कुछ कद्र करो कुर्बानियों की…. कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल

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जज्बा -ए-हिंद दिलोदिमाग में बसता है,
सरहदों पर केवल पहरेदार ही बैठता है,
हम क्या जानें उनका दर्द व सही गई पीड़ा,
जिन्होंने उठा रखा मुल्क बचाने का बीड़ा।

जोरावर हो, सोमनाथ कालिया हो भंडारी,
हिफाजत की देश की खुशहाली है हमारी,
बतरा या दूसरा पहरेदार इन्सान थे मगर,
जज्बा -ए-हिंद पीछे पड़ा रहा उमर भर।

हिन्द से क्या ले गए ये गबरू अपने साथ,
कुछ बिताए लम्हें ही गए उन सबके साथ
मेरे भाइयो कुछ कद्र करो कुर्बानियों की,
सोचता हूं क्यों भूल गए बात है हैरानी की।
कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल

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