बने रहो पगला ! काम करेगा अगला!!
अगर दिखाओगे वफादारी! तो हो सकती है गिरफ्तारी!! सरकारी नौकरी में अगर लोगे टेंशन ! तो जल्द मिल जाएगी फैमिली पेंशन!!
Bksood chief editor
सरकारी संपत्तियों के प्रति उदासीनता अगर यह सम्पत्ति हमारे घर की होती तो हम इससे लाखों रुपए महीने का कमा रहे होते।
मैंने पहले भी कई बार लिखा है साथ में वीडियोस और फोटो भी डाली है कि किस तरह से सरकारी संपत्तियों के प्रति हमारे सरकारी अधिकारी और सरकारी सिस्टम उदासीन बने रहते हैं ।
ना जाने कब सरकार के अधिकारी व सिस्टम सरकार के भवनों को सरकारी सम्पतियों को सरकार की जमीनों को अपनी निजी संपत्ति की तरह समझ कर उनका अधिक से अधिक सरकार के हित में दोहन करने की सोचेंगे।
जब योजनाएं बनती हैं तो ना जाने क्यों सरकारी अधिकारियों की सोच में व्यवसायिक सोच नहीं रहती ?क्यों वह लकीर के फकीर बने रहते हैं ?
किसी भी योजना या भवन के बनने से पहले वहां की एक डीपीआर बनाई जाती है जिस पर वहां की लोकेशन उस जगह की उस प्रोजेक्ट की महत्तता तथा लोगों की सुविधा और सरकार को उस से कितना लाभ या हानि होने वाला है इन सभी बातों का ध्यान रखा जाता है। परंतु लगता है यह केवल गाइडलाइन ही है इन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। किसी नेता ने जो कहा उस पर हां की मोहर नीचे से लेकर ऊपर तक लगती जाती है। इस हां की मोहर लगाने मे ना जाने कितने ही बुद्धिजीवी और कितने ही देशभक्त लोग बैठे होते हैं ,परंतु हमारे सिस्टम में नेताओ द्वारा कही गई बात को हटाने की हिम्मत किसी में भी नहीं होती ।यह जर्जर हालत में आप जो भवन देख रहे हैं यह पालमपुर शहर के बीचोबीच स्वास्थ्य विभाग का वह भवन है जिस पर कभी दंत विभाग हुआ करता था। समय के साथ पालमपुर अस्पताल की बहुत बड़ी बिल्डिंग बन गई और यह बिल्डिंग खाली कर दी गई। तब से लेकर आज तक यह बिल्डिंग लावारिस हालत में इसी तरह पड़ी है तथा दिन-प्रतिदिन गिरने की ओर अग्रसर है।
ऐसा नहीं कि शुरू से ही है गिरने की हालत में थी परंतु जब इसमें कोई गतिविधि नहीं रही तो इसकी देखभाल भी बंद कर दी गई और आप आज जो इसकी हालत देख रहे हो मैं चिंताजनक और विचारणीय है ।
यह भवन शहर के बीचो-बीच है और अगर इसकी रेंटल वैल्यू लगाई तो यह लाखों रुपये महीना हो सकती है ।
परंतु इतना सोचे कौन ?
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि प्रशासन में शासन का इतना अधिक दखल है कि कोई अधिकारी या कर्मचारी लकीर का फकीर ना बनकर कुछ अलग से सरकार के हित में जनता के हित में देश के हित में सोचना चाहे ,,तो वह यह सोचकर पीछे हट जाता है कि कल को अगर किसी ने शिकायत कर दी या उसके द्वारा सुझाए गए परामर्श सही नहीं बैठे तो उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा । परन्तु अगर नेता ने कहा और वह प्रोजेक्ट फ्लॉप भी हो गया तो कोई पूछने वाला नहीं होगा इसलिए प्रशासन की यह सोच बन गई है कि
सरकारी माल है खराब होता है होता रहे ,सड़ता है सड़ता रहे, गिरता है रहे, किसी को क्या फर्क पड़ेगा हमें तो तनख्वा उतनी ही मिल रहेगी ना।
इसे बचाने या संभालने की हमारी जिम्मेवारी नही है ।अगर इस जर्जर हालत में भी इस भवन को किसी प्राइवेट पार्टी को लीज पर दे दिया जाए तो वह इसके लाखों रुपए महीने का किराया दे सकता है जिससे हॉस्पिटल की बिजली पानी सफाई और अन्य रखरखाव के खर्चे निकल सकते हैं, परंतु मोदी का कथन सही है कि मेरा क्या ?मुझे क्या ?
सरकारी नौकरी करने का सबसे बेस्ट सबसे उत्तम तरीका है:
बने रहो पगला !
काम करेगा अगला!!
अगर दिखाओगे वफादारी!
तो हो सकती है गिरफ्तारी!!
सरकारी नौकरी में अगर लोगे टेंशन !
तो जल्द मिल जाएगी फैमिली पेंशन!!
जो चलता है उसे चलने दो !
आंखें मूंदे रहो सैलरीजो मिलने दो!!
Great