नहीं खोलूंगा मैं दरवाजा,
दरवाजा अपने दिल का,
देख तो लिया इन आंखों ने,
आंखों ने सबकुछ आज।
मुझे सबके सामने आज,
फिसलना पड़ा है,
आज यह देखने को कि,
कौन हाथ बढ़ाता है,
मुझे उठाने वास्ते
मुझे बचाने वास्ते।
कुछ तो खूब हंसे आज,
आज मुझे फिसलते
देखने के बाद आज,
कुछ इधर -उधर
इधर झांकने लगे,
एक आया सामने
दौड़ता हुआ और
उठा लिया,
मुझे अपना समझ कर।
कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल।