मुख्यमंत्री सुक्खू की बहुमत से चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार के साथ जन समर्थन का सैलाब, राजभवन के विवादित हस्तक्षेप से जन्मा संवैधानिक संकट लोकतंत्र के लिए घातक, मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की दृढ़ता और बढ़ती लोकप्रियता से बौखलाए राज्यपाल खड़ी कर रहे बेशुमार दिक्कतें
जनता द्वारा बहुमत से चुनी हुई सरकारों को परेशान कर रहे राज्यपाल
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हिमाचल प्रदेश में संवैधानिक संकट: मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की दृढ़ता और राज्यपाल की अड़चनें
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हिमाचल प्रदेश में इन दिनों एक संवैधानिक टकराव गहराता जा रहा है, जहां राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार के बीच तीखी तनातनी देखी जा रही है। यह टकराव न केवल ‘नौतोड़’ भूमि आवंटन विधेयक को लेकर है, बल्कि पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति को लेकर भी बढ़ा है।
नौतोड़ विधेयक: आदिवासियों के हक पर रोड़ा क्यों?
हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के आदिवासियों और वंचित समुदायों को भूमि देने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए नौटोड़ भूमि आवंटन विधेयक पारित किया। यह विधेयक विशेष रूप से लाहौल-स्पीति, किन्नौर और पांगी जैसे दुर्गम क्षेत्रों के लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए लाया गया था। इस विधेयक को पहले तीन राज्यपालों की मंजूरी भी मिल चुकी थी, लेकिन वर्तमान राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला ने इसे लंबित रखकर सरकार के कार्यों में बाधा डालने का प्रयास किया है।
वन संरक्षण अधिनियम (FCA), 1980 के तहत पहले भी आदिवासी क्षेत्रों में कई प्रावधानों को निलंबित किया गया था, जिससे वंचित समुदायों को लाभ मिला था। बीजेपी सरकार के कार्यकाल में 2016-2018 और 2020 में इन प्रावधानों को निलंबित किया गया था, लेकिन तब किसी भी राज्यपाल ने इसे रोका नहीं था। फिर अब इस विधेयक को रोकने का क्या औचित्य है? यह सवाल उठाना जरूरी हो गया है।
वन और जनजातीय मामलों के मंत्री जगत सिंह नेगी ने स्पष्ट रूप से कहा कि राज्यपाल का यह कदम आदिवासी अधिकारों के खिलाफ है और सरकार के संवैधानिक दायित्वों में हस्तक्षेप के समान है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि जब भाजपा सरकार ने इसी अधिनियम के तहत लाभ दिया था, तब कोई आपत्ति नहीं थी, लेकिन अब कांग्रेस सरकार आने पर रोड़ा क्यों डाला जा रहा है?
कुलपति की नियुक्ति: राज्यपाल का हस्तक्षेप क्यों?
राज्यपाल और सरकार के बीच दूसरा बड़ा विवाद पालमपुर स्थित चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति को लेकर हुआ। कृषि मंत्री चंदर कुमार ने राज्यपाल पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह राज्य सरकार के अधिकारों का हनन है और विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर सीधा हमला है। उच्च न्यायालय ने नियुक्ति प्रक्रिया को रोकने का निर्देश दिया था, लेकिन यह मामला सुलझने के बाद भी राज्यपाल ने देरी की। आखिरकार मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के हस्तक्षेप के बाद ही यह मामला सुलझा और डॉ. नवीन कुमार को कुलपति नियुक्त किया गया।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू: एक सशक्त नेतृत्व की मिसाल
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मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने न केवल हिमाचल प्रदेश में विकास की गति को तेज किया है, बल्कि अपने दृढ़ नेतृत्व से राज्य में पारदर्शिता और जनहितकारी नीतियों को प्राथमिकता दी है। उनकी सरकार ने किसानों, आदिवासियों और युवाओं के कल्याण के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए हैं।
सुक्खू सरकार का नौटोड़ भूमि विधेयक एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिससे हजारों गरीब परिवारों को अपनी जमीन का कानूनी हक मिल सकेगा। लेकिन राज्यपाल की अड़चनें इस विकास यात्रा में बाधा डालने का प्रयास कर रही हैं। यह दर्शाता है कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त राज्यपाल एक राजनीतिक एजेंडा चला रहे हैं और राज्य सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं।
केंद्र-राज्य संबंधों में बढ़ता टकराव
यह पहली बार नहीं है जब किसी गैर-बीजेपी शासित राज्य में केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल के साथ टकराव हुआ हो। पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में भी ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं। राज्यपालों की नियुक्ति का उद्देश्य प्रशासनिक संतुलन बनाए रखना है, लेकिन जब राज्यपाल किसी राजनीतिक दल के पक्षधर बन जाएं, तो यह संघीय ढांचे के लिए खतरा पैदा करता है।
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने राज्यपाल के इस हस्तक्षेप पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह राज्य सरकार के संवैधानिक अधिकारों पर अतिक्रमण है। उन्होंने यह भी साफ किया कि हिमाचल सरकार किसी भी कीमत पर जनता के हितों की अनदेखी नहीं करेगी और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
हिमाचल सरकार की मजबूती और राज्यपाल की भूमिका पर सवाल
राज्य सरकार जनता के विकास और कल्याण के लिए पूरी तरह से समर्पित है। मुख्यमंत्री सुक्खू के नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनका सीधा लाभ हिमाचल प्रदेश के नागरिकों को मिल रहा है। सरकार की योजनाएं पारदर्शी और विकासोन्मुखी हैं, लेकिन राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठना लाजिमी है।
बीजेपी नेताओं ने राज्यपाल के इस कदम का समर्थन कर कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाए, लेकिन वे यह भूल गए कि जनता ने इस सरकार को जनादेश देकर सत्ता में भेजा है। हिमाचल के नागरिकों ने विकास और अधिकारों की रक्षा के लिए कांग्रेस सरकार को चुना है, न कि किसी राज्यपाल के अड़ियल रवैये को स्वीकार करने के लिए।
हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल और सरकार के बीच यह टकराव महज एक संवैधानिक विवाद नहीं है, बल्कि यह लोकतंत्र की बुनियादी संरचना पर भी सवाल खड़ा करता है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और उनकी सरकार जनता के अधिकारों और राज्य की स्वायत्तता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, जबकि राज्यपाल का रवैया इस दिशा में संदेह उत्पन्न करता है।
यह आवश्यक है कि केंद्र सरकार राज्यपाल की भूमिका को स्पष्ट करे और उन्हें राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रहने की सलाह दे। हिमाचल प्रदेश की जनता अपने अधिकारों को लेकर सजग है और किसी भी साजिश को सफल नहीं होने देगी। लोकतंत्र की वास्तविक ताकत जनता में निहित है, और जब जनता अपने अधिकारों के लिए खड़ी होती है, तो कोई भी शक्ति उसे रोक नहीं सकती।
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