ढलता पिछला जमाना जाते देख रखा है मैंने,
बाप को अंगोछा पहनें कमाते देख रखा। है मैंने ,
मां को कहां रहती थी दिन रात की सुध बुध,
बूढ़ों को बिन दवाई करलाते देख रखा है मैंने।
शहुकारों की काली करतूतें देख रखी हैं मैंने,
नगदी से भरी उनकी संदूकें देख रखी है मैंने,
सूद के नाम पर लोगों को ख़ूब लूटा उन्होंने,
कर्जदार से होती बदसलूकी देख रखी है मैंने।
आज फूलों तितलियों का याराना देखता हूं मैं,
जानवरों को भी इकट्ठे खाना खाते देखता हूं मैं
हम इन्सान ही लड़ते झगड़ते हैं हर बात पर,
टूटे रिश्ते का बनता ताना बाना देखता हूं मैं।
कर्नल जसवन्त सिंह चन्देल
कलोल बिलासपुर हिमाचल