स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मनवीर कटोच का लेख

देश के जनता को प्रेरित करने वाला संदेश

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बीके सूद :चीफ एडिटर

Bksood
Chief editor

सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिन के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह और संघर्ष ।
भारतवर्ष में मुगल साम्राज्य का सूर्यास्त होते ही अंग्रेजी सत्ता का उदय होने लग पड़ा था, जो विदेशी हमारे यहां व्यापार करने के लिए आए थे उन्होंने धीरे-धीरे यहां की राजनीतिक सत्ता को हथियाने की शुरुआत कर दी । उन्होंने * फूट डालो राज करो* की कूटनीति को अपनाकर भारतीय राजाओं को अपने काबू में करने लगे। । ब्रिटिश सरकार ने धीरे – धीरे रियासतों की जिम्मेवारी अपने हाथों में लेने लगे थे , उन्होंने राजाओं को कई प्रकार के प्रलोभन देकर या फिर अपनी ताकत दिखा कर उन पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। सन् 1857 को हम आजादी की लड़ाई की प्रथम घटना बताते हैं लेकिन उससे पहले भी हमारे बहुत से आदिवासियों ने कई राजाओं ने साधु- संतों ने अंग्रेजों की खिलाफ विद्रोह करना शुरू कर दिया था और उन्होंने अंग्रेजों खिलाफ लड़ाईयां भी लड़ी थी। जेसे सन् 1795 से 1800 में झारखंड क्षेत्र में चेरो आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ *जंगल की आग * का संकेत दे चुका था, सन, 1785 में तिलका मांझी को भागलपुर में अंग्रेजों ने फांसी की सजा दी थी आज भी भागलपुर में तिलकामांझी शहीद चौक के नाम से जाना जाता है मध्यप्रदेश में धार जिले के विंध्याचल पर्वत में स्वतंत्रता सेनानियों की याद में 10 फरवरी को आज भी बलिदान दिवस मनाया जाता है सन् 1824 में बैरकपुर का प्रथम सैनिक विद्रोह, 1836 मैं गुजरात का महीकात विद्रोह ,सन् 1855 में सेनिक विद्रोह, सन् 1830 से 1860 में नील विद्रोह , कानपुर से नानासाहेब पेशवा ओर महाराष्ट्र से तात्या टोपे ने क्रांति की लहर को फैलाया था और युद्ध भी किए थे।
उस समय राजा – महाराजाओं ने कोई सत्ता पाने के लिए युद्ध नहीं किए थे, उन्होंने तो अंग्रेजों द्वारा लादी गई एक नई गुलाम व्यवस्था को लागू करने के विरोध में और अंग्रेजों के कारिन्दो व दलालों द्वारा किए जाने वाले जुल्मों ,शोषण अत्याचारों खिलाफ थी ,ओर फिर से मातृभूमि को गुलाम नहीं होना देना चाहते थे।
सन् 1846 ई के अन्त तक अंग्रेजों ने कांगड़ा और शिमला पहाड़ी क्षेत्रों का अधिग्रहण कर लिया था, अंग्रेज कांगड़ा को ट्राफी के रूप में अपने पास रखना चाहते थे । इसी पर महाराजा संसार चंद के पोते , महाराजा अनिरुद्ध चंद्र के पुत्र राजा रणवीर ने अंग्रेजों की रणनीति को भांप लिया और उनके खिलाफ विद्रोह कर दिया लेकिन सन् 1847 मैं संघर्ष के दौरान ही उनका देहांत हो गया उसके बाद उनके छोटे भाई राजा प्रमोद चंद गद्दी पर बैठे अपने भाई की तरह ही अपना विद्रोह जारी रखा , उन्होंने नूरपुर , जसवा , दातारपुर , नादौन , सिख अन्य राजाओं को जोड़कर अंग्रेजों से जंग करने की योजना बनाई। महाराजा प्रमोद चंद् अपने 8000 बहादुर राजपूतों की सेना के साथ ब्रिटिश सैनिकों से लोहा लेने के लिए एक मजबूत सेना बना कर बहुत ही बहादुरी शुरवीरता , युद्ध नीति के अनुसार अपना मार्च शुरू कर दिया। उस समय ब्रिटिश सरकार की कूटनीति विश्व युद्ध को देखते हुए युद्ध करने के पक्ष में नहीं थे उन्हें हमारे राजाओं सेनिको को अपने साथ मिलाकर के विश्व युद्ध के लिए संगठित करना चाहते थे उन्होंने कई राजाओं को कई प्रकार के प्रलोभन देकर के अपने पक्ष में लेने की कूटनीति से दवाव बनाने में कामयाब हुए ओर उस समय कर्नल लारेंस जो आयुक्त के अधिकार के तहत महाराजा प्रमोद चंद् को उनकी स्वतंत्रता देने और शासक बनाने के लिए तैयार हो गए थे । युद्ध के दौरान राजा प्रमोद चंद और अंग्रेजों के बीच लगातार संवाद जारी रहा। लेकिन महाराजा प्रमोद चंद अंग्रेजों की कठपुतली राजा नहीं बनना चाहते थे और उनकी मंशा को अच्छी तरह से समझ चुके थे। कुछ राजाओं ने अपने व्यक्तिगत , निजी राजनीतिक स्वार्थ, राज पाने के लिए अंग्रेजों का साथ दिया। सुजानपुर किले में कई दिनों तक अपनी बात मनवाने के लिए उन्हें कई प्रकार के प्रलोभन देने की कोशिश करते रहे ओर फिर बहुत ही
