शहीद विक्रम बत्रा पर रिलीज हुई फिल्म शेर शाह एक शानदार श्रद्धांजलि

पालमपुर वालों के लिए गौरव का विषय के पालमपुर के शहीद नौजवान पर कोई फिल्म बनी

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शेरशाह शहीद विक्रम बत्रा को श्रद्धांजलि

हिमांशु मिश्रा एडीशनल एडवोकेट जनरल हिमाचल प्रदेश की प्रस्तुति

Hemanshu Mishra

बी के सूद मुख्य संपादक

Bksood chief editor

 

12 अगस्त 2021को अमेज़ॉन प्राइम पर रिलीज़ हुई “शेरशाह” भारतीय नौजवान सैन्य अधिकारी की वास्तविकता जीवटता और पराक्रम पर आधारित कश्मीर और कारगिल युद्ध के संघर्षों की फिल्म है, जो विष्णुवर्धन द्वारा निर्देशित और संदीप श्रीवास्तव द्वारा लिखी गई है।

जब आपके साथ ही खेला , पढा , बढ़ा हुआ साथी बहुत ही बड़ा काम कर अमर हो जाए तो आप गौरवान्वित तो होते ही है अपितु अपने को भाग्यशाली भी समझते है कि आप के ही एक साथी ने अपने जीवन को सार्थक भी किया और अनेकोनेक नवयुवकों के प्रेरणा स्त्रोत भी वह रहे । मैंने कभी फ़िल्म समीक्षा नही लिखी , लेकिन जो जिंदगी के बहुत करीब की घटनाएं थी उन्हें फ़िल्म में देख कर खुद को रोक नही पाया ।

सिद्धार्थ मल्होत्रा ​​​​ने दोहरी अदाकारी में लव यानी विक्रम बत्रा और जुड़वां भाई कुश यानी विशाल बत्रा की भूमिका शिद्दत से निभाने के प्रयास किया है , कहीं कहीं तो वास्तविकता के बहुत नजदीक दिखे लेकिन कई जगह विक्रम के महान चरित्र से छेड़छाड़ होती दिखी । विक्रम की प्रेमिका डिंपल चीमा की भूमिका में कायिरा आडवाणी निसन्देह बेहतरीन रही हैं ।

हिंदी फिल्म के भांति यह फिल्म भी फ़्लैश बैक में दर्शायी गयी है , जिसकी शुरुआत में विशाल बत्रा (सिद्धार्थ मल्होत्रा) अपने भाई के जीवन पर प्रेरणा दायिक सम्बोधन दे रहे हैं ।

विक्रम बत्रा को टेबल टेनिस खेलने का शौक था एक बेहतरीन खिलाड़ी होने के कारण वो नेशनल भी खेले थे । सन्नी अमित सूद उनका टेबल टेनिस में जोड़ीदार थे । हम क्रिकेट भी साथ खेलते थे और फ़िल्म की शुरआत में ही पालमपुर की गलियों में अन्य बच्चों की भांति विक्रम बत्रा क्रिकेट खेल रहे दर्शाये गए हैं । जब कुछ उम्रदराज बच्चे उसकी गेंद ले जाते हैं। बहुत छोटा होने के बावजूद, विक्रम अपने निडर स्वभाव का खुलासा करते हुए गेंद को छीनने लगते हैं और जिद्द एवम जनून के कारण गेंद को छीन लेते हैं । इसी जिद्द और जनून के साथ पूरी फिल्म में उनके चरित्र को उकेरा गया है जो असली जिंदगी में फ़िल्म के कथानक से कहीं अधिक था ।

विक्रम विशाल के पुराने घर को फ़िल्म में बहुत ही बढ़िया ढंग से दर्शाया गया है । फ़िल्म देखते देखते उनके जन्म दिनों में शामिल होना ,मौज करना सब याद आ गया । आखिर प्रणय नारंग का जन्म दिन 6 सितम्बर को , विक्रम विशाल का 9 सितम्बर को और मेरा 13 सितम्बर को होता था । टीवी श्रृंखला परमवीर चक्र ने उन्हें भारतीय सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

