हिमाचल कला संस्कृति भाषा अकादमी के कई कार्यक्रमों में प्रस्तोता रहीं चंद्रकांता (पालमपुर) का पहला कहानी संग्रह “जनाना” प्रकाशित हुआ है। इन दिनों वे नमस्ते भारत कार्यक्रम का संचालन व अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट भारत दर्शन के माध्यम से हिमाचल संस्कृति का प्रसार कर रही हैं।
संग्रह की शीर्षक कहानी “जनाना ” में ईंट भट्टी में काम करने वाले मजदूरों की अभावों से ग्रसित जिंदगी का बहुत ही सुंदर चित्रण किया गया है। मजदूर पुरुषों की नशे की आदत और औरतों पर उनका रौब कहानी में चिन्हित किया गया है। नायिका सुकमा पैसे के अभाव में कभी न पूरी होने वाली इच्छाओं को तो दबा लेती है परंतु मन के सूने आंगन में किसी के प्रेम पगों का आगमन नहीं रोक पाती, यह इस कथा को एक दुःखान्त अंत की और ले जाता है।
दूसरी कहानी “सिलाई मशीन “में सुलह ननावा का नाम पढ़कर मुझे ऐसे लगा कि हमारे आसपास की ही कोई कहानी है। यह एक ऐसी स्त्री के कहानी है जो पति की मृत्यु के बाद भी किसी और को अपने दिल में जगह न दे पाई। हरियाली तीज के व्रत और हिमाचली संस्कृति उल्लेख भी इस कहानी में मिलता है। यह कहानी संघर्षों से जूझती स्त्री सम्बलता की कहानी है।
कहानी “चाक “में बताया गया है जब कारीगरों को अपनी उत्पादों के उचित दाम नहीं मिल पाते तो वह मजबूर हो जाते हैं अपने पुश्तैनी धन्धों को छोड़ने के लिए। कथा” कैंडी” में लेखिका ने बड़े स्पष्ट रूप मैं बताया है कि यौन शोषण का शिकार ना केवल लड़कियां होती है बल्कि लड़के भी इससे बचे नहीं है इसलिए हमें अपने बच्चों को आस-पास ही मंडराते दरिंदों से सुरक्षित रखने की जरूरत होती। हमें अपने बच्चों की बात को भी ध्यान से सुनना चाहिए यदि उनके व्यवहार में कोई अप्रत्याशित परिवर्तन आता है तो प्रेम व सहानुभूति पूर्ण रवैया अपनाते हुए उसकी गहरी छानबीन करके उसके मनोभावों को समझने की कोशिश करनी चाहिए।
“एक चुटकी इश्क” प्रेम के दो विरोधी मानदंडों की कहानी है। एक साथी प्रैक्टिकल है उसका व्यक्तित्व प्रेम के विकाऊपन को उजागर करता है। दूसरा पार्टनर लम्बे अंतराल बाद भी उस प्रेम अनुभूति को महसूस करता है । ”
हाउसवाइफ” कहानी भी दाम्पत्य जीवन में आए समय के अभाव व लापरवाही के कारण रिश्तों में आए खालीपन को उजागर करती है और किस तरह से इसका एहसास होने पर पुनः भरा जा सकता है यह इस कहानी में बताया गया है।
कहानी” हरी-भरी “बांझपन से अभिशप्त जीवन की दशा को दिखाया गया है इस कहानी का अंत सुखांत है। बाद में जिस औरत को अपने बांझ होने के कारण कई तरह के कष्ट सहने पड़ते हैं अंत में वही उसी के पेट से होने की खबर से उसका खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहता।
आठवीं या अंतिम कहानी “पार्ले पॉपिंस विद लव” इसमें लेखिका ने यह दिखाने का प्रयत्न किया है कि किस तरह से अलग-अलग धर्मों के दो लोगों में प्रेम हो जाना उसमें एक सामाजिक भय भी पैदा करता है ,और अंत में प्रेम को सब धर्मों से ऊपर रखने की सोच पैदा करना इस कहानी का उद्देश्य लग रहा है।
समाज की विभिन्न समस्याओं को कहानी के चरित्रों के साथ जोड़कर लेखिका पाठकों की संवेदनाओ को जागृत करने में सफल रहीं हैं। कहानियां पढ़ते समय बहुत बार मैं अपनी आंखों की अश्रु धारा को नहीं रोक पाई ,कहानी में ही इन समस्याओं से निबटने के उपाय भी अष्पष्ट तौर में सुझा दिए गए हैं। भविष्य में भी मैडम चंद्रकांता जी से और अधिक ,और अनूठा, पाठकों के और करीब पढ़ने को मिलेगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है। यह पुस्तक इंडिया नेटबुक्स नोयडा से 078382 48790 सम्पर्क कर मंगवाई जा सकती है।
आशा पठानिया, शिक्षिका (टीजीटी)
जोगिंदरनगर, हिमाचल