सुनियोजित तरीके से धोखे से महाराजा प्रमोद चन्द को केद कर लिया ओर अल्मोड़ा जेल भेज दिया गया जहां बेड़ियों में जकड कर काल कोठरी में रख कर क्रुरता से घोर यातनाएं दी । महाराजा प्रमोद चन्द के नेतृत्व में आजादी की जंग प्रथम युद्धों ओर संघर्षों में था *उन्हें गुलाम बन कर कठपुतली राजा बन कर राजसता का लोभ नहीं था और दुश्मन के आगे झुक जाएं पूर्वजों ने उन्हें सिखाया नहीं था। उन्हें अपनी संस्कृति को जीवित रखना चाहते थे।
अगर सभी राजा शुरुआत से ही एकजुट होकर लड़ते तो मुट्ठीभर अंग्रेज हमारे देश को गुलाम नहीं बना सकते थे ।
फिर भी हमारे अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने देश को आजाद करवाने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया था जिनमें भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर ,लाला लाजपत राय ,तिलक झांसी की रानी , महात्मा गांधी ने 09 अगस्त 1942 में *अंग्रेजों भारत छोड़ो** का नारा दिया था उसमें कई नेताओं को गिरफ्तार भी किया था श्री जय प्रकाश नारायण के साथ कई नेताओं ने अंग्रेजों से किसी प्रकार की भी सोदेबाजी करने के लिए मना कर दिया था। नेता जी सुभाष चंद्र बोस जिन्होंने आजाद हिंद फौज का गठन किया और अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाईयां लड़ी , देश के काफी इलाकों को अंग्रेजों से मुक्त भी करवा दिया था। * *तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा* ओर *जय हिन्द* का नारा देने वाले उनके साथ अजाद हिन्द फौज झांसी रेजिमेंट की कैप्टन नीरा आर्या , सरदार उधम सिंह कितने ही ऐसे महान क्रांतिकारियों ने मातृभूमि को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुतियां तक हंसते-हंसते दे दी थी , उनके बलिदानों को हम भूल चुके हैं, हम जीवित रहते तो उन्हें कुछ नहीं दे पाए लेकिन कम से कम आज उनकी मृत्यु के बाद तो हमें उनके नाम को फिर से जीवित करने की जरूरत है । भारतीय * जल सेना विद्रोह *ओर नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंग्रेजों की नींव को पूरी तरह से हिला के रख दिया था।देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर के बलिदान देने वाले उन क्रांतिकारियों , शहीदों के साथ ओर उनके परिवारों के साथ क्या हुआ कैसे अपना जीवन का निर्वाह करते रहे , जो हमारे लिए एक अत्यंत शर्मनाक दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण ही है , मातृभूमि ओर अपनी संस्कृति की आन बान शान को बनाए रखने के लिए शूरवीर अपनी जान तक कुर्बान कर देते हैं उन्हें किसी भी प्रकार की कोई लालसा नहीं होती फिर भी एक विश्वास , भरोसा होता है कि उनके बाद सरकार और समाज उनके परिवारों को जरूर वह सम्मान देगा जिसके वे सही हकदार हैं । हमे अपना। इतिहास नहीं भूलना चाहिए । फील्ड मार्शल क्लाउड आचिनलेक ने कहा था यदि भारतीय सेना उनके पास नहीं होती तो अंग्रेजी विश्व युद्ध नहीं जीत पाते।
आज हम अपने महान क्रांतिकारी शूरवीरों को भूल चुके हैं जिन्होंने अपना सब कुछ मातृभूमि के लिए न्योछावर कर दिया था ओर जिनकी वजह से आज हम आजादी में सांस ले रहे हैं। उनकी वीर गाथाओं को हमें फिर जीवित करने की बहुत जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा मिल सके।
मनवीर चन्द कटोच ( सेवानिवृत्त पैरामिलिट्री सदस्य )
गाव- भवारना
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश 176083
मोबाइल 8679710047

राजेश सूर्यवंशी एडिटर इन चीफ

 

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