लेफ्टिनेंट विक्रम बत्रा की सोपोर, जम्मू और कश्मीर में तैनाती और डेल्टा कंपनी, 13 वीं बटालियन, जम्मू और कश्मीर राइफल्स (13 JAK RIF) के दिनों की जैसी चर्चा शहीद विक्रम ने सन्नी अमित सूद और मुझ से जॉय रेस्टॉरेंट में कारगिल में जाने से पहली की थी वो फ़िल्म में पूरी तरह दर्शाई गई है । अपने साथी सैनिकों अफसरों के साथ-साथ स्थानीय लोगों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध विकसित करने की कला के कारण ही अदम्य साहस वीरता और नेतृत्व क्षमता की इबारत विक्रम बत्रा ने लिखी थी । आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान, विक्रम अपने सीओ लेफ्टिनेंट संजीव जामवाल (शिव पंडित) के आदेशों को न मानते हुए भी हमलावर आतंकवादियों पर गोलियां चलाता है। जबकि कंपनी के लोग उसकी बहादुरी की प्रशंसा करते हैं, जमवाल उसे फटकार लगाते हैं। पालमपुर के पास ही मलां के निवासी संजीव जम्वाल ओपरेशन में अपनी जान बचाने और विक्रम की हाजिर जवाबी के कायल हो जाते हैं और दोनों के बीच प्रगाढ़ रिश्ता बन जाता है ।

फिल्म में 1995 के कॉलेज के दिनों को भी भी दर्शाया गया है , जब विक्रम चंडीगढ़ में पढ़ते थे और डिंपल से उनकी मुलाकात हुई थी। वे शादी करने का फैसला करते हैं, हालांकि डिंपल के पिता बत्रा को पंजाबी खत्री होने के लिए स्वीकार करने से इनकार करते हैं जबकि डिंपल एक सिख हैं। अपने पिता को खुश करने के लिए, बत्रा ने अपने सेना के सपने को छोड़ने और मर्चेंट नेवी में शामिल होने का फैसला किया, जिसका वेतन अधिक है। हालाँकि उसका दोस्त सनी (साहिल वैद) उसे एक लड़की के लिए अपना सपना नहीं छोड़ने के लिए मना लेता है। विक्रम के जिंदगी का यह पहलू मुझे भी मालूम न था और हां न तो कभी खुद विक्रम ने और न ही सन्नी, विशाल , प्रणय नारंग ने भी यह चर्चा मुझ से न करी ।

कारगिल युद्ध से पहले 13 JAK के हमारे सैनिक हैदर आतंकवादी सरगना के एक गुर्गे को पकड़ लेते है। कब्जा करने के प्रतिशोध में, हैदर ने एक योजना बनाई और विक्रम की इकाई 13 जेएके को एक साजिश के तहत इनपुट दिलवाते है , जिस के कारण बड़ी संख्या में हथियार बरामद किए गए लेकिन अपने मुख्यालय में वापस लौटने पर, टुकड़ी पर घात लगाकर हमला किया गया और विक्रम के एक आदमी को सिर में गोली लग गयी । अपने साथी की मौत से विक्रम प्रतिशोध की ज्वाला में धधक रहा था, विक्रम का मानना था कि गोली उसको मारी गयी थी , उसने प्रतिज्ञा की कि अब से उसकी कंपनी में कोई भी नहीं मारा जाएगा। अपने आदमियों की मौत का बदला लेने के लिए, विक्रम को एक स्थानीय कश्मीरी लड़के से एक जानकारी मिली। जानकारी के अनुसार एक और ऑपरेशन तय किया गया , विक्रम को इस मिशन का कमांडर बनाया गया। गोलाबारी और आमने-सामने की लड़ाई के बाद, विक्रम कश्मीर के आतंक के आका हैदर की कहानी समाप्त करने में कामयाब हो जाता है । उनकी पूरी बटालियन को उनकी उपलब्धि पर बहुत गर्व था और उन्हें अपने परिवार से मिलने के लिए एक छोटी छुट्टी दी गई थी। छुट्टी के अंतिम दिन की मुलाकात आज भी याद है , जॉय रेस्टोरेंट के अंतिम टेबल में विक्रम ,सनी और मैं शाम चार बजे से रात 9 बजे तक बैठे रहे थे । तब तक कैप्टन सौरभ कालिया की खबरे छन छन कर आ गयी थी , तब ही तो विक्रम ने हंसते हंसते कहा था या तो तिरंगा लहरा कर आऊंगा या तिरंगे में लिपट कर आऊंगा । हंसते हंसते जिस संजीदगी से विक्रम बोल गया था , मुझे मालूम न था कि राष्ट्र भक्ति की अंदर ही अंदर उसके अंदर बहुत तेज ज्वाला जल रही थी ।

