हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ उपमंडल में भगवान भोले बाबा का विश्व प्रसिद्ध मंदिर है जिसके दर्शनों के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं तथा अपनी मनोकामना और इच्छाओं को पूर्ण करने की शक्ति भोले बाबा से मांगते हैं शिवरात्रि के दिनों में यहां पर बहुत चहल-पहल होती है और यहां का घृत मंडल बहुत प्रसिद्ध है।यह मंदिर अपनी पौराणिक कथाओं, वास्तुकला और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।
पौराणिक कथाओं और उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण कार्य ‘आहुका’ और ‘ममुक’ नाम के दो व्यापारी भाइयों ने 1204 ई. में किया था।
एक प्रचलित मान्यता के अनुसार द्वापर युग में पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर का निर्माण किया था किन्तु उपलब्ध ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह आख्यान उचित प्रतीत नहीं होता है। इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थरों से किया गया है।
जनश्रुतियों के अनुसार लंका का राजा रावण, जोकि शिव जी का परम भक्त था, ने विश्व विजयी होने के उद्देश्य से भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी। इस तपस्या से भगवान शिव को अभिभूत करने के लिए रावण अपना सिर हवन कुंड में समर्पित करने वाला था, तभी भगवान शिव वहां प्रकट हुए और रावण से वर मांगने के लिए कहा।
जनश्रुतियों के अनुसार लंका का राजा रावण, जोकि शिव जी का परम भक्त था, ने विश्व विजयी होने के उद्देश्य से भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की थी। इस तपस्या से भगवान शिव को अभिभूत करने के लिए रावण अपना सिर हवन कुंड में समर्पित करने वाला था, तभी भगवान शिव वहां प्रकट हुए और रावण से वर मांगने के लिए कहा।
रावण ने भगवान शिव से उसको साथ लेकर चलने की प्रार्थना की। उसके आग्रह पर भगवान शिव ने लिंग का रूप धारण कर लिया और रावण को उसे ले जाने को कहा किन्तु साथ ही शर्त रख दी कि वह उन्हें लंका पहुंचने तक कहीं भी रास्ते में न रखे। भगवान शिव ने रावण से कहा कि अगर यह शिवलिंग रास्ते में कही रख देगा तो वह उसी स्थान पर स्थापित हो जाएगा और उसका विश्व विजयी होने का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा। देवताओं ने रावण के इस निमित्त से घबराकर भगवान विष्णु से प्रार्थना की। श्री विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार करते हुए किसान का रूप धारण किया और मंदिर स्थल के समीप खेतों में काम करने लगे। रास्ते में थकने पर रावण विश्राम के लिए रुका तथा शिवलिंग पास में ही काम कर रहे उस किसान को पकड़ाते हुए उससे शिवलिंग को नीचे न रखने का आग्रह किया लेकिन किसान ने शिवलिंग को वहीं रख दिया। इस तरह शिवलिंग उसी स्थान पर स्थापित हो गया।
ज्ञातव्य है कि बैजनाथ में दशहरा नहीं मनाया जाता क्योंकि रावण शिव का प्रिय भक्त था। कहते हैं कि एक बार कुछ स्थानीय लोगों ने दशहरे के दौरान रावण का पुतला जलाया था और इसके बाद आयोजकों तथा उनके परिवारों को अनिष्ट झेलना पड़ा था। उसके बाद किसी ने भी यहां दशहरा मनाने की कोशिश नहीं की।
एक अन्य प्रचलित मान्यता के अनुसार शिव नगरी बैजनाथ में किसी भी स्वर्णकार की दुकान नहीं है, जबकि पपथेला में स्वर्ण आभूषणों का काफी अच्छा कारोबार है। इसे भी शिव भक्त रावण की सोने की लंका से जोड़ कर देखते हैं।
शिव भक्तों के लिए बैजनाथ के समीप भगवान भोले शंकर के और भी कई मंदिर मौजूद हैं। इस मंदिर के अढ़ाई कोस की परिधि में चारों दिशाओं में भगवान शिव विभिन्न रूपों में मौजूद हैं। बैजनाथ के पूर्व में संसाल के समीप गुकुटेशवर नाथ, पश्चिम में पल्लिकेश्वर नाथ और दक्षिण में महाकाल के समीप महाकालेश्वर के रूप में भगवान शिव एक अन्य मंदिर में सिद्धेश्वर के रूप में विद्यमान हैं।
शिवरात्रि का त्यौहार यहां पर बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है तथा इस अवसर पर राज्य स्तरीय सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।