छप्पर वाला मकान, मैंने भी बना रखा है, मगर इसमें एक भी, झरोगा नहीं रखा है।

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छप्पर वाला मकान,
मैंने भी बना रखा है,
मगर इसमें एक भी,
झरोगा नहीं रखा है।

बस छोटा सा दरवाजा,
इसमें खुलता है,
उस पर भी फटा हुआ,
पर्दा मैंने सिलवा रखा है।

पूछने वाले पूछ लेते हैं,
खिड़की रोशनदान
कहां पड़े हैं,
बोलना पड़ता है,
प्यार से,
तू भी जरा लग जा,
लाईन में जहां बाकी
सब खड़े हैं।

तंग करके रखा था,
इस गली में आपने,
खड़े हो जाते थे,
मेरी खिड़की के सामने,
यह कहने को,
मुझे बुलाया नहीं आपने।

कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल

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