विक्रम और उनकी यूनिट घूमरी बेस पर पहुंचते हैं, जहां उनका काम आदत डालना और आगे के आदेशों की प्रतीक्षा करना था। उन पर पाकिस्तानी सेना द्वारा हमला किया जाता है और कैप्टन अजय सिंह जसरोटिया (निकितिन धीर) उर्फ ​​जस्सी की इस प्रक्रिया में मौत हो जाती है, जो विक्रम और संजीव दोनों को तोड़ देता है, लेकिन उन्हें अपना प्रतिशोध लेने के लिए प्रेरित भी करता है।13 JAKRIF अब एक आरक्षित बल नहीं था जिसका अर्थ है कि वे युद्ध में जा रहे थे और यूनिट के सभी अधिकारियों को कोड नाम दिए गए थे, जिसमें विक्रम का ‘शेरशाह’ था। उन्हें 17000 फीट पर पॉइंट 5140 को पुनः प्राप्त करने का कार्य दिया गया और वे ऐसा करने में सफल रहे। अपने कर्तव्य के प्रति विक्रम की अनुकरणीय भक्ति और फीचर को सफलतापूर्वक पकड़ने के लिए, उन्हें युद्ध भूमि में ही लेफ्टिनेंट से कप्तान के रूप में पदोन्नत किया गया और उनका नाम महावीर चक्र के लिए अनुमोदित किया गया था । विक्रम की यूनिट को अब युद्ध की सबसे कठिन चोटी, पॉइंट 4875 पर कब्जा करने का काम दिया गया था और इसे फिर से हासिल करने की लड़ाई के दौरान, उनकी यूनिट का एक सैनिक यशपाल गंभीर रूप से घायल हो गया था। विक्रम उसे बचाने का फैसला करता है। एक अन्य सैनिक को बचाने के दौरान, विक्रम को एक स्नाइपर द्वारा गोली मार दी जाती है लेकिन फिर भी वह लड़ने के लिए खड़ा होता है। उसे कुछ और बार गोली मारी जाती है और नीचे गिर जाता है जबकि भारतीय सैनिक चोटी पर फिर से कब्जा कर लेते हैं और भारतीय ध्वज फहराते हैं। विक्रम देखता है और उसकी मृत्यु को मुस्कुराते हुए देखता है और उसे मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया जाता है, जो भारत का सर्वोच्च युद्ध वीरता पुरस्कार है।

विक्रम ने मात्र भूमि की रक्षा करते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया । उनके बैकुंठ गमन की अंतिम यात्रा में सैन्य अधिकारियों ने परिजनों के साथ मुझे सन्नी और अजय सूद को भी पार्थिव देह के साथ गाड़ी में जगह दी थी । तब एक बैनर बनाया था जो आज आपके साथ साझा कर रहा हूँ ।

“अब तो अमर तिरंगा ले कर रावलपिंडी जाने दो अब तो खुल कर रण चंडी को अपने जोहर दिखलाने दो । ”

राजेश सूर्यवंशी एडिटर इन चीफ

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