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कविता
कभी गिरा, कभी उठा और कभी उठा नहीं : कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कभी गिरा, कभी उठा और कभी उठा नहीं,
बस यही तो करता रहा हूं मैं आज तक।
बढ़ाता रहा और बढ़ाता भी रहता हूं मैं हाथ,
उस तक जो गिर कर उठा नहीं आज तक।
खुद खाने से पहले मैं बांट लेता हूं थोड़ा सा,
तभी कभी भूखा नहीं रहा हूं आज तक।
वे भी क्या…
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छप्पर वाला मकान, मैंने भी बना रखा है, मगर इसमें एक भी, झरोगा नहीं रखा है।
छप्पर वाला मकान,
मैंने भी बना रखा है,
मगर इसमें एक भी,
झरोगा नहीं रखा है।
बस छोटा सा दरवाजा,
इसमें खुलता है,
उस पर भी फटा हुआ,
पर्दा मैंने सिलवा रखा है।
पूछने वाले पूछ लेते हैं,
खिड़की रोशनदान
कहां पड़े हैं,
बोलना पड़ता है,…
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तेरी बहन आई है….Col. Jaswant Singh Chandel
तेरी बहन आई है
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तेरी बहन आई है,
तेरे घर में आई है,
आज रक्षाबंधन है,
तुझे राखी लाई है।
तुम तो सरहदों से,
नहीं लौटे हो,
उसने ---------
सिसकियां ही भरी,
और तेरी तस्वीर पर,
राखी चढ़ा दी है।
मुहब्बत की दुहाई ,…
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छाले
छाले
मैं तो भाई अपनी मर्जी का ही फकीर हूं,
अपने दिल पर पड़े छालों की लकीर हूं,
गम देने वाले गम देते गए हम सहते रहे
क्यों दोष देता फिरूंअपनी भी जमीर है।
छोड़ कर चले गए वे तो बस चले ही गए,
हम तड़पे जरूर मगर होशोहवास में रहे,
गम देने…
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“मुझ से कभी पूछ तो लिया होता…!” Colonel Jaswant Singh Chandel
बवाल
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बिना किसी गवाह कचेहरी ब्यान कर दिया,
सब यह कह रहे हैं अपने कमाल कर दिया,
मुझ से कभी पूछ तो लिया होता,
बेवजह आपने एक बवाल खड़ा कर दिया।
अनजाने में ही प्यार का इजहार कर दिया,
मैं ख़ामोश रहा और तूने कमाल कर दिया,…
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कुछ कद्र करो कुर्बानियों की…. कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
जज्बा -ए-हिंद दिलोदिमाग में बसता है,
सरहदों पर केवल पहरेदार ही बैठता है,
हम क्या जानें उनका दर्द व सही गई पीड़ा,
जिन्होंने उठा रखा मुल्क बचाने का बीड़ा।
जोरावर हो, सोमनाथ कालिया हो भंडारी,
हिफाजत की देश की खुशहाली है हमारी,
बतरा या…
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तमाम रात जलता रहा चुल्लाह झोंपड़ी में, गरीब पास आटा नहीं था रोटी पकाने को।
कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल
Mob..94184 25568
तमाम रात जलता रहा चुल्लाह झोंपड़ी में, गरीब पास आटा नहीं था रोटी पकाने को।
खामोशी छाई रही तमाम रात झोंपड़ी में।
हवेली से आती रही आवाज चिल्लाने की।
कम सहुलियतें होती है…
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उठो मुर्दो, नामर्दो! कुछ तो शर्म करो…अब तो जागो…कब तक चुपचाप देखते रहोगे..मुझे दुःख है…
नमन मंच
विधा : कविता
विषय : मैं मुर्दों के शहर में रहती हूॅं
********(((***((((*******
यह बात कोई मिथ्या न माने,
मैं सबकुछ सच-सच कहती हूॅं।
ज़िंदा हूॅं, शर्मिंदा हूॅं कि मैं मुर्दों के शहर में रहती हूॅं।
लाज लूट ले कोई वहशी,
देख…
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नेताजी बोले “शहादत जैसे होते रहते हैं हादसे”… कर्नल जसवन्त सिंह चंदेल
वहां किसी की बैठी एक मां थी,
किसी की बैठी थी वहां धर्मपत्नी,
और किसी ने बस पकड़ रखी थी,
सिसकती हुई प्यारी बहन अपनी ।
खूब वहां तामझाम वहां सरकारी,
अगली पंक्ति बैठी सरकार हमारी,
एक पकड़े आ रहा खूंटा अपना,
जिसने खोया शायद बेटा अपना।…
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*मेरी पोती आई थी जब तब लाई फूलों के गुच्छे* by Col. Jaswant Singh Chandel
पोती के लिए
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आई थी जब तब लाई फूलों के गुच्छे,
बहारें भी साथ लाई थीं फूलों के गुच्छे,
कली बन कर तू आई खुशियां तू लाई ,
तुझे देख कर खुशी से आंखें भर आई।
दिन तो बहुत देखे मगर आज का दिन,
आज का दिन न्यारा है प्यारा यह दिन,…
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