून के क्षेत्र का बड़ा नाम है। एक जानकारी के अनुसार वह देश के सबसे महंगे वक़ील है। यदि मीडिया मे छपने वाली जानकारी को सही माना जाए तो आज- कल वह अदालत मे अपनी एक उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए अपने कलांईट से 50 से 75 लाख रूपये वसूल करते है। मै अपने दोस्त योगेश सेठी जी के साथ 1986 मे फोर्ड ट्रक के आप्रटेरों के लिए उनकी पेशेवर सेवाएं ले चुका हूँ। उस समय वह एक डेट की दस हजार रूपए फीस लिया करते थे। समय के साथ उनकी फीस बढ़ी ही नहीं अपितु छलांग लगा कर आसमान छूने लगी है।
मेरे विचार मे अभी सुप्रीम कोर्ट मे लखीमपुर हत्या कांड मे सरकार के पक्ष मे कोई पैरवी या बहस नहीं हो रही है। केवल पुलिस के विशेष जांच दल के द्वारा की गई जांच की रिपोर्ट पेश की जा रही है। इस काम के लिए इतने बड़े और देश के सबसे महंगे वक़ील की सेवाएं उत्तर प्रदेश द्वारा ली गई है। मेरे विचार मे यह करदाताओं के पैसे की बर्बादी मात्र है। आज अधिकांश सरकारें आर्थिक बदहाली से जूझ रही है। विकास के काम पैसे की कमी के कारण नहीं हो पा रहे है। मेडिकल सेवाएं और शिक्षा के क्षेत्र मे भी रिक्तियां भरी नहीं जा पा रही है। हालांकि जनता पर टैक्स का बोझ लगातार बढ़ाया जा रहा है लेकिन मितव्ययता को लेकर सरकारें संजिदा नहीं है। सरकारी पैसे की बर्बादी का यह एक उदाहरण मात्र है यदि आप सरकारी खर्चों का अवलोकन करेंगे तो आपको पता चलेगा कि किस तरह करदाताओं के पैसे की बर्बादी सरकारें करती है। हालांकि लोकतंत्र मे इस प्रकार की बर्बादी को इंगित करने के लिए सी.ए.जी जैसी संस्थाओं का गठन किया गया है। लेकिन पिछले एक दशक से वह बिलकुल प्रभावहीन हो कर रह गई है। खैर इस मामले मे इतना कह कर बात खत्म करना चाहूँगा जब कोर्ट से फटकार ही खानी है तो जरूरी नहीं है कि उसके लिए 50 लाख खर्च किए जाएं। कोर्ट की फटकार तो एक लाख वाले वकील के माध्यम से भी खा कर सरकारी खजाने के 49 लाख रूपये बचाए जा सकते है।